कोरोना संकट के बाद से जीवन बीमा और हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी की मांग तेजी से बढ़ी है. जीवन बीमा पॉलिसी खराब वक्त में सबसे पहले काम आती है. लेकिन, बहुत सारे लोग इसे सिर्फ कर बचाने के लिए आंखमूंदकर खरीद लेते हैं. अगर आप लाइफ इंश्योरेंस खरीदने का प्लान बना रहे हैं तो जिस कंपनी से पॉलिसी ले रहे हैं उसका दावा निपटान रिकॉर्ड (Claim Settlement Ratio) जरूर देख लें. सेटलमेंट रेशियो का ज्यादा होना बहुत जरूरी होता है. ज्यादा सेटलमेंट रेशियो का मतलब है कि बीमा कंपनी ने ज्यादा क्लेम का निपटारा किया है. बीमा विशेषज्ञों का कहना है कि जिस कंपनी का दावा निपटान रिकॉर्ड 95 फीसदी से अधिक है उसी से पॉलिसी खरीदना चाहिए.
क्या है क्लेम सैटलमेंट रेशियो
आसान भाषा में कहे तो क्लेम सेटलमेंट रेशियो एक फाइनेंशियल ईयर में इंश्योरेंस कंपनी की ओर से किए गए क्लेम निपटारों के प्रतिशत से होता है.
दूसरे शब्दों में, फाइनेंशियल ईयर में जितने डेथ क्लेेम आते हैं उसके सापेक्ष कितने क्लेम का बीमा कंपनी ने सेटलमेंट किया है, वह आंकड़ा या प्रतिशत क्लेम सेटलमेंट रेशियो कहलाता है.
आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं…
अगर एक फाइनेशियल ईयर में 1000 डेथ क्लेम किसी बीमा कंपनी के पास आए हों. उस कंपनी ने 980 क्लेम का भुगतान पॉलिसी नियमों के मुताबिक किया हो तो लाइफ इंश्यो रेंस कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेशियो 98 प्रतिशत होगा. यहां क्लेम रिजेक्शन रेट महज 2 प्रतिशत है. इसका मतलब बीमा कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेशियो बेहतरीन है. इस कंपनी से लाइफ इंश्योरेंस पॉलिसी ली जा सकती है.
तीन से पांच साल का रिकॉर्ड देंखे
क्लेम सेटलमेंट का सही पता लगाने के लिए तीन से पांच साल का क्लेम सेटलमेंट रेश्यो देखना चाहिए. बीमा नियामक इरडा हर साल क्लेम सेटलमेंट रेश्यो का डेटा जारी करता है ताकि सही बीमा कंपनी का चयन करने में मदद मिल सके.
बीमा कंपनियों का क्लेम सेटलमेंट रेश्यो
एलआईसी 96.6%
मैक्स लाइफ 99.22%
एचडीएफसी लाइफ 99.07%
टाटा एआईए 99.06%
एक्साइड लाइफ 98.15%
केनरा, एचएसबीसी और ओबीसी 98.12%
रिलायंस निप्पोन 98.12%
बजाज अलियांज 98.12%
आईसीआईसीआई प्रू. 97.04%
स्रोत: इरडा
आसानी से क्लेम मिलने के लिए ये करें
पॉलिसी धारक को चाहिए कि वह खुद पॉलिसी डॉक्यूमेंट चेक करें और फॉर्म में खुद से सही जानकारी भरें. फॉर्म में गलत तथ्यों को कतई न भरें और न कुछ छिपाएं.
पॉलिसी के कागजातों में सही सूचना दर्ज होने पर क्लेम सेटलमेंट लेने में कोई दिक्कत नहीं आती. नतीजतन जरूरत के वक्त क्लेम सेटलमेंट में आसानी होती है.
कोशिश यह जानने की भी करनी चाहिए कि बीमा कंपनियां किन कारणों के कारण क्लेम रिजेक्ट कर देती हैं. क्या वे कारण वैलिड हैं, इसका भी आकलन करें. अगर कोई इतनी रिसर्च के बाद टर्म प्लान लेता है तो जाहिर है किसी अनहोनी की हालत में उनके नॉमिनी बड़ी असुविधा से बच सकते हैं.