सरकार ने हाल ही में प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम पेश किया है. भले ही घोषित तौर पर इसे कहा नहीं गया है किंतु इसका मकसद निर्यात को बढ़ावा देना है. चूंकि, विश्व व्यापार संगठन निर्यात बढ़ाने के लिए किसी भी तरह की सब्सिडी को छूट प्रदान नहीं करता, इसलिए इसमें घरेलू और निर्यात बाजार की बात नहीं की गई है. उम्मीद की जा रही है कि बढ़े उत्पादन को घरेलू बाजार खपा नहीं पाएगा और अंतत: निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा. इस स्कीम में 13 उद्दोगों को शामिल किया गया है. जिनमें सेल बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, ऑटोमोबाइल, फार्मा, टेलीकॉम, हाथ से बने फाइबर, टेक्सटाइल, फोटोवोल्टिक सोलर, एसी और एलईडी, विशेष स्टील, खाद्य उत्पादन, मोबाइल निर्माण वगैरह शामिल हैं.
इस स्कीम में 37.5 लाख करोड़ रुपए का अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त करने तथा 1 करोड़ रोजगार सृजन का लक्ष्य रखा गया है. साथ ही उद्योग की श्रेणियों को भी अच्छे से चुना गया है. उदाहरण के लिए, पूरी दुनिया का टेक्सटाइल बाजार सिंथेटिक्स की ओर बढ़ रहा है. प्राकृतिक फाइबर की तुलना में सिंथेटिक्स फाइबर की खपत बढ़ रही है. 2010 से 2015 के दौरान इसके कारोबार में 3.5 गुने की बढ़ोतरी हुई है. लेकिन भारत का टेक्सटाइल बाजार और निर्यात प्राकृतिक फाइबर पर केंद्रित है. साथ ही भारत का बाजार असंगठित भी है और इस पर बहुत अधिक निवेश भी नहीं किया गया है. यही कारण है कि 2019 में कपड़ा और वस्त्र क्षेत्र में भारत का निर्यात 31.4 बिलियन डॉलर रहा, जबकि चीन का निर्यात 284.5 बिलियन डॉलर रहा.
इस क्षेत्र के लिए PLI स्कीम के तहत निवेश के दो स्तर तय किए गए हैं, 100 और 300 करोड़ रुपए. इसका फायदा लेने के लिए दूसरे साल टर्नओवर दोगुना हो जाना चाहिए और लगातार पांच सालों तक हर साल इसमें 25 फीसदी का इजाफा होना चाहिए. स्कीम के तहत टर्नओवर के प्रतिशत में इंसेंटिव प्रदान किया जाएगा.
Tirupur Exporters Association एग्जिक्यूटिव सेक्रेटरी एस. शक्तिवल का कहना है कि निवेश की न्यूनतम सीमा बहुत अधिक है. इस क्षेत्र में 75 निर्यातक ऐसे हैं जिनका संयुक्त सालाना टर्नओवर 13 हजार करोड़ रुपए है, जो कि इस क्षेत्र के कुल टर्नओवर का आधा है. बाकी 900 निर्यातक में से 600 ऐसे हैं जिनका व्यक्तिगत टर्नओवर 10 करोड़ रुपए से भी कम है. वे इतना निवेश नहीं कर सकते.
FIEO के डायरेक्टर जनरल अजय सहाय का कहना है कि ऊंचा लक्ष्य रखना जरूरी है, ताकि बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में आएं. इससे सहायक इकाइयों को मदद मिलेगी.
यदि सरकारी निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं के बावजूद हमारे निर्यातक वैश्विक अवसरों का लाभ नहीं उठा पाते तो क्या सरकार अन्य प्रोत्साहन योजनाओं के जरिए अपने लक्ष्य करने की कोशिश करेगी. फिर भी, इस स्कीम को सही समय पर पेश किया गया है. अमेरिका और यूरोप, चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं, जिसे वे अपने लिए खतरा समझते हैं. कोरोना महामारी की वजह से पूरी दुनिया का सप्लाई चैन प्रभावित हुआ है और बहुराष्ट्रीय कंपनियां चीन से अलग किसी दूसरे देश की तलाश में हैं. भारत इसका विकल्प बनना चाहता है.
लेकिन क्या आयात शुल्कों को बढ़ाकर इस लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है? या फिर हम ‘भारत में भारत के लिए’ की रणनीति का पालन करेंगे? हमें PLI स्कीम के नतीजों के देखने के लिए दो-तीन सालों का इंतजार करना होगा, हालांकि इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग को कुछ फायदा हो सकता है.
भारत 2012 से मोबाइल फोन और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का उत्पादन बढ़ाने का प्रयास कर रहा है. इसके लिए मेक-इन इंडिया जैसी नीति भी लाई गई है. साथ ही निर्यात उत्पादों के लिए शुल्कों और करों को भी कम किया गया है. दिल्ली की रिसर्च एजेंसी ICRIER ने अगस्त 2021 में एक अध्ययन पेश किया था, जिसके मुताबिक, इन उपायों के कारण इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का भारतीय निर्यात 2014 के 9 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2019 में 15 बिलियन डॉलर का हो गया.
लेकिन, वियतनाम से ही भारत की तुलना किया जाए, यह बढ़ोतरी बहुत अधिक नहीं है. 2010 से 2020 के बीच वियतनाम के इलेक्ट्रॉनिक निर्यात में 15 गुने की बढ़ोतरी देखी गई. दूसरी ओर, भारत के इलेक्ट्रॉनिक आयात में वृद्धि हुई है. 2019 में हमने 51 बिलियन डॉलर का आयात किया, तो फिर हमारा ट्रेड डेफिसिट 36 बिलियन डॉलर का रहा.
भारत में आयातित में बहुत से सामानों पर कोई शुल्क नहीं लगता. आसियान, सिंगापुर, जापान, कोरिया और मलेशिया जैसे देशों के साथ हुए आईटी एग्रीमेंट, या फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट की वजह से ऐसा होता है. लेकिन ट्रेड डेफिसिट के उन्हें जिम्मेदार ठहराना गलत होगा. जानकारों का कहना है कि भारतीय उपभोक्ताओं की पसंद के कारण यहां आधुनिक सेवाओं का आयात अधिक होता है. वे भारत की संरक्षणवादी नीतियों को लेकर भी चिंतित हैं. चीन, जिसका इलेक्ट्रॉनिक निर्यात भारत से करीब 60 गुना अधिक है, ने जब अपनी अर्थव्यस्था खोली तो उसके निर्यात में इजाफा हुआ, जबकि मलेशिया को नुकसान हुआ, क्योंकि मलेशिया ने तकनीक और बाजार की पसंद पर ध्यान नहीं दिया. जानकारों का कहना है कि निर्यात बढ़ाने के लिए खुले व्यापार वातावरण की जरूरत होती है.
स्मार्ट फोन पर भारत लगातार शुल्क बढ़ा रहा है, 2016 यह 10 फीसदी था, जो कि अभी 40 फीसदी तक पहुंच गया है. माना जाता है कि 55 फीसदी बिक्री ग्रे मार्केट में होती है और इसकी वजह से सरकार को 2,400 करोड़ रुपए का घाटा होता है.
NITI आयोग के पूर्व वाइस-चेयरमैन के अरविंद पनगढ़िया और ICRIER के डायरेक्टर दीपक मिश्रा का कहना है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए इंसेंटिव देना अच्छी बात है, किंतु ऊंचे टैरिफ के जरिए उद्योग संरक्षण देना उचित नहीं है. इससे जोखिम लेने वाले हतोत्साहित होंगे.