कोरोना के दौर में कंज्यूमेबल्स कवर बेहद जरूरी वरना इंश्योरेंस के बावजूद अस्पताल को देनी होगी मोटी रकम

बीमा कवर में जिन सामानों के पैसे मरीज को खुद चुकाने पड़े उनमें ग्लव्स, सैनेटाइजर और पीपीई किट्स शामिल थीं.

LIC Jeevan Umang:

 पॉलिसी को किसी भी समय सरेंडर किया जा सकता है बशर्ते प्रीमियम का भुगतान पूरे तीन वर्षों के लिए किया गया हो. पॉलिसी सरेंडर करने पर, पॉलिसीधारक को सरेंडर वैल्यू गारंटीड सरेंडर वैल्यू और स्पेशल सरेंडर वैल्यू के बराबर मिलेगा. 

 पॉलिसी को किसी भी समय सरेंडर किया जा सकता है बशर्ते प्रीमियम का भुगतान पूरे तीन वर्षों के लिए किया गया हो. पॉलिसी सरेंडर करने पर, पॉलिसीधारक को सरेंडर वैल्यू गारंटीड सरेंडर वैल्यू और स्पेशल सरेंडर वैल्यू के बराबर मिलेगा. 

कोरोना की दूसरी लहर के दौरान अस्पताल में भर्ती होना किसी बुरे सपने से कम नहीं था. इस दौरान उन बीमा कंपनियों की छवि पर काफी नकारात्मक असर पड़ा, जिन ग्राहकों के क्लेम सैटल नहीं पो पाए. जो सैटल हुए भी उनमें काफी कटौती की गई थी. बीमा कवर में जिन सामानों के पैसे (medical bill) मरीज को खुद चुकाने पड़े उनमें ग्लव्स, सैनेटाइजर और पीपीई किट्स शामिल थीं. ये सब चीज़ें इंश्योरेंस पॉलिसी में शामिल नहीं होती है.

पॉलिसी बाजार.कॉम के हेड अमित छाबड़ा ने बताया कि “शुरुआत में कुल मेडिकल बिल में कंज्यूमेबल्स की हिस्सेदारी 2 से 3% ही हुआ करती थी. लेकिन बाद में बिल में इसकी हिस्सेदारी इसलिए भी बढ़ गई क्योंकि डॉक्टर और सपोर्टिंग स्टाफ हाइजीन-साफ सफाई को लेकर ज्यादा सतर्क हो गए. प्रोटोकॉल के तहत सैनेटाइजेशन, सीटी स्कैन और पीपीई किट का ज्यादा इस्तेमाल होने लगा.”

जरूरत के साथ समाधान भी मिला

जब से मेडिकल बिल में कंज्यूमेबल्स को लेकर ज्यादा कटौती बढ़ी है, तब से पॉलिसी में इन आइटम को कवर मिलने लगा है. कम से कम 4 इंश्योरेंस कंपनियां ऐसी हैं, जो अपनी पॉलिसी में कंज्यूमेबल्स कवर दे रही हैं. इन कंपनियों के नाम है मैक्स बूपा, स्टार हेल्थ और डिजिट इंश्योरेंस.

उदाहरण के लिए केयर हेल्थ इंश्योरेंस और मैक्स बूपा के पास मौजूद प्रोडक्ट का नाम केयर शील्ड और हेल्थ री-एश्योर है. इन प्लान के तहत आप कंज्यूमेबल्स कवर का ऑप्शन भी जोड़ सकते हैं. लेकिन सवाल है कि क्या इसके लिए आपको ज्यादा पैसे देने होंगे? हां, लेकिन बेहद मामूली दाम. कंज्यूमेबल्स राइडर की कुल प्रीमियम में हिस्सेदारी 5 से 7% की होती है. पॉलिसी बाजार डॉट कॉम आपके लिए टेबल लाया है, जिससे आप तुलना कर सकते हैं.

पॉलिसी बाजार रिसर्च के पास मौजूद जानकारी के मुताबिक ग्राहकों को उन पॉलिसी में ज्यादा भुगतान करना पड़ा है, जिनमें कंज्यूमेबल्स नहीं था. जबकि कंज्यूमेबल्स कवर वाली पॉलिसी में भुगतान कम करना पड़ा.

छाबड़ा ने कहा कि “उन पॉलिसियों में क्लेम पेआउट 10% अधिक है जहां कंज्यूमेबल्स सामान को कवर किया गया है. यह उन पॉलिसी का 95% हिस्सा है जिनमें इसे कवर मिला है.

हमें क्या करना चाहिए?

कोरोना अभी गया नहीं है. अस्पतालों में अभी भी सैनेटाइजेशन के प्रोटोकॉल को फॉलो किया जा रहा है. और ये कब तक चलेगा इसकी भी कोई जानकारी नहीं है. इसका मतलब ये हुआ कि मेडिकल बिल में आगे भी कंज्यूमेबल्स का खर्च शामिल किया जाता रहेगा और ये मरीज की जेब से जाएगा. अगर आप नई पॉलिसी खरीदने वाले हैं, तो हम आपको सलाह देंगे कि ऐसी पॉलिसी को खरीदें जिसमें कंज्यूमेबल्स कवर मिल रहा है. और अगर आप पुराने ग्राहक हैं तो आप अपनी इंश्योरेंस कंपनी से बात करके पॉलिसी को अपग्रेड करवा सकते हैं. ताकि कंज्यूमेबल्स के लिए आपको और ज्यादा बिल न चुकाना पड़े.

“कोरोना के लिए या दूसरी बीमारी के लिए रखी जाने वाली एहतियात का स्तर लगभग एक ही है. डॉक्टर्स लगातार कोविड और नॉन कोविड वॉर्ड्स में ड्यूटी पर लगे हैं. इसलिए मरीज और अपनी सुरक्षा के लिए उनका कोविड प्रोटोकॉल को फॉलो करना मजबूरी है. इसलिए कंज्यूमेबल्स पॉलिसी में होना आज की या कहें भविष्य की भी सख्त जरूरत है.”

Published - July 17, 2021, 01:05 IST