हेल्थ बीमा में ये गलती पड़ेगी बहुत भारी

केवल ग्रुप इंश्योरेंस प्लान होने पर डॉक्टर की लिमिटेड च्वाइस और स्पेशलिस्ट नेटवर्क का लिमिटेड एक्सेस ही मिलता है.

हेल्थ बीमा में ये गलती पड़ेगी बहुत भारी

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नित्या पिछले 10 साल से एक ही कंपनी में काम कर रही हैं. कंपनी से हेल्थ इंश्योरेंस भी मिला हुआ है जिसका कवर 3 लाख रुपए है. नित्या को हमेशा लगता था कि ये कवर काफी है. इसलिए अपने और परिवार के लिए कोई पर्सनल हेल्थ इंश्योरेंस नहीं खरीदा. उनकी ये गलती कितनी भारी पड़ेगी इसका उन्हें अंदाजा नहीं था.

नित्या को एक दिन पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर है. कैंसर की बीमारी शरीर पर तो गहरा वार करती ही है, वित्तीय सेहत भी बिगाड़ देती है. सोचिए नित्या का अस्पताल का खर्च, दवा, इलाज का खर्च कितना बना और कंपनी से मेडिकल कवर कितना था- महज 3 लाख रुपए. इसलिए नित्या को भारी भरकम बिल अपनी जेब से भरना पड़ा.

बीमारी कभी मामूली तो कभी बेहद गंभीर हो सकती है. इसलिए बुरे से बुरे हेल्थ हालात को ध्यान में रखकर बड़ा मेडिकल कवर लेना चाहिए. रिपोर्ट्स के मुताबिक हर 5 साल बाद लोगों का रेगुलर हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज नाकाफी हो जाता है. 14 फीसद के मेडिकल इंफ्लेशन के साथ अपने खुद के लिए और अपने परिवार के लिए एक सॉलिड हेल्थ कवर लेना जरूरी है.

अलग से इंश्योरेंस लेना क्यों जरूरी है?
हेल्थ इंश्योरेंस एक्सपर्ट भक्ति रसल कहती हैं, “ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस प्लान सस्ते होते हैं, वेटिंग पीरियड नहीं होता और मेडिकल नियम और शर्तों में ज्यादा ढील मिल जाती है, इनमें फाइनेंशियल रिस्क काफी ज्यादा है जो किसी मेडिकल इमरजेंसी के दौरान काफी महंगा पड़ सकता है.”

भक्ति रसल कहती हैं कि ग्रुप इंश्योरेंस प्लान बड़े ग्रुप्स को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं. इसलिए उनमें अनहेल्दी लाइफस्टाइल की वजह से होने वाली बीमारियां, आदतें, फैमिली की मेडिकल हिस्ट्री और एनुअल इनकम जैसे इंडिविजुअल फैक्टर को ध्यान में नहीं रखा जाता. स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत होने पर व्यक्ति परेशानी में पड़ सकता है.”

इसे आप एक उदाहरण से समझ सकते हैं. भारत में ब्रेस्ट कैंसर के इलाज का औसत खर्च करीब 15 लाख रुपए है. इसमें प्री-प्रोसिजर टेस्ट का खर्च जो कि एक लाख रुपए तक हो सकता है, दवा और इलाज पर होने वाला खर्च जो कि 10 लाख रुपए तक हो सकता है. इसके अलावा हॉस्पिटलाइजेशन के बाद के खर्चें आदि शामिल हैं. इसलिए अगर नित्या की कंपनी पूरे 3 लाख रुपए भी दे दे तो बाकी 12 लाख रुपए तो उन्हें अपनी जेब से देने होंगे.

अगर नित्या ने अलग से हेल्थ इंश्योरेंस ले रखा होता तो ग्रुप कवर के उलट उनके पास सम इंश्योर्ड चुनने का विकल्प होता. इंडिविजुअल हेल्थ इंश्योरेंस में आप अपने मतलब का कवरेज चुन सकते हैं. इसके उलट ग्रुप पॉलिसी में इस तरह की सुविधा नहीं मिलती.

केवल ग्रुप इंश्योरेंस प्लान होने पर डॉक्टर की लिमिटेड च्वाइस और स्पेशलिस्ट नेटवर्क का लिमिटेड एक्सेस ही मिलता है. इस लिस्ट से बाहर कोई और डॉक्टर हो, तो शायद इस पॉलिसी में वो कवर न हो. एक और सवाल ये है कि अगर नौकरी छोड़ दी तो इस दौरान हेल्थ इंश्योरेंस का क्या होगा?

इसका जवाब है ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस काम नहीं करेगा. मान लीजिए नित्या को अपनी मेडिकल कंडिशन की वजह से नौकरी छोड़नी पड़ी तो ग्रुप इंश्योरेंस कवर उन्हें नहीं मिलेगा. इसका मतलब है कि इलाज का पूरा खर्च उन्हें खुद भरना होगा. इसी तरह अगर आप नौकरी बदल रहे हैं, कुछ समय के लिए बेरोजगार हैं, या सेल्फ इंप्लॉयड हैं तो आप बिना कवर के ही रहेंगे.

अगर आप सोचते हैं कि किसी कंपनी की ग्रुप इंश्योरेंस पॉलिसी के ऊपर कोई प्लेन टॉप-अप इस पर काम कर सकता है, तो इसमें भी कोई गलती न करें. नित्या 5 लाख रुपए का टॉप-अप खरीदतीं जो कंपनी की पॉलिसी के इतर होता, तो वो भी तब तक काम नहीं करेगा जब तक आपकी कंपनी पहले 3 लाख रुपए का भुगतान नहीं करती.

अगर नित्या ने 20 लाख रुपए का पर्सनल हेल्थ इंश्योरेंस ले रखा होता तो उनका 15 लाख रुपए का बिल सीधा इसमें कवर हो जाता… इसके बाद भी 5 लाख रुपए का सम इंश्योर्ड बचा रहता.

Published - September 26, 2023, 07:26 IST