सम इंश्योर्ड में कोई मौद्रिक लाभ नहीं मिलता, केवल हानि/क्षति राशि की प्रतिपूर्ति होती है वहीं सम एश्योर्ड मंस मौद्रिक लाभ का भुगतान बीमित व्यक्ति या नोमिनी को किया जाता है.
बाजार में पॉलिसी कंपनियों की भरमार है. सब अपने-अपने अलग-अलग दावे करते हैं. ऐसे में भरोसा करना मुश्किल हो जाता है. लेकिन, इसका समाधान हम लेकर आए हैं. बीमा नियामक हर साल क्लेम सेटलमेंट रेशियो (Claim Settlement Ratio) डाटा जारी करता है ताकि सही इंश्योरेंस कंपनी का चयन करने में मदद मिल सके. हमेशा 90 फीसदी से अधिक रेशियो (Claim Settlement Ratio) वाली बीमा कंपनी को चुनें. इतना ही नहीं, क्लेम सेटलमेंट का सही पता लगाने के लिए 3 से 5 साल का क्लेम सेटलमेंट रेशियो देखना चाहिए. क्लेम सेटलमेंट रेशियो (Claim Settlement Ratio) से एक वित्त वर्ष के दौरान एक लाइफ इंश्योरेंस कंपनी द्वारा सेटल या दिए गए टोटल डेथ क्लेम का पता चलता है. साथ ही बीमा सेक्टर में पारदर्शिता की जानकारी हो जाती है. इसलिए आज के समय में जरूरी पहलुओं को देखना जरूरी हो गया है.
कैलकुलेशन करना बहुत आसान
इसका कैलकुलेशन करना बहुत ही आसान है. इसके तहत किए गए टोटल क्लेम में सेटल किए गए टोटल क्लेम से भाग देकर किया जाता है. ऐसे करके आप खुद सही क्लेम सेटलमेंट रेशियो की जानकारी जुटा सकते हैं.
ठीक से पढ़ें दस्तावेज
अक्सर हम पॉलिसी लेते समय दस्तावेज ध्यान से नहीं पढते हैं, जबकि बीमा कंपनियां कई सारे दस्तावेज देती हैं, जिनमें पूरी जानकारी लिखी होती है. ऐसे में आप कंपनी की कुछ ऐसी शर्त या बात मान लेते हैं जो आपको नुकसान पहुंचा सकती है. इसलिए कोई भी इंश्योरेंस प्लान खरीदने से पहले हमेशा पॉलिसी से जुड़े दस्तावेज ध्यान से पढ़ें
बीमा के फीचर्स को देखना बहुत जरूरी
कुछ बीमा कंपनियां फाइनल क्लेम अमाउंट में डिडक्शन कर देती हैं, अगर आपने नॉन-नेटवर्क अस्पताल में इलाज कराया है. इसलिए बीमा के फीचर्स का ठीक से अध्ययन बहुत जरूरी है. इनमें देखें कि रूम रेंट, सर्जरी, एंबुलेंस सर्विस आदि में बीमा कंपनी ने कोई लिमिट तो नहीं तय किया हुआ है.