जब आप जीवन बीमा पॉलिसी खरीदते हैं तो यह आपके और बीमा कंपनी के बीच एक करार होता है. बीमा कंपनी पॉलिसीधारक के नहीं रहने पर पॉलिसी के नॉमिनी को मुआवजा चुकाती है. इसके बदले बीमा कंपनी आपसे प्रीमियम वसूलती है. क्या आपने जीवन बीमा पॉलिसी खरीदी है? अगर हां तो आपको इसके सभी पहलुओं की जानकारी रखनी चाहिए. इससे टैक्स का भी पहलू जुड़ा है. आइए जानते हैं कि जीवन बीमा की मैच्योरिटी रकम पर टैक्स के नियम क्या हैं.
आप पूरे वित्त वर्ष में जीवन बीमा पॉलिसी के लिए जो प्रीमियम चुकाते हैं उस रकम पर Income Tax कानून 1961 के सेक्शन 80C के तहत कर छूट पा सकते हैं. इस सेक्शन में आप अधिकतम 1.5 लाख रुपये के निवेश पर टैक्स छूट पा सकते हैं.
मेच्योरिटी अमाउंट के दो भाग
परंपरागत लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी के मेच्योर होने के बाद जो मेच्योरिटी अमाउंट मिलता है, उसमें दो हिस्से होते हैं. सम एश्योर्ड और दूसरा बीमा अवधि के दौरान अर्जित किया गया बोनस. बीमाधारकों को पॉलिसी मैच्योर होने पर सम एश्योर्ड के साथ बोनस की रकम भी जोड़कर मिलती है.
सम एश्योर्ड पूरी तरह टैक्स फ्री
इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 10 (10डी) के तहत मेच्योरिटी या बीमाधारक की मौत पर जो सम एश्योर्ड मिलता है, वह पूरी तरह से टैक्स फ्री होता है. बोनस की राशि पर भी टैक्स छूट मिलती है. हालांकि टैक्स बेनेफिट हासिल करने के लिए कुछ खास शर्तें पूरी करनी जरूरी हैं.
किस पर टैक्स, किस पर नहीं
एक अप्रैल, 2003 और 31 मार्च, 2012 के बीच जारी जीवन बीमा पॉलिसी के लिए कुछ खास नियम हैं. इस मामले में अगर किसी भी वर्ष में देय प्रीमियम वास्तविक बीमा राशि के 20 फीसदी से ज्यादा है, तो पॉलिसी से मिलने वाली रकम बीमाधारक के लिए टैक्सेबल होगी. इसका निर्धारण मामूली टैक्स की दरों पर होता है.
जो पॉलिसी 1 अप्रैल 2012 के बाद खरीदी गई है, उस पर मेच्योरिटी अमाउंट पर तभी पूरी तरह टैक्स छूट मिलेगी जब इसका प्रीमियम सम एश्योर्ड के 10 फीसदी से कम हो. एक लाख रुपए सालाना प्रीमियम दे रहे हैं तो टैक्स छूट के लिए न्यूनतम सम एश्योर्ड 10 लाख होनाचाहिए.
बीमाधारक की मौत होने पर नॉमिनी को मिलने वाली रकम टैक्स फ्री होती है. यानी इस पर किसी तरह का कोई टैक्स नहीं लगता है.
हालांकि, कीमैन इंश्योरेंस पॉलिसी के मामले में बीमित व्यक्ति की मौत पर मिलने वाली रकम टैक्स फ्री नहीं होती है. यह इस तरह की बीमा पॉलिसी होती है, जहां कंपनी प्रपोजर होती है. प्रपोजर वह व्यक्ति या संस्था होती है जो बीमा कवर के लिए आवेदन करती है. इस मामले में प्रीमियम का भुगतान कंपनी ही करती है. पॉलिसी के तहत कंपनी के बेहद महत्वपूर्ण कर्मचारी के जीवन का बीमा कराया जाता है. इस मामले में क्लेम की रकम कंपनी के पास जाती है.