बुधवार देर रात हाल में प्रचलन में आए क्लबहाउस पर एक चर्चा के दौरान SBI म्यूचुअल फंड हाउस के फंड मैनेजर श्रीनिवास जैन ने शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड में निवेश को लेकर कहा कि निवेशक अब ETF में निवेश से पहले सिर्फ एक्सपेंस रेश्यो नहीं, ट्रैकिंग एरर भी देखते हैं. बल्कि, अब वे ट्रैकिंग एरर पर ज्यादा तवज्जो देते हैं. इस एक वाक्य में आपके लिए तीन टेक्निकल टर्म हमने ढकेल दिए हैं – ETF, एक्सपेंस रेश्यो और ट्रैकिंग एरर. इन सभी को आपको विस्तार से समझाते हैं.
ETF यानी एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स. 100 रुपये की SIP तो आपने सुनी ही होगी लेकिन अगर इससे भी कम में निवेश करना चाहते हैं और पैसों को लॉक-इन नहीं करना चाहते तो ETF अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं. ये काम करते हैं म्यूचुअल फंड्स की ही तरह लेकिन शेयर बाजार के एक्सचेंज पर ट्रेड होते हैं. मतलब ये कि इन फंड्स को शेयरों की ही तरह एक्सचेंज से खरीद-बेच सकते हैं.
ETF किसी एक इंडेक्स (सेंसेक्स, निफ्टी जैसे इंडेक्स) को आधार मानकर उसमें शामिल शेयरों में निवेश करते हैं. इस बेंचमार्क इंडेक्स पर गौर करें क्योंकि यही ट्रैकिंग एरर समझने में आपकी मदद करेंगे.
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इंडेक्स फंड या ETF में एक तय बेंचमार्क के आधार पर निवेश होता है. इस बेंचमार्क का रिटर्न और फंड के रिटर्न से ज्यादा होने पर दोनों के बीच का जो फर्क ही ट्रैकिंग एरर माना जाता है. फंड किसी भी ETF या इंडेक्स फंड का लक्ष्य होता है कि वे शेयर बाजार जैसे ही रिटर्न दे. अगर फंड ने बेंचमार्क जैसे रिटर्न नहीं दिए, यानी ट्रैकिंग एरर ज्यादा है तो फंड अपने लक्ष्य में विफल हो रहा है.
ये फर्क कई कारणों से आ सकता है. पहला ये कि, इंडेक्स में शेयरों का कंपोजिशन बदलने के बाद फंड मैनेजर को यह बदलाव करने में जो समय लगा उससे आया ट्रैकिंग एरेर. वहीं, दूसरा है रिडेंप्शन की वजह से. कई बार फंड्स में बड़े स्तर पर रिडेंप्शन देखने को मिलता है. जब तक फंड में आने वाला निवेश, जाने वाली रकम से ज्यादा है तब तक दिक्कत नहींं होती. लेकिन, निकासी ज्यादा होने पर फंड मैनेजर को कुछ सिक्योरिटीज बेचकर इसका सेटलमेंट करना पड़ता है. इससे कुछ असर दिख सकता है.
कई बार, ये ट्रैकिंग एरर इस वजह से भी हो सकता है कि इंडेक्स में शामिल सभी शेयर फंड में ना हो.
फंड हाउस को इस ट्रैकिंग एरर की जानकारी निवेशकों को देनी होती है. ट्रैकिंग एरर जितना कम हो उतना बेहतर. ट्रैकिंग एरर दिखाता है फंड बेंचमार्क इंडेक्स के मुकाबले कितना अंडर-परफॉर्म कर रहा है.
एसेट मैनेजमेंट कंपनी म्यूचुअल फंड के ट्रांसफर, लीगल, ऑडिटिंग जैसे खर्च भी उठाती है. इसके अलावा वह फंड डिस्ट्रीब्यूशन और मार्केटिंग का भी खर्च उठाती है.
ये सभी खर्च म्यूचुअल फंड की यूनिट खरीदने वाले निवेशकों से ही वसूले जाते हैं. ऐसी सभी खर्च को निकालने के बाद ही म्यूचुअल फंड स्कीम की नेट एसेट वैल्यू निकाली जाती है.
एक्सपेंस रेशियो एक अनुपात है जो म्यूचुअल फंड के प्रबंधन पर आने वाले खर्च को प्रति यूनिट के रूप में बताता है. किसी म्यूचुअल फंड का एक्सपेंस रेशियो निकालने के लिए उसके कुल एसेट अंडर मैनेजमेंट में कुल खर्च से भाग दिया जाता है.