Tax Regime: देश में नई टैक्स व्यवस्था (Tax Regime) सरकार ने लागू कर दी है, अब आपको समझना है कि आपके लिए क्या बेहतर होगा. टैक्सपेयर्स के मुताबिक, आपको पुरानी और नई टैक्स व्यवस्था में से किसी एक चुनना चुनौतीपूर्ण लग सकता है. जानिए आपकी कमाई के लिए लिहाज से कौन सी व्यवस्था ज्यादा बेहतर साबित होगी? सरकार ने 2020 बजट के दौरान नई टैक्स व्यवस्था की घोषणा की थी. टैक्सपेयर्स को जरूरी मदद प्रदान करना और टैक्स कानून को सुव्यवस्थित करना इसका उद्देश्य बताया गया. जबकि दूसरा अन्य उद्देश्य टैक्सपेयर्स को टैक्स विशेषज्ञों पर निर्भरता से मुक्त करना और अपने टैक्स को स्वतंत्र रूप जमा कराना है.
दो तरीकों से, नई टैक्स व्यवस्था पुरानी से अलग है. पहला, नई टैक्स व्यवस्था में टैक्स स्लैब्स की संख्या ज्यादा है, 15 लाख से कम आय वालों के लिए दरों में कमी का समर्थन किया गया है.
दूसरा नई टैक्स व्यवस्था में टैक्सपेयर्स के लिए उपलब्ध सभी छूटों और कटौतियों को समाप्त करती है.
जैसा की आप देख सकते हैं, नई टैक्स व्यवस्था में 5 लाख से 7.5 लाख रुपए की कमाई वाले लोगों को 10 फीसदी और 7.50 लाख से 10 लाख तक कमाई वालों को 15 फीसदी टैक्स लगेगा.
मौजूदा टैक्स व्यवस्था में इतनी कमाई वालों की पूरी रेंज में 20% फ्लैट दर थी. पुरानी टैक्स व्यवस्था में 10 लाख से ज्यादा कमाई वालों को 30 फीसदी टैक्स देना पड़ता था, अब नई व्यवस्था में इसको तीन हिस्सों में बांट दिया गया है.
जैसे 10 लाख से 12.5 लाख कमाई वालों को 20 फीसदी, 12.5 लाख से 15 लाख रुपए कमाई वालों को 25 फीसदी और 15 लाख से ज्यादा कमाई वालों को 30 फीसदी टैक्स देना पड़ेगा.
वर्तमान टैक्स व्यवस्था के बारे में कहा जा सकता है कि ये जटिल है. इसमें टैक्स रेट ज्यादा है, लेकिन कई रणनीतियों के तहत आप इस टैक्स को कम भी कर सकते हैं.
सरकार ने टैक्सपेयर्स को 70 से अधिक एक्सक्लूजन्स और कटौती के ऑप्शन दिए हैं. इनकम टैक्स एक्ट के तहत मिलने वाली छूट का दशकों से फायदा उठाकर टैक्सपेयर्स अपनी देयता कम कर रहे थे.
कुछ छूट जैसे, हाउस रेंट एलाउंस यानि एचआरए और लीव ट्रैवल एलाउंस आपकी तनख्वाह में शामिल थीं, टैक्स में कटौती आपको विशिष्ट विकल्पों में निवेश, बचत या खर्च करके अपनी टैक्स देयता को कम करने की आजादी देती है.
टैक्सपेयर्स को सबसे ज्यादा छूट 80 सी के तहत मिलती है, जो आपकी टैक्सेबल सैलरी को 1.5 लाख रुपए तक कम कर देता है. इसके अलावा, अलग-अलग सेक्शन के लिए आपको लोन (घर और शिक्षा) पर ब्याज से लेकर हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम तक के खर्चों में कटौती करने में मदद करते हैं.
छूट और कटौती की मदद से आप अपनी टैक्सेबल कमाई को कम कर सकते हैं. हालांकि हमें ये भी समझना होगा कि टैक्सेबल कमाई को कम करने के लिए हर साल अलग अलग विकल्पों में निवेश और बचत करनी पड़ेगी, इसी के आधार पर आपकी देयता कम होगी.