तीन दिनों तक चली मौद्रिक नीति समिति की बैठक के बाद जब भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांता दास शुक्रवार, छह अगस्त को सामने आए तो उम्मीदों के मुताबिक उन्होंने नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट व रिवर्स रेपो रेट) में किसी तरह का बदलाव नहीं करने का ऐलान किया. साथ ही जैसी चर्चा थी, खुदरा महंगाई दर का नए सिरे से आंकलन किया गया और अनुमान बढ़ा दिया गया.
बढ़ा महंगाई दर का अनुमान
ताजा अनुमान है कि चालू कारोबारी साल यानी 2021-22 के दौरान खुदरा महंगाई दर 5.1 फीसदी के बजाए 5.7 फीसदी रह सकती है. जुलाई-सितम्बर तिमाही के लिए यह दर 5.4 फीसदी के बजाए 5.9 फीसदी, अक्टूबर-दिसम्बर तिमाही के लिए 4.7 फीसदी के बजाए 5.3 फीसदी और जनवरी-मार्च तिमाही के लिए यह दर 5.3 फीसदी के बजाए 5.8 फीसदी रहने का अनुमान है.
क्यों बढ़ाया गया अनुमान
अब इस अनुमान बढाए जाने का आपके लिए क्या मतलब है, इस पर बातचीत के पहले कुछ और बातों पर ध्यान देना जरुरी होगा. मसलन, अनुमान क्यों बढ़ाया गया? गौर करें, ताजा अनुमान, लक्षित महंगाई दर की ऊपरी सीमा यानी छह फीसदी के आसपास है. पिछले दो महीने यानी मई और जून में खुदरा महंगाई दर छह फीसदी के ऊपर ही रही. राहत की बात यह जरुर है कि मूलभूत महंगाई दर (Core Inflation, ऐसी महंगाई दर जिसकी गणना सुर्खियों वाली खुदरा महंगाई दर से खाद्य पदार्थों और ईंधन की मंहगाई दर को हटाने के बाद की जाती है) मई के 6.6 फीसदी से घटकर जून में 6.1 फीसदी पर आ गई. फिर भी पेट्रोलियम उत्पादों के बढ़ते दाम और मांग में उछाल की उम्मीदों के बीच कच्चे माल की बढ़ती लागत उपभोक्ताओं से वसूले जाने की वजह से समग्र तौर पर खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी हो सकती है.
अब आप कहेंगे कि छह फीसदी का क्या मतलब है? भारत सरकार और रिजर्व बैंक के बीच हुए समझौते के मुताबिक, खुदरा महंगाई दर को 2 से 6 फीसदी के बीच रखने का लक्ष्य है और यहां मध्य दर 4 फीसदी है. 4 फीसदी के आसपास की खुदरा महंगाई दर रिजर्व बैंक के लिए जहां राहत देती है, वहीं छह फीसदी या उससे ज्यादा की दर रिजर्व बैंक पर दवाब बनाती है. ना भूलिए कि रिजर्व बैंक की बड़ी जिम्मेदारी महंगाई दर को काबू में रखना है और इसके लिए रिजर्व बैंक गर्वनर शक्तिकांत दास की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति के सामने नीतिगत ब्याज दर में बढ़ोतरी का विकल्प भी होता है.
पिछली चार बैठकों से नहीं हुआ ब्याज दरों में बदलाव
अब आप यहां पर सवाल कर सकते हैं कि क्या समिति के लिए यह विकल्प अपनाने का समय आ गया है? विकास की जरुरतों को देखते हुए इस साल की चार बैठकों में नीतिगत ब्याज दर में बदलाव नहीं करने का फैसला लिया गया और वो भी तब, जब पहले महंगाई बढ़ने की मजबूत संभावना थी और फिर महंगाई दर बढ़ी. लेकिन यह कहना गलत ना होगा कि अगर महंगाई दर बढ़ी या बढ़ने की संभावना मजबूत हुई, तो फिर समिति को अपनी रणनीति बदलनी पड़ सकती है.
एक सीमा तक ही बर्दाश्त की जा सकती है उच्च महंगाई दर
आपको याद दिला दें कि तीन साल से कुछ ज्यादा समय पहले अगस्त 2018 की समिति ने आखिरी बार रेपो रेट में बढोतरी की थी, जब इसे चौथाई फीसदी से बढ़ाकर साढ़े छह फीसदी कर दिया गया. उस समय महंगाई दर 5 फीसदी के करीब थी. अब आप कहेंगे कि 2018-19 और 2021-22 की तुलना नहीं की जा सकती. फिर भी एक सीमा तक ही ऊंची महंगाई दर को बर्दाश्त किया जा सकता है, क्योंकि ऊंची महंगाई दर गरीबों औऱ कम आय वालों के लिए एक तरह का कर होता है और सरकार या रिजर्व बैंक यह नहीं चाहेगी कि महमारी के दौर में सबसे बुरी तरह प्रभावित होने वालों पर कोई और दवाब बने.
इन आंकड़ो पर रहेगी नजर
अब आप जानना चाहेंगे कि मौद्रिक नीति समिति किस हद तक ऊंची महंगाई दर को बर्दाश्त कर सकती है? कई अर्थशास्त्री कहते हैं कि समिति फिलहाल बाकी बचे आठ महीनों में ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहेगी, जिससे विकास की जरूरतों पर खासा असर पड़े. लेकिन यह सब कुछ कुछ इस बात पर भी निर्भर करता है कि ओपेक के कच्चे तेल का उत्पादन बढाने के बाद पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में किस हद तक कमी आती है. साथ ही मानसून की मौजूदा गति का खरीफ की फसलों पर क्या असर पड़ता है.
कब बढ़ सकती हैं प्रमुख ब्याज दरें
अनिश्चितता ज्यादा है. साथ ही इस बात के आसार भी मजबूत हैं कि अक्टूबर-दिसम्बर तिमाही के दौरान त्यौहारी मांग बढ़ने से महंगाई दर के ऊपर जाने के आसार होंगे यह स्थिति तीसरी तिमाही के अंत या चौथी तिमाही की शुरुआत से ज्यादा दिख सकती है, तब हो सकता है है कि चालू कारोबारी साल की आखिरी मौद्रिक नीति यानी फरवरी में नीतिगत ब्याज दर में सांकेतिक बढ़ोतरी की संभावना काफी मजबूत हो.
लोन लेना हो जाएगा महंगा
ऐसी किसी भी बढोतरी का मतलब यह होगा कि आपके लिए घर या गाड़ी के लिए कर्ज पर ब्याज दर में बढोतरी हो. वैसे भी बैंकों ने लम्बे समय से ब्याज दर को नीचे ही रख रखा है, क्योंकि बाजार में कर्ज लेने वाले काफी कम हो गए. अब जब अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर आती है, रोजगार की बहाली होती है तो कर्ज लेने वालों की संख्या बढेगी. मतलब यह हुआ कि एक तरफ महंगाई दर का बढ़ना औऱ दूसरी तरफ कर्ज की मांग का बढ़ना, माने ब्याज दर बढ़ाने का रास्ता तैयार होगा. यह कब होगा? कहना गलत ना होगा कि इस पर रिजर्व बैंक के भीतर खूब माथापच्ची चल रही होगी.