भविष्य निधि (provident fund – PF) पर तय सीमा से ज्यादा के सालाना अंशदान पर ब्याज को आयकर के दायरे में लाने को लेकर एक बहस छिड़ गई है. साथ ही सवाल भी पूछे जा रहे हैं कि क्या यह शुरुआत है और क्या आगे चलकर आयकर का दायरा बढ़ेगा?
इस सवाल का जवाब जानने के पहले दो तथ्यों पर चर्चा जरूरी है. एक, अभी यह बहस शुरु होने की वजह वित्त मंत्रालय की ओर से PF के मामले में कारोबारी साल 2021-22 के बजट प्रावधान पर अमल के लिए नियम 31 अगस्त को अधिसूचित किए गए हैं. दो, PF पर आयकर को लेकर 2016-17 में भी कुछ प्रावधान किए गए थे, लेकिन चौतरफा आलोचना के बीच उसे वापस ले लिया गया.
कारोबारी साल 2021-22 के प्रावधान में कहा गया, ‘उच्च आय वाले कर्मचारियों के द्वारा अर्जित आय पर दी जाने वाली छूट को युक्तिसंगत बनाने के लिए अब यह प्रस्ताव किया गया है कि विभिन्न भविष्य निधियों में कर्मचारियों के अंशदान पर अर्जित ब्याज की आयकर पर कर से छूट की सीमा को 2.5 लाख रुपये के वार्षिक अंशदान तक रखा जाए. यह प्रतिबंध 1 अप्रैल 2021 को या उसके बाद किए जाने वाले अंशदान पर ही लागू होगा.’
इस प्रावधान पर अमल के लिए जारी नियम कहता है कि PF (Employees Provident Fund or EPF, Recognised Provident Fund and General Provident Fund or GPF) में पैसा जमा करने वाले के हर खाता में दो अलग-अलग खाते रखे जाएंगे. एक खाता कर से छूट वाले अंशदान का होगा. इसमें 31 मार्च 2021 तक की कुल जमा रकम और कारोबारी साल 2021-22 व आगे के साल में निजी क्षेत्र के कर्मचारी की ओर से 2.50 लाख रुपये या सरकारी कर्मचारी की ओर से 5 लाख रुपये तक की सालाना जमा के साथ उनपर ब्याज को जोड़ा जाएगा. फिर उसमें से निकाली गई राशि घटा दी जाएगी.
दूसरा खाता कर योग्य अंशदान का होगा, जिसमें 2021-22 और उससे आगे के साल के दौरान निजी क्षेत्र के कर्मचारी की ओर से 2.50 लाख रुपये या सरकारी कर्मचारी की ओर से 5 लाख रुपये से ऊपर की सालाना जमा रकम और उसपर ब्याज को जोड़ा जाएगा. इस अतिरिक्त अंशदान से जितना पैसा निकाला गया है, वह घटा दिया जाएगा.
नियम में सबसे अहम बात यह है कि कर की नई व्यवस्था 1 अप्रैल 2022 से लागू होगी. इसका मतलब हुआ कि जब अगले साल आयकर का रिटर्न दाखिल करेंगे, तो वहां पर 2.5/5 लाख रुपये से ज्यादा के अंशदान के लिए ब्याज पर आयकर चुकाना होगा. यह रकम आपकी कुल आय में जुड़ जाएगी और आप जिस दर (10/20/30%) के दायरे में आते हैं, उस हिसाब से कर का आंकलन होगा. ऐसी अटकलों को खत्म कर दिया गया है, जिनमें कहा गया था कि तय सीमा से ज्यादा की पुरानी जमा पर भी कर देना होगा.
कारोबारी साल 2016-17 के बजट में प्रस्ताव किया गया था कि 1 अप्रैल 2016 के बाद PF में जमा कराई जाने वाली कुल रकम से निकासी के समय 60 फीसदी हिस्से पर कर देना होगा. बाकी 40 फीसदी कर मुक्त होगा. अगर 60 फीसदी रकम पेंशन एनुएटी स्कीम में लगा दी जाती है, तब आयकर नहीं लगेगा. इस पर काफी विवाद हुआ, जिसके बाद सरकार ने यह प्रस्ताव वापस ले लिया.
सवाल यह है कि आखिरकार PF का मुद्दा इतना संवेदनशील क्यों हैं? इसके पीछे दो वजहे हैं – एक, सामाजिक सुरक्षा के उपायों की कमी और दो, कर की पारंपरिक व्यवस्था. PF पर कर की व्यवस्था को ‘EEE’ (Exempt-Exempt-Exempt) के तौर पर जाना जाता है. पहले ‘E’ का मतलब यह हुआ कि जब आप पैसा जमा कराते हैं, तब 1.50 लाख रुपये तक की रकम कर योग्य आमदनी से घटा दी जाती है.
दूसरे ‘E’ के जरिए जमा की गई रकम और ब्याज जोड़कर जो राशि बनती है, उसपर कर नहीं लगता. तीसरे ‘E’ की बदौलत आप जब पैसा निकालते हैं, तो उस पर कर नहीं देना पड़ता. इसमें किसी तरह का बदलाव समाज के एक बड़े तबके को प्रभावित कर सकता है. खास तौर पर कामगारों को. इसीलिए राजनीतिक तौर पर यह बड़ा मसला बन जाता है.
हालांकि वित्त मंत्रालय की दलील है कि कर से जुड़े नए नियमों का असर सिर्फ 1.22 लाख कामगारों पर पड़ेगा, जिनकी महीने की कमाई 2 लाख रुपये या उससे ज्यादा है. यह PF खाताधारकों की कुल संख्या की चौथाई फीसदी के करीब है. फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि बात यहीं खत्म हो जाएगी.
मुमकिन है कि आने वाले कुछ सालों में कर के आंकलन के लिए अंशदान की सीमा में बदलाव कर ज्यादा बड़े तबके को लाया जाए. यहां यह भी तथ्य अहम है कि PF खाताधारकों की संख्या बढ़ रही है. इसका मतलब यह हुआ कि ब्याज का खर्च बढ़ेगा. दूसरी कर रियायत का मतलब है कि सरकार की कमाई पर असर.
अब ऐसे में अच्छा होगा कि वेतनभोगी PF के साथ-साथ निवेश के दूसरे विकल्पों पर भी ज्यादा से ज्यादा ध्यान दें, लेकिन केवल कर बचाने के लिए नहीं, बल्कि आने वाले समय को और बेहतर बनाने के लिए.