न झुनझुनवाला, न वॉरेन बफेट, आखिर क्या है इस दिग्गज निवेशक की रणनीति?

मनी9 को दिए इंटरव्यू में सलोनी सांघवी आम निवेशकों को इन्हीं गैर-परंपरागत Quantitative investing स्ट्रैटेजीज की टिप्स दी हैं.

Sensex may soon touch a big figure of 66,666, investors will become rich

किसी भी तरह से देखा जाए तो यह खुदरा निवेशकों का खराब प्रदर्शन नहीं है

किसी भी तरह से देखा जाए तो यह खुदरा निवेशकों का खराब प्रदर्शन नहीं है

मुंबई की सलोनी सांघवी एक सर्टिफाइड फाइनेंशियल एडवाइजर हैं और My Wealth Guide की फाउंडर हैं. उन्हें क्वांटिटेटिव इनवेस्टिंग में महारथ हासिल है जिसमें वे फंडामेंटल्स की बजाय आंकड़ों का इस्तेमाल करती हैं और स्टॉक्स का चयन करती हैं. उनकी ये रणनीति दिग्गज निवेशक राकेश झुनझुनवाला की वैल्यू इनवेस्टिंग से बिलकुल जुदा है. गौरतलब है कि राकेश झुनझुनवाला उनके पूर्व बॉस हैं.

ऐसे में इस बात में भी कोई अचरज नहीं होना चाहिए कि वे वॉरेन बफेट की भी प्रशंसक नहीं हैं. इसकी बजाय वे अमरीकी इनवेस्टर पीटर लिंच के उस वाक्य पर ज्यादा भरोसा करती हैं जिसमें उन्होंने कहा था, “शेयरों से पैसा बनाने का दिमाग हर किसी में होता है, लेकिन, हर किसी में इसे पचाने की क्षमता नहीं होती है.”

मनी9 को दिए इंटरव्यू में सलोनी सांघवी आम निवेशकों को इन्हीं गैर-परंपरागत क्वांटिटेटिव इनवेस्टिंग (Quantitative investing) स्ट्रैटेजीज की टिप्स दी हैं. इसमें जटिल एल्गोरिद्म का इस्तेमाल होता है और इसमें स्टॉक्स को चुनने और ट्रेड करने में ना के बराबर मानवीय दखल होता है. पेश हैं इस इंटरव्यू के अंशः

क्या है क्वांटिटेटिव इनवेस्टमेंट और ये कैसे काम करता है?

क्वांटिटेटिव इनवेस्टमेंट (Quantitative investing) में ऐतिहासिक डेटा से रिसर्च इनसाइट का इस्तेमाल होता है और मैथेमैटिकल मॉडल तैयार किया जाता है. तय पैरामीटर्स के आधार पर नियम बनाए जाते हैं. चूंकि, इसमें कोई मानवीय दखल नहीं होता है, ऐसे में इसमें मानवीय पक्षपात नहीं होते हैं और ये एक तय स्ट्रैटेजी पर ही चलता है.

क्वांटिटेटिव इवेस्टिंग (Quantitative investing) एक रूल आधारित निवेश है. ये नियम क्या हैं और वैल्यू इनवेस्टिंग से किस तरह से अलग हैं?

क्वांटिटेटिव इवेस्टिंग (Quantitative investing) कई फैक्टर्स या पैरामीटर्स और प्राइस परफॉरमेंस के साथ इनके रिश्ते पर आधारित है. इसके नियम क्वालिटी, वैल्यू, मोमैंटम, वोलैटिलिटी, ग्रोथ, लिक्विडिटी और साइज जैसे फैक्टर्स के कोरिलेशन पर आधारित हैं.

वैल्यू इनवेस्टिंग में केवल एक फैक्टर होता है और उसमें स्टॉक्स को केवल वैल्यूएशन मिसप्राइसिंग और वैल्यूएशन के ऊपर जाने की उम्मीद के आधार पर चुना जाता है.

क्वांटिटेटिव इवेस्टिंग (Quantitative investing) ऐतिहासिक डेटा पर आधारित है. भविष्य में भी ये सही साबित होगा इसकी क्या गारंटी है?

गुजरे आंकड़ों के साथ निश्चित तौर पर भविष्य के परफॉर्मेंस को तय नहीं किया जा सकता है और इसमें बदलाव आ सकता है, लेकिन एक बात सच है कि इतिहास खुद को दोहराता है. क्वांट स्ट्रैटेजीज को अलग-अलग आर्थिक और मार्केट साइकल में आंका जाता है ताकि इनके प्रदर्शन को देखा जा सके और ज्यादा मजबूत मॉडल तैयार किए जा सकें.

क्वांटिटेटिव इवेस्टिंग (Quantitative investing) जोखिम से निपटने में कैसे मददगार है?

सिस्टेमैटिक प्रोसेस पोजिशन साइजिंग, एंट्री और एग्जिट्स के संबंध में अनुशासन को लागू करती है और इससे गिरावट को सीमित करने और अनिश्चितता को दूर करने में मदद मिलती है.

स्टॉक्स को चुनने में किसी भी तरह का मानवीय दखल होता है?

शेयरों को पहले से तय रणनीति के मुताबिक चुना जाता है और इसमें ना के बराबर मानवीय दखल होता है.

क्वांट रणनीति के तौर पर आम निवेशक किन प्रोडक्ट्स/इंस्ट्रूमेंट्स में हिस्सा ले सकते हैं?

क्वांट फंड्स अभी भारत में बेहद नए हैं. म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में इनकी हिस्सेदारी अभी महज 0.01 फीसदी है. निप्पोन और DSP दोनों के पास इस रणनीति से जुड़े हुए फंड्स हैं. क्वांट इनवेस्टिंग में निवेशक स्मॉलकेस के जरिए भी निवेश कर सकते हैं.

यहां देखिए पूरा इंटरव्यूः

Published - June 13, 2021, 01:53 IST