टैक्स भरने वाला कोई व्यक्ति अगर नई कर व्यवस्था के हिसाब से चल रहा है, तो उसकी पहली गलती ये मानना होगी कि वो 80C के तहत डिडक्शन क्लेम कर सकता है. 80C के तहत कटौती का दावा सिर्फ तभी किया जा सकता है जब वो किसी फाइनेंशियल ईयर में पुरानी कर व्यवस्था का ऑप्शन चुनता है. सेक्शन 80C के तहत, आपकी कुल आय से 1.5 लाख रुपये पर कटौती का दावा किया जा सकता है.
हालांकि, ये याद रखना जरूरी है कि धारा 80C के तहत मौजूद इन्वेस्टमेंट की कुछ संभावनाएं शर्तों के साथ आती हैं. एक टैक्सपेयर को इन शर्तों या बारीकियों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे गलत टैक्स प्लानिंग हो सकती है. धारा 80C के तहत निवेश करते समय यह जानकारी जरूर होना चाहिए.
लॉक-इन अवधि(Lock-in period): धारा 80c के तहत कुछ डिडक्शन लॉक-इन पीरियड के आधार पर किए जाते हैं. उदाहरण के लिए, फिक्स्ड डिपॉजिट (fixed deposits) में निवेश पांच साल के लॉक-इन के साथ आता है, जबकि इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम (ELSS) में तीन साल की लॉक-इन अवधि है.
करदाता लॉक-इन पीरियड के खत्म होने तक इसे वापस नहीं ले ले सकता. सुरेश सुराणा, संस्थापक, आरएसएम इंडिया(RSM India) ने कहा, “अगर कोई करदाता लॉक-इन पीरियड का उल्लंघन करता है, तो डिडक्शन की रकम (ELSS के मामले में) या करदाता की वापस ली गई रकम(FD के मामले में) धारा 80C के तहत उसकी आय मानी जाएगी. वहीं फाइनेंशियल ईयर के आखिर में उस पर टैक्स लगाया जाएगा ”.
पीपीएफ जैसे लंबे समय के लिए किए जाने वाले निवेश में 15 साल का लॉक-इन पीरियड होता है और तभी ये धारा 80C के तहत माने जाते हैं. अभिषेक सोनी, Tax2win.in के सह-संस्थापक और सीईओ ने बताया “हमेशा ऐसे इन्वेस्टमेंट चुनें जो आपके फाइनेंशियल टारगेट को भी ध्यान में रखे. इसके अलावा, हमेशा निवेश के बाद मिलने वाले रिटर्न पर कितना टैक्स बनता है और निवेश की मैच्योरिटी के समय मिलने वाली रकम पर लगने वाले टैक्स के बारे में भी सोचें “.
इस बात का ध्यान रखें कि धारा 80C दोस्तों और रिश्तेदारों से लिए गए लोन के प्रिंसिपल कम्पोनेंट के रीपेयमेंट को कवर नहीं करती है. यानी घर खरीदने के लिए दोस्तों और रिश्तेदारों से लिए गए प्राइवेट लोन पर देने वाले ब्याज पर आईटी एक्ट अधिनियम की धारा 24(u/s 24 of the IT Act) के तहत क्लेम का दावा किया जा सकता है.
सुरेश सुराणा ने कहा, “होम लोन के प्रिंसिपल कम्पोनेंट पर क्लेम के लिए ये लोन कुछ खास संस्थाओं, व्यक्तियों से लिया जाना चाहिए. धारा 80C(2)(xviii)(c) के तहत इसमें सहकारी बैंक, लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन, नेशनल हाउसिंग बैंक शामिल हैं.
अगर ये आवासीय संपत्ति से संबंधित भुगतान की गई फीस है तो धारा 80C के तहत कर कटौती का दावा किया जा सकता है. एसएजी इन्फोटेक के एमडी, अमित गुप्ता ने बताया,“स्टैंप ड्यूटी और नामांकन शुल्क के साथ-साथ इसमें दूसरे खर्च भी शामिल हैं जो सीधे घर के ट्रांसफर से संबंधित हैं और धारा 80C के तहत अनुमत है. ये खर्च खरीदी गई या निर्माण की गई संपत्ति पर हुए खर्च के अलावा कुछ और नहीं होना चाहिए ”.
स्कूल-ट्यूशन के मामले में भारत में अधिकतम दो बच्चों के फुल टाइम एजुकेशन फीस पर कर कटौती दावा किया जा सकता है और यहां सिर्फ शिक्षण शुल्क वाला हिस्सा ही कटौती के लिए पात्र होगा.