रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक भारत पायलट प्रोजेक्ट के तहत अपनी डिजिटल करेंसी को दिसंबर तक ले आएगा. यह एक स्वागत योग्य कदम है क्योंकि देश में डिजिटल फुटप्रिंट के विस्तार के लिए इनोवेशन के अगले लेवल की जरूरत है. सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) के फिएट करेंसी के समान होने की उम्मीद है और इसे फिएट करेंसी के साथ एक्सचेंज किया जा सकेगा. इसका केवल रूप अलग होगा.
कार्यक्षमता बढ़ाने और लागत कम करने के उद्देश्य से इसका उपयोग व्यापक रूप से नई पेमेंट टेक्नोलॉजी के रूप में किया जाएगा. इसी के साथ इसका उपयोग कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी प्रभावी ढंग से किया जा सकता है.
CBDC की शुरुआत के लिए जांच में सावधानी रखने के साथ ही एक सक्षम कानूनी ढांचे की भी जरूरत होगी क्योंकि मौजूदा कानूनी नियम कागजी करेंसी के लिए हैं. डिजिटल करेंसी के साथ समस्या होने पर शिकायत और उसके निवारण के लिए व्यवस्था की जरूरत होगी. आर्थिक नीति और प्रिटेंट करेंसी का वर्तमान अर्थव्यवस्था पर प्रभाव भी चिंता के विषयों में से एक है.
करेंसी का ट्रायल रन सही दिशा में उठाया जाने वाला एक कदम है वह भी उस समय जब दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने पहले ही अपनी पायलट प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू कर दिया है. BIS के सर्वे के मुताबिक सेंट्रल बैंक ने 14% CBDC पायलट प्रोजेक्ट पहले ही शुरू कर दिए है जबकि रिजर्व बैंक 60% CBDC के साथ प्रयोग कर रहा है. चाइना ने डिजिटल करंसी प्रोजेक्ट पर 2014 से ही काम करना शुरू कर दिया था. उसने कई शहरों में पायलट प्रोजेक्ट शुरू दिए हैं इनमें चेंगदू, शेनझेन और सूज़ौ सहित कई शहर शामिल है.
RBI जैसे ही डिजिटल करंसी को लॉन्च करने की दिशा में आगे बढ़ता है, वैसे ही सरकार को क्रिप्टोकरेंसी और आधिकारिक डिजिटल करेंसी विनियमन, 2021 विधेयक को निजी क्रिप्टोकरेंसी पर पारित करने की प्रक्रिया को तेज करना चाहिए जिससे भारत का रुख क्रिप्टो पर स्पष्ट हो जाए, खासकर जब युवा निवेशक और साथ ही छोटे शहरों के अनुभवी निवेशक भी क्रिप्टो में तेजी से निवेश कर रहे हैं. RBI ने बार-बार निवेशकों को निजी क्रिप्टोकरेंसी के प्रति आगाह किया है और उसके द्वारा विधेयक को शीघ्र मंजूरी देने से निवेशकों को सही चुनाव करने में मदद मिलेगी.