Inflation: हमें भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट की एक श्रृंखला में निवेश करने की जरूरत है, जिसमें सबसे बड़ी चुनौती इन्फ्लेशन (Inflation) है.
एक्सपर्ट इस चुनौती से निपटने के लिए इक्विटी इंस्ट्रूमेंट में लॉन्ग टर्म निवेश की सलाह देते हैं.
इन्फ्लेशन , एक इकोनॉमिक टर्म है, जो एक निश्चित अवधि में कीमतों में वृद्धि के बारे में बताता है. यह वस्तुओं और सेवाओं की औसत कीमतों का एक पैमाना है.
इन्फ्लेशन से पैसों के मूल्य में गिरावट आती है. जिसका अर्थ है कि हो सकता है कि 1000 रुपये में आज आप उतना सामान/सेवाएं न खरीद पाए, जितना 10 पहले खरीद सकते थे.
इन्फ्लेशन किसी देश में गंभीर आर्थिक परिवर्तनों के कारण होता है. जिनमें से दो मेन फैक्टर हैं, मजदूरी में वृद्धि और कच्चे माल जैसे तेल की मांग में तेजी से वृद्धि.
इन्फ्लेशन से बचाव का एक तरीका इक्विटी इंस्ट्रूमेंट में लॉन्ग टर्म के लिए निवेश करना है. एक्सपर्ट्स के अनुसार, अपने इन्वेस्टमेंट गोल सेट करते समय एक पहलू जो ध्यान में रखना चाहिए, वह यह है कि इन्फ्लेशन प्रति वर्ष लगभग 6-7 प्रतिशत तक बढ़ जाता है.
इसलिए इन्वेस्टमेंट होराइजन के दौरान इन्फ्लेशन को मात देने के लिए, रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट(ROI) 6-7% से ज्यादा होना चाहिए.
लंबी अवधि की इक्विटी में निवेश सावधानी से किया जाना चाहिए. क्योंकि मैच्योरिटी पर रिटर्न उस समय इन्फ्लेशन रेट से अधिक नहीं होने की स्थिति में इन्फ्लेशन को मात देने का पूरा उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा.
जब इन्वेस्टमेंट लॉन्ग टर्म के लिए हो तो निवेश के लक्ष्यों के बारे में स्पष्ट होना जरूरी है. उदाहरण के लिए, यदि इन्वेस्टमेंट गोल हेल्थ या एजुकेशन से संबंधित है, तो इन्फ्लेशन की दर लगभग 10% होगी. एक्सपर्ट्स का कहना है कि एसेट एलोकेशन जरूरी है.
वर्तमान में सरकार समर्थित योजनाएं और न ही बैंक एफडी निवेशकों को 7% से अधिक रिटर्न देने में सक्षम हैं, लेकिन यह कंसर्वेटिव इन्वेस्टर्स के लिए सुरक्षित विकल्प हैं. इसलिए पर्याप्त मात्रा में रिटर्न पाने का विकल्प गोल्ड, इक्विटी या रियल एस्टेट में निवेश करने तक सीमित हो जाता है.
रिटर्न को समझने का एक अच्छा तरीका विभिन्न फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट में किए गए निवेश की कम्पाउंडिंग एनुअल ग्रोथ रेट(CAGR) की तुलना करना है.
दिसंबर 2005 में इक्विटी में किए गए 10,000 रुपये के निवेश में फिक्स्ड डिपॉजिट में किए गए समान राशि के निवेश के विपरीत 12% की सीएजीआर देखी गई है.
दिसंबर 2005 में इक्विटी में किया गया 10,000 रुपये का निवेश अगस्त 2007 में बढ़कर 20,000 रुपये हो गया, जबकि एफडी सिर्फ बढ़कर 11,000 रुपये हो गई.
इसी तरह, जब समान राशि को 15 साल की लंबी अवधि के लिए इक्विटी में निवेश किया गया, तो राशि बढ़कर 53,000 रुपये हो गई. जबकि एफडी बढ़कर सिर्फ 25,000 रुपये हो गई. एफडी के विपरीत इक्विटी में निवेश जोखिम भरा हो सकता है. क्योंकि वो मार्किट रिस्क के अधीन हैं .
संक्षेप में कहें, तो इन्फ्लेशन शेयर मार्केट के साथ लड़ाई हार गया है. खासकर लंबी अवधि के इक्विटी निवेश में. शॉर्ट टर्म में, मार्केट बहुत अधिक वोलेटाइल होते हैं.
पिछले वर्ष -2020 और वर्तमान वर्ष 2021 पर एक नज़र डालें – मार्केट में काफी उतार-चढ़ाव देखने को मिला. महामारी ने हमें न केवल मार्केट के निचले स्तर को बल्कि उच्च स्तर को भी दिखाया है.
जनवरी 2020 में सेंसेक्स 40,000 के आसपास था और मार्च 2020 में महामारी के प्रकोप का बाजारों पर बड़ा प्रभाव पड़ा और लगभग हर एक स्टॉक क्रैश हो गया.
सेंसेक्स केवल 2 महीने की अवधि में 25,000 के स्तर तक पहुंच गया. हालांकि, बाजार 5-6 महीने की अवधि में ठीक हो गए और जनवरी 2021 में सेंसेक्स 51,000 को पार कर गया था.
इस अवधि में जिन लोगों ने अपना पैसा इक्विटी में निवेश किया उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ. इससे पता चलता है कि इक्विटी इन्फ्लेशन को मात दे सकती है और निवेशकों को लंबी अवधि के लिए निवेशित रहने पर पॉजिटिव रिटर्न देने में सक्षम है.