Recruitment Firms: इंडियन टैलेंट की विदेशी कंपनियों में खासी डिमांड देखी जा रही है. जॉब रिक्रूटमेंट केवल आईटी तक ही सीमित नहीं है. डिजिटल मार्केटिंग, कंटेंट, डिजाइन, अकाउंटिंग, एडमिनिस्ट्रेटिव, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, सप्लाई चेन और यहां तक कि मैन्युफैक्चरिंग जैसे नॉन-आईटी सेक्टर में भी रिक्रूटमेंट चल रहा है. इसकी वजह स्किल के साथ-साथ अंग्रेजी भाषा में दक्षता है.
टीमलीज सर्विसेज की EVP और को-फाउंडर रितुपर्णा चक्रवर्ती ने कहा, ‘सबसे बड़ी डिमांड मिडिल ईस्ट से आ रही है. कुछ इन्क्वायरी यूके और यूरोप से भी है.’ वहीं क्वेस कंपनी, मॉन्स्टर डॉट कॉम के CEO शेखर गरिसा ने कहा, ‘ग्लोबल स्केल पर हायरिंग लोकेशन-अग्नोस्टिक बन गई है. लोकेशन-अग्नोस्टिक यानी अपनी मनपसंद लोकेशन से काम करना. भारत के बाहर बहुत सी आर्गेनाइजेशन ऐसे टैलेंट की तलाश में हैं जो भारत में या बाहर रहकर काम कर सके.’
डिमांड-सप्लाई गैप के कारण विदेशी बाजार और भारत में सैलरी का अंतर लगातार कम हो रहा है. रैंडस्टैंड इंडिया के हेड (रिसर्च एंड सेलेक्शन) संजय शेट्टी ने कहा, ‘भारत और विदेश में टॉप टैलेंट के वेतन में 30-40% का अंतर है. यह अंतर 10-15 वर्षों से लगातार कम हो रहा है. पिछले 5 वर्षों में इस ट्रेंड में तेजी आई है.’ मौजूदा रुझान को देखते हुए, शेट्टी का मानना है कि ‘अगले 2-3 वर्षों में किसी भी पेशेवर भर्ती फर्म के लिए सीमा पार से होने वाली भर्ती में 10% की बढ़ोतरी हो सकती है. वर्तमान में, यह 2-3% योगदान देता है.’
शेट्टी ने कहा कि ‘पुर्तगाल, स्पेन, बुल्गारिया, बेल्जियम और सिंगापुर जैसे देशों की कुछ ऑर्गेनाइजेशन, जिनके अभी तक भारत में ऑपरेशन नहीं है, रैंडस्टैड के रोल पर लोगों को काम पर रख रहे हैं.’ शेट्टी ने कहा, ‘एक स्टाफिंग कंपनी के रूप में, हम अपने हायर-एंड-डिप्लॉय मॉडल का उपयोग तब तक कर रहे हैं जब तक कि कंपनियां भारत में अपने स्थायी कार्यालय स्थापित नहीं कर लेतीं. पहले हम अपने पेरोल पर केवल जूनियर लेवल टैलेंट को रखते थे, लेकिन अब हम सीनियर एग्जीक्यूटिव के लिए भी ऐसा कर रहे हैं.’