हाल में हुआ एक राष्ट्रीय सर्वे बताता है कि देश में औसत किसान परिवार ने साल 2018-2019 में प्रति माह 10,218 रुपये कमाए, जो साल 2012-2013 में 6,426 रुपये प्रति माह था. छह वर्षों में लगभग 60 प्रतिशत की आय वृद्धि किसान परिवार में हुई है. पिछले 6 वर्षों में हुई यह बढ़ोतरी बहुत ही मामूली है. बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, किसान परिवार अपनी आय का बड़ा हिस्सा अब मजदूरी करके कमाते हैं.
ग्रामीण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (rural consumer price index) का उपयोग करके मुद्रास्फीति को समायोजित करने के बाद किसानों की आय वास्तविक रूप से केवल 21 फीसदी बढ़ी है. इसी अवधि में भारत का वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद 52 पर्सेंट बढ़ा है. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आय में वृद्धि ऐसी थी कि इसने शायद औसत भारतीय किसान को एक मजदूर बना दिया.
अब वह खेती से ज्यादा मजदूरी से कमाते हैं और ऐसा पहली बार हुआ है. 2012-2013 में एक औसत भारतीय किसान ने खेती से प्रति माह 3,081 रुपये कमाए. यह 2018-2019 में हल्की बढ़त के साथ 3,798 रुपये हो गया. दूसरी ओर, मजदूरी से आय छह वर्षों में 2,071 रुपये से दोगुनी होकर 4,063 रुपये हो गई.
स्टेटिस्टिक्स एंड प्रोग्राम इम्प्लीमेंटेशन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) द्वारा जुलाई 2018-जून 2019 की अवधि की फाइनल रिपोर्ट में यह आंकड़े ग्रामीण भारत में कृषि परिवारों और उनकी जोत की स्थिति के आंकलन में प्रस्तुत किए गए थे.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office) द्वारा इस रिपोर्ट में दर्ज किए गए किसान परिवारों की आय और व्यय भारत में किसानों की आय पर सबसे विश्वसनीय राष्ट्रव्यापी आधिकारिक सरकारी आंकड़ों में से एक है.
रिपोर्ट में पे-आउट खर्चों के अलावा कृषि परिवारों के खर्चों का भी अनुमान लगाया गया है, जो कि श्रृंखला की पिछली रिपोर्टों ने नहीं किया था. लगाए गए खर्चों को समायोजित करते हुए, खेती से शुद्ध आय 2018-2019 में और गिरकर 3,058 रुपये प्रति माह हो गई.
देश में एक औसत किसान परिवार पर 2018-2019 में 74,121 रुपये का कर्ज बकाया है. जबकि 2012-2013 में यह कर्ज 47000 रुपये था. इस प्रकार, जैसे-जैसे आय छह वर्षों में 60 फीसद बढ़ी, औसत कर्ज भी 57 फीसद तक बढ़ गया.
आय और कर्ज के अलावा, देश में खेती की भौतिक विशेषताओं में भी बदलाव आया है. कुछ मामलों में बदलाव की प्रवृत्ति जारी रही है, जो काफी नुकसानदेह साबित हो सकती है. बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, भूमि का विघटन दो दशकों से बेरोकटोक जारी है. लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि भूमिहीनता में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.