Net Zero Emission: पीएम नरेंद्र मोदी के ग्लासगो में हुई COP 26 समिट में दिए संबोधन के बाद नेट जीरो एमिशन (Net Zero Emission) पर चर्चाएं फिर तेज हो गई हैं. इस बैठक में पीएम ने 2070 तक नेट जीरो एमिशन का वादा किया है. ग्लास्गो की इस समिट में पीएम मोदी ने LIFE को नए ढंग से परिभाषित भी किया. उन्होंने कहा इसका मतलब है लाइफ स्टाइल फॉर एनवायरमेंट. पीएम के नेट जीरो पर चर्चा के बाद से ही ये नेट जीरो एमिशन आखिर है क्या और इसे हासिल करने के लिए क्या क्या कदम उठाने होंगे.
नेट जीरो एमिशन का मतलब क्या है?
नेट जीरो एमिशन की बात जब भी होती है ग्रीन हाउस गैसों से जोड़ कर होती है. कई बार इसके मायने ये निकाले जाते हैं कि ग्रीन हाउस गैस के एमिशन को जीरो पर लाया जाना है.
जबकि ग्रीन हाउस गैस एमिशन को शून्य करना नहीं बल्कि उन्हें दूसरे माध्यमों से संतुलित करना नेट जीरो एमिशन है. यानि एक ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण करना जिसमें फॉसिल फ्यूल का उपयोग या तो बहुत कम या फिर जीरो ही हो.
लक्ष्य हासिल करने के तरीके
पीएम मोदी ने ग्लासगो की बैठक में कहा कि 200 तक भारत नेट जीरो एमिशन का लक्ष्य हासिल कर लेगा. ये लक्ष्य हासिल करने के लिए क्या क्या करना होगा.
नेट जीरो एमिशन की स्थिति पर पहुंचने के लिए जितना कार्बन उत्सर्जन हो रहा है उसे एब्जॉर्ब करने का प्लान तैयार करना होगा. जिसके लिए इतने पेड़ पौधे लगाने होंगे जो कार्बन डाइऑक्साइड को वातावरण से एब्जॉर्ब कर सकें.
यानि जो भी देश अपनी इकोनोमी के लिए ऐसे कारोबार पर निर्भर है जिनसे कार्बन उत्सर्जन होता है. उसे इतने पेड़ पौधे लगाने होंगे कि उसका एब्जॉर्बशन भी हो सके.
कारोबार पर असर
नेट जीरो एमिशन की स्थिति हासिल करने के लिए भारत को कोयला उद्योगों पर विचार करना होगा. भारत में ऊर्जा का 60 प्रतिशत हिस्सा थर्मल पावर से पूरा होता है. जिसमें अधिकांशतः कोयले का उपयोग होता है.
नेट जीरो की स्थिति को छूने के लिए कोयले के उपयोग को कम करना होगा. जिसका असर सीधा-सीधा उन कारोबारों पर पड़ेगा जो कोयले से जुड़े हुए हैं.
हालांकि भारत का तर्क ये है कि नेट जीरो एमिशन हासिल करने के लिए विकासशील देशों को क्लीन टेक्नोलॉजी का पेटेंट ट्रांसफर करना होगा. उसके बाद ही देश की इकोनॉमी क्लीन इकोनॉमी की तरफ बढ़ सकेगी.
साथ ही पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को अपनाना होगा. खुद पीएम ने ये माना है कि इस तरह की जीवनशैली अपनाने का असर मत्स्य, खेती, हेल्थ, भोजन, पैकेजिंग, पर्यटन, कपड़ा, जल प्रबंधन और ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर पड़ेगा. जिनमें क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकते हैं.