महामारी ने अधिकांश मध्यम वर्गीय परिवारों को काफी अधिक प्रभावित किया है. जिन लोगों के पास न तो अमीरों के समान संसाधन हैं और न ही केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभ के लिए पात्रता, वे अक्सर सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. इनमें अधिकांश मध्यम वर्गीय वेतनभोगी लोग शामिल हैं. मार्च 2020 से लगे देशव्यापी लॉकडाउन के चलते अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने के कारण इन पर काफी अधिक असर पड़ा है. इस दौरान लाखों लोगों की नौकरी चली गई और कईयों के वेतन में 10 से 50 फीसदी तक या इससे अधिक कटौती कर दी गई. सबसे ज्यादा वेतन में कटौती पिछले साल हुई और कुछ कंपनियां इस साल भी इसे जारी रखे हुए हैं.
इस स्थिति में एक एजेंसी ने 39 क्षेत्रों की 1,350 कंपनियों के बीच एक सर्वे किया है. इस सर्वे से निकले निष्कर्ष वेतनभोगी लोगों के चेहरे पर मुस्कान ला सकते हैं. इसमें कहा गया है कि पिछले साल के 8.8 फीसदी की तुलना में इस साल औसत वेतन वृद्धि 9.4% तक पहुंच सकती है. वित्त वर्ष 2021 के लिए वेतन वृद्धि केवल कुछ क्षेत्रों जैसे सूचना प्रौद्योगिकी और ई-कॉमर्स तक ही सीमित है. 9.4% का आंकड़ा वित्त वर्ष 19 में दर्ज 9.3% के पूर्व-महामारी स्तर पर वापसी का प्रतीक होगा.
भारतीय कंपनियों के कर्मचारी निश्चित रूप से वेतन वृद्धि के लायक हैं. इसके तीन बड़े कारण हैं. पहला, कई कंपनियों ने फिक्स्ड और परिवर्तनीय लागत दोनों को अभूतपूर्व तरीके से घटा दिया है. दूसरा, उनके कर्मचारियों ने इस मुश्किल समय में कंपनियों को उच्च राजस्व दिलाने में मदद करने के लिए कई बाधाओं को पार किया है. तीसरा, वेतन कटौती और अत्यधिक उच्च महंगाई के कारण कर्मचारियों को अत्यधिक नुकसान हुआ है. बहुत से परिवारों के सदस्यों ने अपनी नौकरी खो दी, इससे आर्थिक तंगी पैदा हो गई.
सूचना प्रौद्योगिकी, ई-कॉमर्स और पेशेवर सेवाओं जैसे कुछ क्षेत्रों में 10% से अधिक का उच्चतम इंक्रीमेंट दिखने की संभावना है. सीमेंट, तेल और गैस, कोयला, बिजली, इंजीनियरिंग डिजाइन जैसे क्षेत्रों में सबसे कम दर 7.8% दर्ज हो सकता है. लगभग 62% कंपनियों ने कहा है कि उन्हें इस साल कारोबार बढ़ने की उम्मीद है, जबकि पिछले साल यह 45.4 फीसदी थीं. इस साल कारोबार में गिरावट की आशंका रखने वाली कंपनियां पिछले साल के 31.7% से घटकर 11.5% रह गईं. कंपनियों को उन कर्मचारियों की देखभाल के लिए अपना बजट खोलना चाहिए, जिन्होंने संकट के समय में उनकी मदद की.