एक परफेक्ट डेट इंस्ट्रूमेंट पोर्टफोलियो ऐसे कर सकते हैं तैयार, जाने पूरी डिटेल

Portfolio: आपके लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट एक्सपीरिएंस की झलक आपके एसेट एलोकेशन पर नजर आती है, न कि म्यूचुअल फंड सिलेक्शन पर.

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निवेशकों को एक मैनेजमेंट शैली का चयन करना चाहिए जो पोर्टफोलियो मैनेजमेंट का अधिकतम लाभ उठाने के लिए उनके निवेश पैटर्न से मेल खाता हो

निवेशकों को एक मैनेजमेंट शैली का चयन करना चाहिए जो पोर्टफोलियो मैनेजमेंट का अधिकतम लाभ उठाने के लिए उनके निवेश पैटर्न से मेल खाता हो

किसी एक कैटेगरी के फंड में 100% एलोकेशन, चाहे वो डेट में हो या इक्विटी में, सही कदम नहीं है इसकी वजह से भारी नुकसान हो सकता है. सेविंग और इन्वेस्टमेंट फाइनेंशियल गोल को पूरा करके अपने भविष्य को सुरक्षित रखने का एक जरिया है. इसका मतलब यह है कि आपके द्वारा चुना गया इन्वेस्टमेंट ऐसा हो जो आपका पैसा बढ़ाय और उसकी सुरक्षा भी करे. कुल मिलाकर, इक्विटी निवेश को लंबी अवधि के लिए बेहतर विकल्प माना जाता है, जबकि डेट इन्वेस्टमेंट का इस्तेमाल आपके पोर्टफोलियो (Portfolio) को सुरक्षित रखने के तौर पर किया जाता है.

“आपके निवेश अनुभव का 80-90% (आपने जो उतार चढ़ाव देखा और और आपको जो रिटर्न मिला) का पता आपके एसेट एलोकेशन द्वारा लगाया जा सकता है. दूसरे शब्दों में, आपके लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट एक्सपीरिएंस की झलक आपके एसेट एलोकेशन पर नजर आती है, न कि म्यूचुअल फंड सिलेक्शन पर (जहां ज्यादा समय व्यतीत होता है), “अरुण कुमार, हेड ऑफ रिसर्च, फंड्सइंडिया

हालांकि, डेट इन्वेस्टमेंट के ब्रॉड स्पेक्ट्रम में भी, सभी कैटेगरी इन्वेस्टमेंट सेफ्टी और रिस्क एडजस्टेड रिटर्न नहीं देते हैं. एक तरफ, आपके पास गवरमेंट या पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग (PSUs) द्वारा जारी किए गए बांड होते हैं जिनमें क्रेडिट रिस्क न के बराबर या कहें बहुत कम होता है और डिफॉल्ट की स्थिति में इन्हें सुरक्षित माना जाता है.

दूसरी तरफ, इन्वेस्टमेंट-ग्रेड कॉरपोरेट्स द्वारा जारी किए गए बांड हैं जो दूसरों की तुलना में ज्यादा रिस्की हैं.
“इक्विटी और डेट दोनों में निवेश करके, आप अपने पोर्टफोलियो (Portfolio) को ज्यादा मजबूत बना सकते हैं. ऐसा करके रिटर्न के लिए सिंगल एसेट क्लास पर अपनी निर्भरता को कम कर सकते हैं. एक अच्छा मजबूत पोर्टफोलियो आपको वोलैटिलिटी से बचाता है और लॉन्ग टर्म में अच्छे रिटर्न देता है. अच्छा पोर्टफोलियो बनाने के लिए डायवर्सिफिकेशन बहुत जरूरी है” अरुण कुमार

एक इन्वेस्टर के रूप में, आप डेट कैटेगरी में सही एसेट एलोकेशन कैसे कर सकते हैं?

डेट फंड इंस्ट्रूमेंट्स

डेट फंड में तीन तरह के रिस्क होते हैं: क्रेडिट रिस्क (प्रिंसिपल और इंटरेस्ट पेमेंट पर डिफॉल्ट का रिस्क), इंटरेस्ट रेट रिस्क(इंटरेस्ट रेट में बदलाव का रिस्क), और लिक्विडिटी रिस्क (डेट इंस्ट्रूमेंट को कैश में जरूरत पड़ने पर नहीं बदल सकने का रिस्क).
लिक्विड और ओवरनाइट फंड में सबसे कम क्रेडिट रिस्क होता है, अल्ट्रा-शॉर्ट-टर्म से शॉर्ट-टर्म फंड में मॉडरेट क्रेडिट रिस्क होता है, और लॉन्ग-टर्म फंड में क्रेडिट रिस्क सबसे ज्यादा होता है.
निवेशक को अपने जोखिम उठाने की क्षमता के आधार पर फंड का चुनाव करना चाहिए. अपने पोर्टफोलियो की रिस्क उठाने की क्षमता के आधार पर फंड चुने. एक इन्वेस्टर के लिए डेट फंड चुनने से पहले अपनी रिस्क कैपेसिटी को समझना बेहद जरूरी है.

