ज्यादातर लोगों की सबसे बड़ी चिंता वित्तीय सुरक्षा को लेकर होती है. बीमा भी इसे सुरक्षित करता है और ऐसे में एक आम व्यक्ति के लिए ये बेहद अहम है. महामारी के दौरान भारतीयों के लिए इंश्योरेंस की जैसी जरूरत पैदा हुई है, वैसी पहले कभी नहीं हुई. तमाम लोग इस दौरान स्वास्थ्य और जीवन बीमा लेने के लिए आगे आए हैं.
ज्यादातर भारतीयों के लिए अभी भी इंश्योरेंस का मतलब लाइफ और हेल्थ इंश्योरेंस है. हालांकि, प्रॉपर्टी, हाउस या गाड़ी हो, इंश्योरेंस अब हमारी जीवन के हर पहलू में शामिल हो गया है. यहां तक कि टीवी, मोबाइल फोन जैसे गैजेट्स भी बीमा के दायरे में आ गए हैं. इसके साथ ही साइबर फ्रॉड के खिलाफ बीमा कवर का कॉन्सेप्ट भी अब रफ्तार पकड़ रहा है.
लेकिन, कुछ कंपनियों के पेश किए जा रहे नए उत्पादों के बावजूद भारत में अभी भी बीमा का दायरा काफी कम है. 2020-21 के आर्थिक सर्वे में कहा गया है कि 2001 में देश में इंश्योरेंस का दायरा 2.71 फीसदी था, जो कि 2019 में बढ़कर 3.76 फीसदी पर पहुंच गया है.
चीन, मलेशिया और थाइलैंड जैसे देशों में भी बीमा की पहुंच भारत से ज्यादा है. इन देशों में बीमा की पहुंच क्रमशः 4.30%, 4.72% और 4.99 फीसदी है.
देश में बीमा के मार्केट का विस्तार करने और इस सेक्टर को और ज्यादा मजबूत बनाने के लिए इंडस्ट्री को ऐसे ज्यादा लाइफ, हेल्थ और प्रॉपर्टी प्रोडक्ट्स चाहिए जो कि सस्ते भी हों. दूसरे शब्दों में, ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसके दायरे में लाना चाहिए ताकि प्रीमियम कम हो सके. इंश्योरैंस कंपनियों को तेजी से क्लेम सेटल करने चाहिए ताकि लोगों का बीमा कंपनियों में भरोसा पैदा हो सके.
इसके साथ ही, आबादी का एक बड़ा हिस्सा वित्तीय असुरक्षा से जूझ रहा है, लेकिन ये बीमा की जरूरत को नहीं समझते हैं. इंश्योरेंस कंपनियां और सरकार को इन्हें जागरूक करने की जरूरत है.
इंश्योरेंस से देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलती है क्योंकि ये सेक्टर लंबे वक्त का फंड मुहैया कराता है. इस फंड का इस्तेमाल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए किया जा सकता है जिससे रोजगार पैदा होते हैं.
सरकार को बीमा की पहुंच के मसले को गंभीरता से लेना चाहिए. इस दिशा में ठीक वैसे ही काम होना चाहिए जैसे कि बैंक खातों को खुलवाने में किया गया था.
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