Semiconductor Crisis: सेमीकंडक्टर्स के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए भारत में बहुत जल्द मेगा मल्टी बिलियन डॉलर कैपिटल सपोर्ट और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव प्लान शुरू होगा. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक ये कदम ऐसे समय में उठाया जा रहा है जब वैश्विक स्तर पर चिप की कमी के चलते उद्योगों में बड़े पैमाने पर उत्पादन घट रहा है. वरिष्ठ अधिकारी कुछ शीर्ष सेमीकंडर निर्माताओं जैसे ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी (TSMC), Intel, AMD, Fujitsu, United Microelectronics Corp. के साथ बैठकें कर रहे हैं, क्योंकि सरकार खुद सेमी कंडक्टर इंवेस्टमेंट बढ़ाने पर जोर दे रही है.
इस महत्वकांक्षी योजना को खुद पीएमओ के जरिए कॉर्डिनेट और मॉनिटर किया जा रहा है. न सिर्फ इतना बल्कि कई मंत्रालय भी इस प्रक्रिया में शामिल किए गए हैं ताकि सेमीकंडर निर्माता कंपनियों को लुभाया जा सके. ये ऐसी कंपनियां जिन्हें लुभाने में यूएस और यूरोप भी कोशिशें कर रहे हैं. इस प्रक्रिया में लगे एक शीर्ष सूत्र के हवाले से टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट किया है कि सरकार इस मामले में कैपिटल सपोर्ट के लिए भी तैयार है. सूत्र के मुताबिक इस पर काफी हद तक काम भी हो चुका है.
सरकार ने हाल ही में इस मामले पर एक उच्च स्तरीय बैठक की थी जिसमें दूरसंचार और आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव, प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन, शीर्ष वैज्ञानिक और नीति आयोग के सदस्य वीके सारस्वत, आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर, इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी के प्रतिनिधि, दूरसंचार मंत्रालय, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO), भूतल परिवहन और अंतरिक्ष विभाग के प्रतिनिधि और शिक्षाविद शामिल थे. इस बैठक को करने का उद्देश्य ऐसे मंत्रालयों को विभागों से चर्चा करना था जिन पर सेमीकंडक्टर्स की कमी का असर पड़ता है.
पूंजीगत व्यय पर वित्तीय सहायता, कुछ घटकों पर टैरिफ में कटौती, और इलेक्ट्रॉनिक घटकों और सेमीकंडक्टर के उत्पादन को बढ़ावा देने की योजना (SPECS) और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (PLI) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से लाभ हो सकता है. भारत से उम्मीद लगाने वाली सेमीकंडक्टर कंपनियों के लिए एक आकर्षक और निवेश-अनुकूल योजना तैयार करने के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे. वर्तमान में भारत तकरीबन सभी तरह के सेमीकंडक्टर को इम्पोर्ट करता है. ताकि 24 बिलियन डॉलर की डिमांड को पूरा कर सकते. इस डिमांड के 2025 तक सौ बिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.
इससे पहले कंपनियों को सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन में इंवेस्ट करने के लिए किए गए सभी प्रयास विफल रहे. इसका सबसे बड़ा कारण ये था कि इस उत्पादन के लिए निवेश के अलावा निर्बाध रूप से साफ पानी और बिजली की सप्लाई आवश्यक है.
चिप डिजाइन के क्षेत्र में इंडिया की स्थिति काफी मजबूत है. लेकिन ये बहुप्रचारित फैब निर्माण में फेल ही साबित हुआ है. जिसमें पांच बिलियन डॉलर से दस बिलियन डॉलर का निवेश शामिल है. हालांकि साल की शुरूआत में कोरोना का कहर और खरीद के लिए चाइना प्लस 1 पॉलिसी पर नजर रखने वाली ग्लोबल स्तर की कंपनियों की रणनीति के चलते भारत को निवेश मिलने की संभावनाएं हैं.
सरकार को भरोसा है कि रक्षा, ऑटोमोबाइल, अंतरिक्ष और नए जमाने की तकनीकों जैसे 5G और इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) जैसे अन्य उद्योगों में जरूरतों के अलावा एक बड़ा और तेजी से बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार, कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रेरित करेगा. सरकार को उम्मीद है कि डॉमेस्टिक डिमांड बहुत अधिक होने वाली है. सरकार को इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन के 350 से 400 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. 2025 तक ये उत्पादन इतना बढ़ सकता है. फिलहाल ये 75 अरब डॉलर का है. यह निवेश प्राप्त करने के लिए एक बड़ा कारण होगा.