हमारे देश में वरिष्ठ नागरिक पहले से ही छोटी बचत योजनाओं की ब्याज दरों में गिरावट का सामना कर रहे हैं. अब इन्हें एक और ऐसी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है जिसके बारे में कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही है.
BP, डायबिटीज और दूसरी गंभीर बीमारियों की दवाओं में 50 फीसदी इजाफा हुआ है. साइकिएट्रिक दवाओं और सर्जरी आइटमों के दाम भी बढ़े हैं. इसके अलावा, एंटीबायोटिक्स के दाम भी बढ़े हैं.
चूंकि, इन दवाओं का कोई विकल्प नहीं है, ऐसे में उम्रदराज लोगों को अपने रिटायरमेंट फंड का एक बड़ा हिस्सा इन पर खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी आराम से काटने की बजाय इस तबके को दवाइयों को खरीदने की फिक्र के साथ जीना पड़ रहा है.
एक बड़ी चिंता ये है कि महामारी के बाद की दुनिया शायद एक बड़े तबके के लिए और ज्यादा मुश्किल हो गई है क्योंकि ज्यादातर वरिष्ठ नागरिक अपनी जरूरतों के लिए बच्चों पर निर्भर हैं. मौजूदा हालात में ज्यादातर लोगों की या तो नौकरी छूट गई है या फिर उनकी कमाई घट गई है. इससे वरिष्ठ नागरिकों के लिए मुश्किल और बढ़ गई है.
इससे इनकी गाढ़ी कमाई खत्म हो रही है और सरकार को इस महत्वपूर्ण मसले को प्राथमिकता के आधार पर सुलझाना चाहिए.
कड़ी मेहनत और त्याग करने के बाद शांति और सुरक्षा वरिष्ठ नागरिकों का हक है. ऐसे में कम से कम इनको दवाओं के मोर्चे पर आर्थिक राहत दी जानी चाहिए.
तकरीबन हर वरिष्ठ नागरिक डायबिटीज, ब्लड प्रेशर और उच्च कोलेस्ट्रॉल लेवल से जूझ रहा है. एक देश के तौर पर हमें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि इन सीनियर सिटीजंस की जेब पर दवाओं की महंगाई की मार न पड़े.
कोविड-19 महामारी ने हमारी चिंताएं बढ़ा दी हैं और इनमें से कुछ की वजह से स्थितियां काफी मुश्किल हो गई हैं. ऐसे में हमें हालात को और बिगड़ने से रोकना होगा.