Bond: काफी लोगों को अपने इंवेस्टमेंट से मंथली इनकम चाहिए होती है, लेकिन स्टॉक मार्केट से दूर रहना चाहते हैं. दूसरी और एफडी में रिटर्न कम मिलता है.
ऐसे में एक रास्ता निकलता है बान्ड्स (Bond) का. जहां एफडी से ज्यादा रिटर्न मिलता है और स्टॉक मार्केट से रिस्क कम होता है.
अगर कंपनी को पैसा चाहिए तो वो शेयर इश्यू करेगी या बैंक से लोन लेगी. शेयर इश्यू करेगी, तो अपना हिस्सा घटाना पड़ेगा और लोन लेगी तो ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ेगा. तो अब कंपनी लोगों से सीधे पैसे जुटाएगी.
यानी कंपनी अगर लोगों से पैसा उधार ले रही है, तो उसे बॉन्ड कहा जाएगा. ठीक उसी तरह से जब सरकार को महत्वपूर्ण कार्यों के लिए पैसे की जरूरत होती है तो पैसा इकट्ठा करने के लिए बॉन्ड (BOND) जारी करती है.
बॉन्ड एक पत्र के फॉर्मैट में होता है. इस पर बॉन्ड की फेस वैल्यू या बॉन्ड का प्राइस भी लिखा होता है और उस पर मिलने वाला ब्याज दर भी लिखा होता है.
बॉन्ड की ब्याज दर को कूपन रेट भी कहते हैं. इसका टाइम पीरियड एक से लेकर दस साल या फिर इससे ज्यादा भी हो सकता है. बॉन्ड की मैच्योरिटी पर नियम अनुसार पैसा वापस मिल जाता है.
सरकारी बॉन्ड से इकट्ठा किया गया पैसा सरकारी योजनाओं में लगाया जाता है और इस पैसे की जिम्मेदारी पूरी तरह से सरकार की होती है. इसलिए सरकारी बॉन्ड काफी सुरक्षित माने जाते हैं.
जब लोकल सरकार या नगर निगम को अपने प्रोजेक्ट, सड़क या स्कूल बनाने या सरकारी कामों के लिए पैसे की जरूरत होती है, तो ऐसी स्थिति में राज्य सरकार भी बॉन्ड जारी कर सकती है. इस तरह के बॉन्ड को म्युनिसिपल बॉन्ड कहते हैं.
कॉर्पोरेट बॉन्ड वह होते हैं, जो प्राइवेट सेक्टर के जरिए जारी किये जाते हैं. कॉर्पोरेट सेक्टर तब बॉन्ड जारी करती है, जब उन्हें कर्ज की जरूरत होती है. कॉर्पोरेट बॉन्ड पर इंटरेस्ट रेट ज्यादा होता है, लेकिन ये थोड़ा जोखिम भरा माना जाता है.
सिक्योर बॉन्ड ऐसे बॉन्ड होते हैं, जिनमें आपका पैसा सुरक्षित होता है. मतलब अगर आपने किसी कंपनी के बॉन्ड पर अपना पैसा लगाया है और वह कंपनी लगातार घाटे में चल रही है, तो इस स्थिति में भी आपको आपका पैसा तय किये गए हिसाब से ही मिलेगा.
अगर कंपनी ऐसा करने से मना करती है, तो आप उस कंपनी पर केस कर सकते हैं.
इनसिक्योर बॉन्ड काफी जोखिम भरे होते हैं. इसमें अगर कंपनी घाटे में जाती है या काफी मुनाफा कमाती है और वह आपका पैसा रिटर्न नहीं करना चाहती है, तो इसमें आप कंपनी के खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले सकते हैं.
ज़ीरो कूपन बॉन्ड में कंपनी आपको कोई इंटरेस्ट नहीं देती है. इसमें प्रॉफिट अलग तरह से कमाया जाता है.
अगर किसी कंपनी के बॉन्ड की प्राइस वैल्यू 1000 रुपये है और वह ज़ीरो कूपन बॉन्ड है, तो आप उस बॉन्ड को 900 रुपये में खरीद सकते हैं. 100 रुपये के इस बॉन्ड पर आपका मुनाफा होगा.
प्रपैचुअल बॉन्ड में इंटरेस्ट रेट भी काफी अच्छा होता है. इसकी ख़ास बात यह होती है कि आपके द्वारा खरीदे गए बॉन्ड से आपको कंपनी में हिस्सेदारी मिलती है.
यह स्टॉक या फिर इक्विटी की तरह होते हैं. यानि जितने बॉन्ड आपने खरीदें होंगे, कंपनी पर उतने प्रतिशत का आपका मालिकाना हक़ होगा.
इनफ्लेशन बॉन्ड में बॉन्ड का इंटरेस्ट रेट महंगाई की चाल पर निर्भर करता है. महंगाई के हिसाब से आपके बॉन्ड पर इंटरेस्ट रेट घटता और बढ़ता रहता है.
अगर कंपनी तय समय से पहले ही अपने द्वारा जारी किये गए बॉन्ड को वापस खरीदना चाहती है, तो वह ऐसा कॉलबल बॉन्ड के अंर्तगत कर सकती है.
कंपनी अगर कम समय में अच्छा मुनाफा कमा लेती है और वह चाहती है कि लिया गया कर्ज जल्दी ही वापस कर दिया जाए तो वह कर सकती है.
इस बॉन्ड में आप अगर किसी कंपनी में हिस्सेदारी लेना चाहते हैं यानि किसी कंपनी के शेयर होल्डर बनना चाहते हैं तो आप अपने बॉन्ड को स्टॉक में बदल सकते हैं.
अगर आपके पास कंपनी के कुछ बॉन्ड हैं तो आप उन्हें शेयर्स में बदलकर शेयर धारक बन सकते हैं.
बॉन्ड लांग टर्म इन्वेस्टमेंट का एक अच्छा तरीका है. अगर आप बॉन्ड में इन्वेस्टमेंट करना चाहते हैं, तो पहले रिसर्च जरूर करें. सरकारी और पीएसयू कंपनी के बॉन्ड सिक्योर होते हैं.
बॉन्ड को pledge के तौर पर यूज कर सकते हैं. बॉन्ड के आईपीओ में आप मिनिमम 10,000 रुपये से इंवेस्ट कर सकते हैं. टेक्स फ्री बॉन्ड में इंवेस्ट करके आप टेक्स बचा सकते हैं.