तकरीबन 50 साल पहले, सन् 1972 में बंबई (अब मुंबई) की गर्म और चिपचिपी शाम दिलीप साहब (Dilip Kumar) से मेरी छोटी सी मुलाकात हुई और वो अब भी मेरे ज़हन में है. तब मैं एक नया रिपोर्टर था और उस वक्त लगी राम दयाल की ‘दो राहा’ कवर करने के लिए बंबई आया हुआ था.
अभिनेत्री विमी के पति इंडस्ट्रलिस्ट शिव अग्रवाल की आयोजित एक शानदार फिल्म पार्टी में जी पी सिप्पी, बी आर चोपड़ा, हृषिकेश मुखर्जी जैसे दिग्गज आए हुए थे. दिलीप साहब भी मध्यरात्रि के बाद आए. वे अग्रवाल के पड़ोसी ही थे – दोनों बंबई के सबसे पॉश इलाके पाली हिल्स में अगल-बगल ही रहते थे.
दिलीप साहब उस वक्त कुछ वैरागियों सा थे और बड़ी मुश्किल से किसी पार्टी में आते थे, लेकिन जब कुछ दोस्तों ने ‘युसुफ युसुफ’ कहकर आवाज़ लगाई तो वो भी अपनी सफ़ेद सफ़ारी और सैंडल में टहलते हुए आ पहुंचे.
पार्टी लगभग खत्म होने वाली थी और दिलीप बमुश्किल 20 मिनट ही रुके होंगे.
उस रात आसमान में तारे साफ-साफ जगमाते दिख रहे थे – आसमान में बुध और धनु नक्षत्र भी अपने रुबाब पर थे. दिलीप साहब (Dilip Kumar) बेहतरीन अंग्रेजी में नक्षत्र की हर एक बारीकी बताने लगे – हम सभी हैरान होकर उन्हें देख रहे थे. और क्यों ना, उन्होंने पंजाब विश्वलिद्यालय से उस जमाने में भी मास्टर्स हासिल की थी.
और जल्द ही उनके घर लोटने का समय हो गया. उन्हें वापस जाता देख, मैं उनके करीब गया और कहा कि मैं उनके देवदास जैसे कारुणिक किरदारों को बड़ा प्रशंसक हूं, पर राम और श्याम जैसी कॉमेडी फिल्मों में वे मुझे उतने नहीं भाए.
उन्होंने कहा कि कई त्रासिक फिल्मों में काम करने से उनपर असर पड़ रहा था और UK में एक मनोवैज्ञानिक ने उन्हें कॉमेडी करने की सलाह दी थी. लेकिन जब मैंने अपनी बात दोहराई तो वे जाते-जाते इतना कह गए – मैं बिल्कुल बेकार इंसान हूं.
ध्यान रहे ये वो दौर था जब बंबई की फिल्मी दुनिया में उनका ही साम्राज्य था – एक फिल्म के लिए 18 लाख रुपये चार्ज करते थे और सिर्फ बी आर चोपड़ा जैसे नजदीकी लोगों के साथ ही काम करते थे.