Infrastructure Mutual Funds: इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के बगैर अर्थव्यवस्था की गाड़ी आगे नहीं बढ़ सकती. ऐसी कंपनियां जो ऊर्जा, बिजली, मेटल और रियल एस्टेट के बिजनेस में हैं उन्हें इंफ्रास्ट्रक्चर की श्रेणी रखा जाता है. म्यूचुअल फंड के दृष्टिकोण से, इंफ्रास्ट्रक्चर फंड एक तरह के सेक्टोरल फंड होते हैं, जो इसी क्षेत्र में निवेश करते हैं. वैल्यू रिसर्च के आंकड़ों के अनुसार इन फंडों ने एक, तीन और पांच वर्ष की अवधि वाले स्कीम में 78.07%, 13.49%, और 12.65% का रिटर्न दिया है.
टैक्स कितना?
सेक्टोरल फंड इक्विटी फंड के दायरे में आते हैं, इसलिए इंफ्रास्ट्रक्चर फंड पर भी उतना ही टैक्स देना होता है जितनी इक्विटी फंड में. इंफ्रास्ट्रक्चर फंड पर मिलने वाले लाभांश को भी आपकी कुल आमदनी पर जोड़ा जाता है और इस पर आपको इनकम टैक्स देना होता है. यदि आप एक साल या उससे कम की अवधि में रिडिम कराते हैं तो इस पर शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेंस देना होता है और यह 15 फीसदी के हिसाब से वसूला जाता है. एक साल से अधिक की अवधि वाले फंड पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस लगता है. 1 लाख रुपए तक के कैपिटल गेंस पर कोई टैक्स नहीं देना होता है, जबकि इससे अधिक की राशि पर 10 फीसदी की दर से टैक्स देना होता है.
क्या आपको निवेश करना चाहिए?
इंफ्रास्ट्रक्चर फंड में डायरसिटी की कमी होती है. Quantum AMC के वाइस प्रेसीडेंट (कस्टमर इंटैरेक्शन) संदीप भोसले बताते हैं, “जिन लोगों इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की अच्छी जानकारी होती है वे इसे चुन सकते हैं. फिर भी अपने निवेश के 5 से 10 फीसदी तक ही इसमें पैसा डालना चाहिए. निवेश के पहले पिछले प्रदर्शन पर नजर रखें. उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए सिस्टमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान के जरिए निवेश करने का विकल्प बेहतर होगा.”
इंफ्रास्ट्रक्चर फंड, देश की आर्थिक विकास पर निर्भर होते हैं. ये फंड सरकारी खर्च, तरलता, कर्ज की लागत वगैरह से प्रभावित होते हैं. ये फंड एक तरह से चक्रीय फंड होते हैं, इसलिए निवेशकों को समझ होनी चाहिए कि इनसे कब बाहर निकलना है. वैसे भी सेक्टोरल फंड पर जोखिम ज्यादा होता है. क्योंकि ये क्षेत्र विशेष पर निवेश करते हैं. इनमें डायवर्सिटी की कमी होती है. यदि पूरे सेक्टर में गिरावट आती है तो इससे जुड़े सभी शेयर गिरते हैं.