जब बेहतर रिटर्न की बात आती है तो परंपरागत निवेशकों के लिए बहुत ज्यादा विकल्प नहीं हैं. इनमें एक विकल्प सुरक्षित नॉन-कनवर्टिबल डिबेंचर (एनसीडी) है, जो आपको नियमित आय भी दे सकता है. कॉरपोरेट लंबी अवधि के प्रोजेक्ट की खातिर जनता से संसाधन या फंड जुटाने के लिए निश्चित अवधि के NCDs जारी करते हैं. कनवर्टिबल डिबेंचर के जैसे, NCDs को इक्विटी में तब्दील नहीं किया जा सकता है. यह बैंक में फिक्स्ड डिपॉजिट या कॉरपोरेट डिपॉजिट की तरह एक फिक्स्ड इनकम है, जिसका इस्तेमाल स्टॉक एक्सचेंज में किया जा सकता है.
इससे होने वाली ब्याज की कमाई आप मासिक, त्रैमासिक और सालाना तौर पर ले सकते हैं. मैच्योरिटी पर प्रिंसिपल अमाउंट निवेशक को मिल जाएगा. NCDs पर मिलने वाली ब्याज, फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में ज्यादा होता है. वर्तमान में दो NCDs चल रहे हैं.
Edelweiss फाइनेंशियल सर्विसेज ने आठ सीरीज की NCDs जारी की है, जिस पर फिक्स्ड ब्याज दर 8.75-9.7% की है. इन NCDs की अवधि 36 महीने, 60 महीने और 120 महीने है. कंपनी का प्लान 200 करोड़ रुपए के ग्रीनशू ऑप्शन के साथ 200 करोड़ रुपए जुटाने का है. यह NCDs 6 सितंबर को बंद हो जाएगी.
गोल्ड लोन नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी मुत्थुट मिनी फाइनेंसर्स ने NCDs लॉन्च की है. मुथूट मिनी फाइनेंसर्स NCDs पर सालाना 10.71 फीसदी ब्याज ऑफर कर रहे हैं. ये NCD 9 सितंबर को बंद हो जाएगी. कंपनी का प्लान है कि NCD के जरिए वो बाजार से 125 करोड़ रुपए जुटाएगी, साथ ही 125 करोड़ ओवर सब्सक्रिप्शन का विकल्प है. जो कुल मिलाकर 250 करोड़ रुपए होता है. कंपनी का कहना है कि सिक्योर्ड NCD की हिस्सेदारी 200 करोड़ और अनसिक्योर्ड NCD की हिस्सेदारी 50 करोड़ रुपए है.
क्या आपको NCD में निवेश करना चाहिए?
NCD जहां आपको आकर्षक रिटर्न का ऑफर करती हैं, दूसरी तरफ इसमें पेमेंट अटकने के भी चांस होते हैं. सभी NCD क्रेडिट एजेंसियों द्वारा क्रेडिट रैंकिंग के हिसाब से जारी होती हैं. ये अकेले आपके पैसे की सुरक्षा की गारंटी नहीं देती है. क्रेडिट फेयर के फाउंडर, आदित्य दमानी ने बताया, “हमें हाई क्वालिटी वाली एनबीएफसी और कॉरपोरेट्स एनसीडी का समर्थन करना चाहिए, ताकि डिफॉल्ट के कम से कम जोखिम को सुनिश्चित किया जा सके. उधार देने का मॉडल, ऑपरेशन्स और गवर्नेंस सबसे बेहतर होने चाहिए. मैं निवेशकों को सलाह देना चाहूंगा कि चीजों को क्रेडिट रैकिंग से आगे देखें और कंपनी के फंडामेंटल्स की खुद जांच करें.”
इसके साथ ही ब्याज की दर के परिदृश्य को भी अच्छी तरह देखें. दमानी ने कहा कि NCDs फिक्स्ड रिटर्न देती हैं, अगर ब्याज दरें बढ़ती हैं तो निवेशक एनसीडी की कीमत में गिरावट देख सकता है. “वर्तमान परिदृश्य में बढ़ती महंगाई से ये उम्मीद की जा रही है कि ब्याज दरों में इजाफा होगा तो निवेशकों को बेहद सावधान रहना चाहिए.”
लिक्विडिटी और टैक्सेशन
NCDs के साथ एक और चुनौती लिक्विडिटी की कमी होना है. भले ही एनसीडी स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्टेड हैं, लेकिन जब आप अपने NCDs को बेचना चाहते हैं तो पर्याप्त खरीदार नहीं हो सकते हैं. उनका मानना है कि “ कई NCDs में न्यूनतम ट्रेडिंग वॉल्यूम देखने को मिला है और इमरजेंसी में बेचने के दौरान परेशानी का सामना करना पड़ा है.”
इसके अलावा, NCDs पर स्लैब के आधार पर इनकम टैक्स रेट लगता है. सबसे ज्यादा स्लैब रेट वाले लोगों को केवल ब्याज दरों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय अपने पोस्ट टैक्स रिटर्न की कैलकुलेशन करनी चाहिए.
NCDs vs कॉरपोरेट FDs
कॉरपोरेट एफडी अनसिक्योर्ड होती हैं. इसका मतलब कि डिफॉल्ट के केस में, आपके पैसों पर खतरा रहेगा. सिक्योर्ड NCDs के केस में, कंपनी को निवेशकों का पैसा चुकाने के लिए अपनी संपत्तियों को बेचना पड़ता है. कॉरपोरेट FD इस मायने में अच्छी नहीं है कि अगर आप अपने निवेश रिडीम करना चाहते हैं तो आपको पेनल्टी देनी होगी.
दमानी ने कहा, “इसमें सबसे जरूरी बिंदू है कि एफडी और NCD को जारी करने वाले पर फोकस करना. यदि दो जारीकर्ता समान क्षमता के हैं तो NCD बेहतर होना चाहिए क्योंकि यह आमतौर पर सुरक्षित और ज्यादा लिक्विड होती है.”
आखिरी फैसला सुनाते हुए, दमानी ने सलाह दी कि छोटी अवधि की NCDs में निवेश करें. उन्होंने कहा कि “कॉरपोरेट/NBFCs (3 साल तक के लिए) में निवेश करें और लंबी अवधि के लिए सरकार द्वारा समर्थित डेट में निवेश करें, क्योंकि NCD के मामले में अनुमान लगाना कठिन है कि कौन सी कंपनी मे अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड मैंटेन किया हुआ है और क्या वो लंबे वक्त तक फायदेमंद रहेगी?.”