जिनके पास हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है उन्हें नया बीमा प्लान जरूर लेना चाहिए. जिनके पास पहले से हेल्थ इंश्योरेंस है उन्हें टॉप अप या सुपर टॉप अप के लिए जाना चाहिए.
मेडिकल इमर्जेंसी की वजह से खड़ी हुईं वित्तीय मुसीबतों के दौरान स्वास्थ्य बीमा एक रक्षक की तरह काम करता है. हालांकि, इसी के साथ इंश्योरेंस फ्रॉड चिंता का विषय बना हुआ है.
इंश्योरेंस से जुड़े स्कैम कंपनी और ग्राहक, दोनों की तरफ से हो सकते हैं. अगर कोई भी पक्ष फर्जीवाड़ा कर के पॉलिसी का गलत फायदा उठाने की कोशिश करता है, तो वह इंश्योरेंस फ्रॉड कहलाता है.
धोखाधड़ी होने पर अधिकतर मामलों में इंश्योरेंस कंपनी को भारी घाटा झेलना पड़ता है. एहतियात बरतने के चक्कर में कई बार कंपनियां सभी ग्राहकों के लिए रेगुलर हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी से जुड़े बेनेफिट घटाने को मजबूर हो जाती हैं.
झूठ बोलकर इंश्योरेंस क्लेम करना या गैर-जरूरी सुविधाएं लेकर हॉस्पिटलाइजेशन का कुल खर्च बढ़ाना, कुछ आम इंश्योरेंस फ्रॉड हैं जो देश में होते हैं.
लड़कियों और महिलाओं को खासकर स्वास्थ्य के प्रति बेहद जागरूक होना चाहिए.
इंश्योरेंस फ्रॉड का बुरा असर अन्य ग्राहकों पर पड़ता है. फर्जीवाड़ा के मामले बढ़ने से पॉलिसी महंगी हो जाती हैं.
कागजी कार्रवाई के किसी भी स्टेज पर अगर बीमा कंपनी या थर्ड पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर को कहीं गड़बड़ी दिखी, तो आपका क्लेम तुरंत खारिज हो जाएगा. हो सकता है कि सीधे आपकी पॉलिसी ही रद्द कर दी जाए.
बीमा से जुड़ी धोखाधड़ी के चलते क्लेम के दौरान की जाने वाली जांच कड़ी होने की संभावना बढ़ जाती है. इससे प्रक्रिया लंबी हो जाएगी और सेटलमेंट में देर हुआ करेगी. कुल मिलाकर, इंश्योरेंस फ्रॉड का इंडस्ट्री और ग्राहक पर गंभीर प्रभाव पड़ता है.
महामारी के दौर में हेल्थ इंश्योरेंस तेजी से क्लेम किए जा रहे हैं. इससे कंपनियों पर वेरिफिकेशन और रीइंबर्समेंट का दबाव बढ़ा है. इस बीच फ्रॉड केस भी बढ़े हैं.
आपको अवार्ड को लिखित में स्वीकृत करना होगा और बीमा कंपनी को इससे 30 दिनों के अंदर सूचित करना होगा, तथा
इसके पश्चात बीमा कंपनी को अधिनिर्णय की अनुपालना 15 दिनों में करनी होगी.