मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) ने 19 जुलाई 2021 को ओपन-एंडेड म्यूचुअल फंड (open ended mutual fund) डेट स्कीमों (debt schemes) के लिए एक स्विंग प्राइसिंग मैकेनिज्म (Swing Pricing Mechanism) का प्रस्ताव रखा है. सेबी का जारी किया गया कंसल्टेशन पेपर फिलहाल राय-मशविरे के दौर में है. बाजार के जानकारों का मानना है कि अगर ये लागू हो जाता है तो निवेशकों के हितों की सुरक्षा का ये एक प्रभावशाली तरीका हो सकता है.
स्विंग प्राइसिंग क्या है?
दरअसल, म्यूचुअल फंड स्कीम (mutual fund schemes) के लिए सिक्योरिटीज खरीदते या बेचते समय फंड हाउस कई तरह के शुल्क लेते हैं. इसमें ब्रोकरेज (brokerage), टैक्स (taxes) और अतिरिक्त लागतें शामिल हैं.
बाजार में उथल-पुथल (market dislocation) के वक्त इन शुल्कों में बढ़ोतरी देखी गई है. कई बार कुछ ईवेंट्स के चलते फंड्स से बड़े निवेश या रीडेम्पशन हो सकते हैं, जिससे बाजार में उथल-पुथल (market dislocation) फैल जाती है.
एक्सपर्ट्स का मानना है कि बड़े निवेश और रिडेम्पशन हमेशा ही उन निवेशकों को प्रभावित करते हैं जो लंबे समय तक निवेश में टिके रहते हैं. अगर किसी स्कीम से बड़े एग्जिट के चलते फंड मैनेजर को ज्यादा तादात में सिक्योरिटीज को कम कीमतों पर बेचना पड़ता है, तो स्विंग प्राइसिंग के न होने से रीडेम्पशन की लागत उन निवेशकों को चुकानी पड़ती है जो उन यूनिट्स में निवेश को जारी रखते हैं.
एम्के वेल्थ मैनेजमेंट(Emkay Wealth Management) के रीसर्च हेड, जोसेफ थॉमस के मुताबिक, “स्विंग प्राइसिंग यह सुनिश्चित करती है कि नेट एसेट वैल्यू (NAV) में इस तरीके से बदलाव किए जाएं ताकि जो लोग किसी स्कीम से बड़े पैमाने पर एग्जिट कर रहे हैं वे ही लागत का भुगतान करें. किसी भी एसेट के एक निश्चित पूर्व-निर्धारित फीसदी (pre-fixed percentage) को स्विंग प्राइसिंग के लिए ट्रिगर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. स्विंग प्राइसिंग के लिए थ्रेशहोल्ड तय किए जाते हैं और इसे बाजार की उथल-पुथल की स्थितियों में लागू किया जाता है.”
म्यूचुअल फंड निवेशकों के लिए इसके क्या मायने हैं?
स्विंग प्राइसिंग (Swing Pricing) का उद्देश्य किसी भी तरह से लागत को कम करना नहीं है, बल्कि बाजार में बड़े तौर पर निवेश और एग्जिट पर नजर रखना है. साथ ही स्विंग प्राइसिंग (Swing Pricing) से ये सुनिश्चित किया जाता है कि बाजार में उथल-पुथल के वक्त एंट्री या एग्जिट करने वाला ही लागत का भुगतान करे.
थॉमस कहते हैं, “सरल शब्दों में कहें तो मौजूदा निवेशक के हितों की रक्षा की जाती है और लागत उन लोगों द्वारा वहन की जाती है जो एंट्री या एग्जिट कर रहे हैं.”
प्रमुख वैश्विक बाजारों में स्विंग प्राइसिंग पहले से ही लागू है. भारत के बॉन्ड बाजार की उभरती स्थिति और फ्रैंकलिन टेंपलटन के संकट (franklin templeton debacle) से सीखे हुए सबक को ध्यान में रखते हुए, स्विंग प्राइसिंग (Swing Pricing) लाने का कदम सही दिशा में उठाया गया है.
फिसडम(Fisdom) के को-फाउंडर आनंद डालमिया कहते हैं, “स्विंग प्राइसिंग से यह सुनिश्चित होगा कि ट्रांसेक्टिंग निवेशकों के लिए एक लिक्विडिटी कॉस्ट तय की जाए और मौजूदा निवेशक अव्यवस्थित बाजारों के दौरान लेनदेन के साथ बढ़ती हुई लागतों का खामियाजा नहीं उठाए”.
इसका फंड हाउस पर क्या असर पड़ेगा?
स्विंग प्राइसिंग (Swing Pricing), चाहे वो पूरी तौर पर हो या फिर आंशिक, इसका एसेट मैनेजमेंट कंपनियों द्वारा सावधानी से अध्ययन करना चाहिए और लागू किया जाना चाहिए. एनएवी (NAV) और रिजल्टेंट डाईल्यूशन (resultant dilution) पर बड़े एग्जिट और एंट्री के प्रभावों में पिछले रुझानों को देखने के बाद स्विंग प्राइसिंग (Swing Pricing) को लागू करना ही सही तरीका होगा.
एसेट मैनेजमेंट इकोसिस्टम को दरअसल स्विंग प्राइसिंग (Swing Pricing) मैकेनिज्म स्थिर कर देगा. हालांकि, कुछ तात्कालिक चुनौतियां हैं जिनका समाधान AMC को करना होगा. उदाहरण के लिए, एएमसी (AMCs) के लिए निवेशकों के लेनदेन की वजह से उपजी लागतों को सटीक रूप से निर्धारित करना और लागू करना बेहद मुश्किल होगा.
डालमिया ने समझाया, “फंड हाउसों को सभी निवेशकों को लागू स्विंग थ्रेशहोल्ड और उन चीजों के बारे में सूचित करने के लिए एक सरल लेकिन प्रभावी संचार रणनीति तैयार करनी होगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि निवेशक घबराहट में रीडेम्पशन का सहारा ना लें”.
पहले चरण में, सेबी ने केवल अत्यधिक बाजार अव्यवस्थाओं के समय में ही स्विंग प्राइसिंग को लागू करने का प्रस्ताव किया है, जिसकी वजह से रिस्क-ओ-मीटर पर ‘हाई’ या ‘वेरी हाई’ वाली ओपन-एंडेड डेट स्कीम्स से बड़ी मात्रा में आउटफ्लो हुआ. सेबी ने 20 अगस्त, 2021 तक प्रस्तावित ढांचे पर जनता से टिप्पणी मांगी है.