धूम्रपान की आदत से ही कैंसर होता है ये स्वीकार नहीं किया जा सकताः उपभोक्ता अदालत

कोर्ट ने बीमा कंपनी को 93,297 रुपये का मेडिक्लेम और को मानसिक उत्पीड़न और कानूनी खर्च के मुआवजे के लिए 5,000 रुपये अतिरिक्त देने का आदेश दिया है.

Non-smokers get cancer too, insurer can’t stub claim: Gujarat court

Pixabay - धूम्रपान न करने वालों को भी फेफड़ों का कैंसर हो जाता है और यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि धूम्रपान करने वालों को फेफड़ों का कैंसर है.

Pixabay - धूम्रपान न करने वालों को भी फेफड़ों का कैंसर हो जाता है और यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि धूम्रपान करने वालों को फेफड़ों का कैंसर है.

Health Insurance: धूम्रपान करने वाले के लिए बीमा कंपनियां अधिक प्रीमियम चार्ज करती हैं और यदि आप बीमा पॉलिसी लेते वक्त धूम्रपान की आदत छिपाते हैं, तो बाद में आपका क्लेम खारिज हो सकता हैं. धूम्रपान से जुड़ा एक अनोखा मामला सामने आया है, जिसमें धूम्रपान की आदत वाले व्यक्ति के खारिज किए गए क्लेम को पास करने का आदेश दिया गया है. गुजरात की उपभोक्ता अदालत ने एक बीमा कंपनी को फेफड़ों के कैंसर के इलाज पर होने वाले खर्च की प्रतिपूर्ति करने का आदेश दिया है, क्योंकि कंपनी ने इस आधार पर मेडिक्लेम से इनकार कर दिया था कि मरीज एक चेन स्मोकर था और उसके धूम्रपान के कारण कैंसर हुआ था. उपभोक्ता अदालत ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि कैंसर मरीज की धूम्रपान की आदत के कारण हुआ था.

इस मामले में अहमदाबाद के थलतेज में रहने वाले आलोक कुमार बनर्जी शामिल थे, जिन्होंने जुलाई 2014 में वेदांत इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस से फेफड़े के एडेनोकार्सिनोमा (adenocarcinoma) का इलाज कराया और 93,297 रुपये का मेडिकल बिल खर्च किया. उनके पास मेडिकल इंश्योरेंस कवर था, लेकिन उनके दावे को बीमाकर्ता ने खारिज कर दिया था.

बनर्जी के निधन के बाद, उनकी विधवा स्मिता ने 2016 में उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, अहमदाबाद (एडिशनल) में बीमाकर्ता पर मुकदमा दायर किया, जहां बीमा कंपनी ने बचाव किया कि बनर्जी का उनकी बीमारी के लिए विभिन्न अस्पतालों में इलाज किया गया था, जिसका सीधा संबंध उनकी धूम्रपान की आदत के साथ था, और यह उनके केस पेपर्स में परिलक्षित होता था.

इस दलील से उपभोक्ता आयोग नहीं माना. इसने एक उच्च अदालत के आदेश का हवाला दिया और कहा कि किसी भी स्वतंत्र सबूत के अभाव में एक डिस्चार्ज समरी को प्राथमिक या निर्णायक सबूत के रूप में नहीं माना जा सकता है. इस मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं था जिससे यह पता चले कि मरीज को धूम्रपान के कारण कैंसर हुआ था.

बीमा कंपनी के डॉक्टर ने चिकित्सकीय राय दी कि धूम्रपान करने वालों में कैंसर होने का खतरा 26 गुना अधिक होता है. इस पर आयोग ने कहा कि केवल इस राय के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि मरीज को उसकी धूम्रपान की आदत के कारण कैंसर हुआ था. धूम्रपान न करने वालों को भी फेफड़ों का कैंसर हो जाता है और यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि धूम्रपान करने वालों को फेफड़ों का कैंसर है.

आयोग ने कहा कि यह स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि शिकायतकर्ता के पति को उसकी धूम्रपान की आदत के कारण कैंसर हो गया था और बीमाकर्ता ने गलत तरीके से दावे को खारिज कर दिया था.

बीमा कंपनी को चिकित्सा खर्च वापस करने का आदेश देने के अलावा, आयोग ने शिकायतकर्ता को मानसिक उत्पीड़न और कानूनी खर्च के मुआवजे के लिए 5,000 रुपये अतिरिक्त देने को कहा है.

Published - October 4, 2021, 05:33 IST