रिपोर्ट में साफ होता है कि कुल जीडीपी में सरकार का स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च बढ़ा है. सरकार ने 2017-18 में कुछ जीडीपी का 1.3 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया है
कोरोना ने अच्छे हेल्थकेयर का महत्व पूरी दुनिया को याद दिलाया है. महामारी जैसी परिस्थितियों में यह बड़े हथियार की तरह काम करता है.
ब्लॉकचेन के बारे में हमारा ज्ञान अभी तक सिर्फ बिटकॉइन तक ही सीमित हो, इस संकल्पना का स्वास्थ्य बीमा में उपयोग हो सकता है
बीमा योजना का अहम पहलू होता है कि उसमें कितना कवर मिल रहा है. इसे लेकर किसी तरह का समझौता नहीं करना चाहिए. उसके तहत मिलने वाली राशि पूरे परिवार को कवर करने में सक्षम होनी चाहिए.
बीमा योजना में केवल अस्पताल के खर्चे भर शामिल नहीं होने चाहिए. आउटपेशेंट कंसल्टेशन और जांच को भी इसका हिस्सा होना चाहिए. प्लान को उसकी कॉस्ट के बजाय उसमें मिल रहे लाभ और कवर को ध्यान में रखकर खरीदा जाना चाहिए.
स्टूडेंट्स और नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को देश से बाहर जाने की जरूरत पड़ सकती है. ऐसे में हेल्थ कवर में ग्लोबल हॉस्पिटलाइजेशन, भर्ती होने से पहले और बाद की जांच शामिल कराए जाने पर जोर दिया जा सकता है.
बहुत से लोगों में डे केयर और ओपीडी ट्रीटमेंट के बीच के अंतर को समझने में खासा दिक्कत होती है,
बीमा के तहत मिलने वाली राशि बढ़ाने या दूसरी पॉलिसी को पोर्टफोलियो में जोड़ने जैसे कई तरीके होते हैं, जिनकी मदद से प्लान को समय के साथ अपग्रेड किया जा सकता है.
एक सुपर टॉप-अप प्लान खरीदना अच्छा आइडिया हो सकता है. इसपर पैसा कम खर्च होता है. यह आपातकालीन स्थितियों में काम आ सकता है.
सालाना आय का 10 गुना प्रोटेक्शन देने वाला कवर भी खरीदना चाहिए, जिसके तहत गंभीर बीमारियों को शामिल किया जा सके. इन बीमारियों के चलते पॉलिसी के तहत पहले से तय एक राशि भुगतान की जाएगी, जो हेल्थ क्राइसिस के समय अतिरिक्त आय के रूप में काम करेगी.
इंश्योरेंस कंपनी आपका हेल्थ स्टेटस जानने के बाद पॉलिसी को जारी करते हैं. कई मामलों में, खरीदने वाला का मेडिकल टेस्ट भी जरूरी होता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इंश्योरेंस कंपनी आपकी हेल्थ के बारे में जानना चाहती थी.