चीन और भारत की दो महान सभ्यताओं को एक व्यक्ति ह्वेन त्सांग (602-664) के यात्रा वृत्तांत से एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ पता चला. उनके उदाहरण हमेशा यह प्रदर्शित करते हैं कि आधुनिक समय में और आर्थिक एकीकरण में ट्रैवलिंग कैसे एजुकेशन का हिस्सा हो सकती है.
भारतीय लोग एक राष्ट्र के रूप में यात्रा करना पसंद करते हैं लेकिन यह हमारे लिए दुर्भाग्य और विडंबना की बात है कि अधिकांश लोगों ने देश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में यात्रा नहीं की है. पूरे भारत में कहीं ओर की तुलना में यह छोटा सा क्षेत्र इतिहास, भोजन, कपड़े, भाषा, प्राकृतिक सौंदर्य, संस्कृति, परंपरा में अधिक विविधता से भरा है. लोगों को दिल्ली से नॉर्थ-ईस्ट के पांच राज्यों की 15 दिन और 14 रात की यात्रा पर ले जाने का IRCTC का निर्णय कई दृष्टिकोणों से एक स्वागत योग्य कदम है.
काजीरंगा नेशनल पार्क, अगरतला, शिलांग, चेरापूंजी, कामाख्या मंदिर, त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, ब्रह्मपुत्र और असम के चाय बागानों, ईटानगर और कोहिमा सहित अन्य स्थानों की यात्रा करना बहुत ही असाधारण है. इस यात्रा में मेघालय के प्रसिद्ध रूट ब्रिज पर टहलने के अलावा त्रिपुरा में ऊना कोटि की मूर्तियां और महल भी शामिल हैं.
इस क्षेत्र में आए संतुष्ट यात्रियों से सद्भावना दूत बनने की उम्मीद की जा सकती है. वहीं IRCTC की रेल यात्रा के बाद टूरिज्म की मात्रा भी बढ़ सकती है. सोशल मीडिया के इस युग में तस्वीरें, वीडियो और ब्लॉग कुछ ही महीनों में लाखों परिवारों तक पहुंच सकते हैं, जिससे पर्यटकों का यहां आना बढ़ सकता है. यह सीधे पूरे क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ पहुंचा सकता है.
जैसलमेर में गाइड इस बात की गवाही देंगे कि कैसे रे द्वारा 1973 की क्लासिक फिल्म ‘सोनार केल्ला’ जो कि जैसलमेर के एक किले पर आधारित थी बनी. इस फिल्म के बनने के बाद विशेष रूप से बंगाल से पर्यटकों का यहां आना रातों-रात बढ़ गया. IRCTC के इस प्रयोग में भी बड़ी संभावनाएं हैं.