रेगुलर डेट इंस्ट्रूमेंट

हर पोर्टफोलियो में एक इमरजेंसी फंड शामिल होना चाहिए, जिसके लिए निवेशक शॉर्ट टर्म वाले डेट इंस्ट्रूमेंट का विकल्प चुन सकते हैं जैसे कमर्शियल पेपर, ट्रेजरी बिल या ट्रेजरी बांड.
अन्य इन्वेस्टमेंट्स में फिक्स्ड इनकम का भी विकल्प है, जैसे एम्पलॉई प्रोविडेंट फंड, पब्लिक प्रोविडेंट फंड, सरकारी बॉन्ड, और कॉरपोरेट बॉन्ड. ये विकल्प उनके लिए है जो अपनी इन्वेस्टमेंट कैपिटल की सेफ्टी के लिए कम रिस्क उठाना चाहते हैं.

इसके अलावा, उनके पोर्टफोलियो का एक हिस्सा डेट म्यूचुअल फंड आदि के लिए एलोकेट किया जा सकता है. इन कैटेगरी में एलोकेशन कई बातों पर निर्भर करेगा, जिन पर एक इन्वेस्टर को एक बढ़िया पोर्टफोलियो का बनाते समय विचार करना चाहिए, जिसमें शामिल हैं बांड के टाइप, कूपन रेट, मैच्योरिटी ड्यूरेशन, क्रेडिट रेटिंग और मार्केट का ओवरऑल इंटरेस्ट रेट.
“कुछ बांड ऐसे भी हैं जो टैक्सेशन के लिहाज से फायदेमंद हैं जैसे कि इन्फ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड, टैक्स-फ्री बॉन्ड, आदि. टैक्स बेनिफिट क्लेम करने के लिए इन्हें चुना जा सकता है. आरएसएम इंडिया के फाउंडर सुरेश सुराणा कहते हैं, “कम जोखिम वाले निवेशक ऐसे फंडों के लिए अधिक एलोकेशन कर सकते हैं क्योंकि ये उनका क्रेडिट रिस्क कम करेगा”
अपने एसेट एलोकेशन में डेट इंस्ट्रूमेंट को जगह देना क्यों जरूरी है?

डायवर्सिफिकेशन

डायवर्सिफिकेशन आपके जोखिम को काफी कम करता है. जैसा कि कहावत है “अपने सभी अंडे एक टोकरी में न रखें” कहने का मतलब है, एक निवेशक को रिस्क कम करने के लिए अपने पोर्टफोलियो को डायवर्सीफाइड करना चाहिए.
सुराना ने कहा, “किसी एक तरह की कैटेगरी के फंडों में 100% एलोकेशन, चाहे वो डेट में हो या इक्विटी में, सही नहीं है और इसके चलते आपको भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है यदि वो फंड अच्छा परफॉर्म नहीं करते”

वोलैटिलिटी

यहां तक कि अगर एक एसेट क्लास किसी साल बहुत अच्छा प्रदर्शन करता है, तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वो अगले साल भी अच्छा प्रदर्शन करेगा. साथ ही, एसेट क्लास अंडरपरफॉर्म भी कर सकता है. अलग-अलग इंस्ट्रूमेंट में निवेश करने से, एक निवेशक का पोर्टफोलियो किसी एक एसेट क्लास के अच्छा प्रदर्शन न करने की स्थिति में कम प्रभावित होगा, और मार्केट की उथल-पुथल का सामना कर पाएगा.

रेगुलर और स्थिर रिटर्न

इक्विटी फंड्स के विपरीत, कुछ डेट फंड निवेशकों को समय-समय पर सेट रिटर्न देते हैं. इस तरह, एक इन्वेस्टर के पोर्टफोलियो में डेट एसेट क्लास शामिल होने से पोर्टफोलियो और मजबूत बनता है.

Published - July 7, 2021, 04:18 IST