निजी कंपनी में काम करने वाले मोहन हेल्थ इंश्योरेंस लेने की प्लानिंग कर रहे हैं. परिवार में पति-पत्नी और दो बच्चों के लिए कैसी पॉलिसी लें, कितना होना चाहिए कवर, सभी सदस्यों को अलग-अलग पॉलिसी लें या फैमिली फ्लोटर. इस बारे में समझ नहीं पा रहे हैं. दरअसल, हेल्थ बीमा के बाजार में दर्जनों कंपनियां कारोबार कर रही हैं. आए दिन नई-नई पॉलिसी लॉन्च हो रही हैं. इनमें से कौन सी पॉलिसी सही रहेगी, इस बारे में मोहन जैसे लोग उलझन में फंस जाते हैं. अगर आप भी हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने को लेकर उलझन में हैं तो आइए हम बताते हैं कि आपको कैसी पॉलिसी लेनी चाहिए, पॉलिसी चुनने से पहले कौन सी पांच बातें ध्यान में रखनी चाहिए.
कितना होना चाहिए कवर?
स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी महंगाई सामान्य की तुलना में करीब ढाई गुना तेजी से बढ़ रही है. सरकारी आंकड़ों में सितंबर माह में खुदरा महंगाई 5.02 फीसद रही जबकि हेल्थ केयर की महंगाई लंबे समय से 14 फीसद के स्तर पर है. ऐसे में छोटी-मोटी बीमारी के इलाज में लाखों रुपए खर्च हो जाते हैं, इसलिए परिवार के लिए पर्याप्त बीमा कवर लें. इलाज के बढ़ते खर्च को देखते हुए अगर आप छोटे शहर में रहते हैं तो प्रति व्यक्ति 10 लाख रुपए का कवर होना चाहिए. महानगरों में 20 लाख रुपए का कवर होना चाहिए.
कैसी बीमा पॉलिसी लें?
हेल्थ इंश्योरेंस में दो तरह का बीमा कवर मिलता है. इंडिविजुअल और फैमिली फ्लोटर. अगर मोहन परिवार के चारों सदस्यों के लिए 10-10 लाख रुपए कवर की अलग-अलग पॉलिसी लेते हैं तो यह डील काफी महंगी पड़ेगी. इसलिए वह फैमिली फ्लोटर प्लान ले सकते हैं. अगर मोहन 10 लाख रुपए का फैमिली फ्लोटर प्लान लेते हैं तो जरूरत पड़ने पर परिवार का कोई भी सदस्य 10 लाख रुपए तक का इलाज करा सकता है. अगर मोहन की पत्नी के इलाज पर 3 लाख रुपए खर्च हो गए हैं. बाकी के सदस्य 7 लाख रुपए रुपए तक का इलाज करा सकते हैं.
किस इलाके में रहते हैं?
छोटे शहरों की तुलना में महानगरों में इलाज कराना महंगा पड़ता है. उदाहरण के लिए हाथरस में डेंगू का इलाज 50 हजार रुपए में हो सकता है. दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में इसी इलाज में एक लाख रुपए भी खर्च हो सकते हैं. इसलिए बीमा कंपनियां आप जिस शहर में रहते हैं, उसके आधार पर प्रीमियम तय करती हैं. इसीलिए छोटे शहरों में हेल्थ पॉलिसी का बीमा प्रीमियम 20 से 30 फीसद तक कम हो सकता है. अगर हाथरस का बीमाधारक दिल्ली में इलाज कराता है तो बीमा कंपनी उसे पूरा क्लेम नहीं देगी. ऐसे में 20 से 30 फीसद तक रकम अपनी जेब से ही देनी पड़ सकती है.
रूम रेंट की कैपिंग
अस्पताल में भर्ती होने पर रूम रेंट का बड़ा खर्च होता है. बेसिक हेल्थ पॉलिसी में रूम रेंट समइंश्योर्ड का एक फीसद तक होता है. अगर तीन लाख रुपए के कवर की पॉलिसी है तो रूम रेंट 3000 रुपए रोजाना के हिसाब से ही मिलेगा. अगर एक्चुअल रूम रेंट 5000 रुपए है तो 2000 रुपए अपनी जेब से चुकाने होंगे. इसी तरह को-पेमेंट का क्लॉज होता है. इसमें बीमा कंपनी पूरा क्लेम नहीं देती. बिल का पहले से तय एक हिस्सा अपनी जेब से देना होता है. हालांकि इस क्लॉज से पॉलिसी का प्रीमियम कम हो जाता है, लेकिन इस तरह की पॉलिसी लेने से बचना चाहिेए.
रेस्टोरेशन की सुविधा
महंगाई की वजह से 5-10 लाख रुपए का कवर कब खर्च हो गया, कुछ पता नहीं चलता. आजकल कई बीमा कंपनियां अपने हेल्थ प्लान में रेस्टोरेशन की सुविधा दे रही हैं. अगर हेल्थ बीमा कवर 5 लाख रुपए है… और इलाज के दौरान 6 लाख रुपए का खर्च आ जाए तो ऐसे हालात में बीमा कंपनियां आपकी पॉलिसी में 5 लाख रुपए का सम इंश्योर्ड जोड़ देगी. इसी सुविधा को रेस्टोरेशन कहते हैं. ज्यादातर कंपनियां एक साल में सम इंश्योर्ड राशि के बराबर 3 बार तक रिस्टोर की सुविधा दे रही हैं. मामूली प्रीमियम देकर अपने बीमा कवर को तीन गुना तक बढ़ा सकते हैं. हालांकि यह सुविधा कुछ शर्तों के साथ मिलती है.
टैक्स एवं इंवेस्टमेंट एक्सपर्ट बलवंत जैन कहते हैं कि अगर आपके पास फंड की व्यवस्था है तो इंडिविजुअल पॉलिसी बेहतर विकल्प है. अगर पैसे को लेकर दिक्कत है तो फिर फैमिली फ्लोटर प्लान ले सकते हैं. आप हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी लेने से पहले बीमा कंपनी के क्लेम सेटलमेंट रेशियो और कैशलेस हॉस्पिटल के नेटवर्क पर विशेष ध्यान देना चाहिए. आपके घर के पास जो अच्छे हॉस्पिटल हैं, वो आपकी पॉलिसी के नेटवर्क में शामिल होने चाहिए. सेहत की सुरक्षा के लिए हेल्थ बीमा बहुत जरूरी है. इस कवर को आप जितनी जल्दी लेंगे, उतना ही ज्यादा फायदे में रहेंगे. अगर पैसे की तंगी के कारण बड़ा कवर नहीं ले पा रहे हैं तो शुरुआत छोटा कवर ले लें. आमदनी बढ़ने को इस कवर को बढ़ा सकते हैं.