Capital Gain Tax: आपको पुराना घर बेचने से फायदा हो रहा है और आप टैक्स बचाना चाहते हैं तो आयकर कानून की धारा के तहत ऐसा करना मुमकीन है, लेकिन आपको कुछ नियमों को ध्यान में रखना होगा. यदि आपकी इनकम टैक्सेबल नहीं है फिर भी, प्रॉपर्टी बेचने से होने वाले मुनाफे के लिए टैक्स चुकाना आवश्यक है. टैक्स से जुड़े नियमों को जानने से पहले हमें यह पता होना चाहिए कि प्रोपर्टी बेचने से होने वाले मुनाफे पर टैक्स की गीनती कैसे होती है और टैक्स का रेट कितना होता है.
होल्डिंग अवधि के आधार पर लगता है टैक्सः
प्रॉपर्टी बेचने के बाद जो प्रोफिट होता है उसे केपिटल गेइन के तहत गीना जाता है. यदि आप 24 महीने से अधिक समय तक प्रोपर्टी के मालिक रहने के बाद उसे बेचते है तो इंडेक्सेशन बेनिफिट के बाद होने वाले मुनाफे को लोंग टर्म केपिटल गेइन (LTCG) गीना जाता है, और उस पर 20.08% टैक्स लगता है. ये टैक्स आपके टैक्स स्लैब के बावजूद लागू होता है. यदि आप 24 महीने से कम अवधि में प्रोपर्टी बेचते है तो होने वाले मुनाफे को शोर्ट-टर्म केपिटल गेइन (STCG) के तहत गीना जाता है और आपके टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स लागू होता है.
कौन से विकल्प से बचा सकते हैं टैक्सः
टैक्स एक्सपर्ट LTCG को अच्छा मानते हैं क्योंकि इस टैक्स से बचने के लिए आयकर कानून के तहत कई छूट मिलती है, वहीं STCG के मामले में आपको कोई छूट नहीं मिलती. आप लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन के मामले में टैक्स बचाने के लिए नई प्रॉपर्टी खरीद सकते हैं या सरकारी बॉन्ड में निवेश कर सकते हैं.
नई रेसिडेंशियल प्रॉपर्टी में निवेशः
प्रॉपर्टी बेचने से होने वाले लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स से यदि आप 2 साल के भीतर दूसरी रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी खरीदते हैं तो सेक्शन 54 के तहत टैक्स में छूट का दावा कर सकते हैं. यदि आपने प्रॉपर्टी बेचने के एक साल पहले दूसरी रेजिडेंशियल प्रॉपर्टी में निवेश किया होगा तो उसे भी सेक्शन 54 के तहत छूट मिलती है.
याद रखें, आप केवल एक प्रॉपर्टी के मालिक हैं और दूसरी प्रॉपर्टी ले रहे हैं तभी ये बेनेफिट मिलता है. यदि आप तीसरी प्रॉपर्टी खरीद रहे है तो ये बेनेफिट नहीं मिलेगा. अगर आप दो संपत्तियों में आय का पुनर्निवेश कर रहे हैं, तो कटौती केवल तभी उपलब्ध होगी जब संपत्ति की बिक्री पर कैपिटल गेन्स 2 करोड़ रुपये से ज्यादा न हो.
पूरी लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स की राशि पर छूट का दावा करने के लिए, पूरे मुनाफे को नई प्रॉपर्टी में रीइन्वेस्ट किया जाना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता है तो छूट केवल निवेश की गई राशि तक सीमित होगी.
यदि आप अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रोपर्टी खरीदना चाहते है या नया घर कंस्ट्रक्शन करवाना चाहते है तो भी ये छूट मिलती है, लेकिन प्रोपर्टी बेचने के तीन साल के भीतर अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रोपर्टी का पजेशन मिलना आवश्यक है.
सरकारी बॉन्ड्स खरीदने पर सेक्शन 54EC के तहत छूटः
आप लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन को 6 महीने के भीतर कुछ खास बॉन्ड्स में निवेश करके सेक्शन 54EC के तहत टैक्स बचा सकते हो. रेलवे फाइनेंस कॉरपोरेशन (RFC), नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI), रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन (REC) इत्यादि जैसे वित्तीय संस्थानो के बॉन्ड में ही निवेश करना आवश्यक है.
ऐसे बॉन्ड में सालना 5.25% ब्याज मिलता है और इनमें निवेश की लॉक इन सीमा 5 साल है. इस अवधि के बाद मिलने वाला ब्याज पूरी तरह टैक्सेबल है, लेकिन मैच्योरिटी इनकम पूरी तरह टैक्स-फ्री है.