Labour Code: इस वित्त वर्ष (fiscal) में चार Labour Code के लागू होने की संभावना नहीं है. इसकी वजह राज्यों की ओर से नियमों की ड्राफ्टिंग की स्लो प्रोसेस और उत्तर प्रदेश में चुनाव जैसे राजनीतिक कारण है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से ये जानकारी दी गई है. अगर यह कानून लागू हो जाता तो कर्मचारियों की टेक होम सैलरी में कमी आती और फर्मों पर प्रॉविडेंट फंड की लायबिलिटी भी बढ़ती.
जानकारी के मुताबिक, लेबर मिनिस्ट्री चारों लेबर कोड के साथ तैयार है. लेकिन राज्यों को नए कोड के तहत मसौदा तैयार करने और उन्हें अंतिम रूप देने में समय लग रहा है.
इसके अलावा, सरकार राजनीतिक कारणों से भी चारों कोड को लागू करने के इच्छुक नहीं है. इसमें मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के चुनाव है जो फरवरी 2022 में होने वाले हैं.
चारों कोड को संसद से पारित किया जा चुका है, लेकिन इन्हें लागू करने के लिए, इसके तहत नियमों को केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को नोटिफाई करना होगा. सूत्र ने कहा, ‘चारों लेबर कोड के कार्यान्वयन को इस वित्तीय वर्ष से आगे बढ़ाए जाने की संभावना है.’
श्रम मंत्रालय ने 1 अप्रैल, 2021 से इंडस्ट्रियल रिलेशन्स, वेजेज, सोशल सिक्योरिटी एंड ऑक्यूपेशनल हेल्थ सेफ्टी (OSH), और वर्किंग कंडीशन पर चार कोड लागू करने की परिकल्पना की थी. ये चारों लेबर कोड 44 सेंट्रल लेबर लॉ को युक्तिसंगत बनाएंगे.
मंत्रालय ने चारों कोड के तहत नियमों को अंतिम रूप भी दिया था, लेकिन इन्हें लागू नहीं किया जा सका क्योंकि कई राज्य इन संहिताओं के तहत नियमों को अधिसूचित (notify) करने की स्थिति में नहीं थे.
सूत्र के मुताबिक, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात, कर्नाटक, ओडिशा, पंजाब, और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने चारों लेबर कोड पर मसौदा नियमों (draft rules) पर काम किया है.
नए वेतन संहिता (new wages code) के तहत भत्तों (allowances) की अधिकतम सीमा 50% है. इसका मतलब है कि एक कर्मचारी के ग्रॉस पे का आधा मूल वेतन होगा.
प्रोविडेंट फंड का कैल्कुलेशन बेसिक वेज (basic wages) के प्रतिशत के रूप में किया जाता है, जिसमें मूल वेतन (basic pay) और महंगाई भत्ता (dearness allowance) शामिल होता है.
भविष्य निधि और इनकम टैक्स को कम रखने के लिए नियोक्ता वेतन को कई भत्तों में विभाजित कर देते हैं. इससे मूल वेतन कम हो जाता है और नियोक्ता पर भविष्य निधि योगदान का कम भार पड़ता है.
नए नियमों के लागू होने के बाद नियोक्ता को भविष्य निधि योगदान ग्रॉस सैलरी के 50 प्रतिशत पर करना होगा. इससे कर्मचारियों की टेक-होम सैलरी भी कम हो जाएगी.
नए कोड के लागू होने के बाद नियोक्ताओं (employers) को अपने कर्मचारियों के वेतन का पुनर्गठन (restructure salaries) करना होगा. इसके अलावा, नए इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड से इज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार आएगा.
300 कर्मचारियों तक की कंपनियां सरकारी अनुमति के बिना छंटनी कर सकेंगी. वर्तमान में 100 कर्मचारियों तक वाली सभी कंपनियों को छंटनी (retrenchment) के लिए ये छूट दी गई है.