Farmers Income: किसानों की आय (Farmers Income) 2022 तक दोगुना हो सकेगी, ऐसा होता संभव नहीं दिख रहा है. इसकी वजह बढ़ते कर्ज के बीच फसल उत्पादन से कम आय है. बिजनेस स्टैंडर्ड ने नेशनल सैंपल सर्वे (NSS) की लेटेस्ट फाइंडिंग के आधार पर एक रिपोर्ट पब्लिश की है जिसमें ये जानकारी सामने आई है. इस सर्वे ने ट्रेंड को उलटने के लिए एक स्ट्रॉन्ग पॉलिसी की आवश्यकता को हाईलाइट किया है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि फसल उत्पादन (crop production) से होने वाली आय में गिरावट आई है, जबकि मजदूरी ग्रामीण परिवारों के लिए मुख्य आधार बन गई है.
यह ट्रेंड 2013 के आखिरी NSS में देखा गया था, उसके बाद 2015-16 के राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के फाइनेंशियल इंक्लूजन सर्वे में देखा गया और अब वर्तमान में ऐसा देखा जा रहा है.
इससे यह पता चलता है कि देश के ग्रामीण क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए मजबूत और संरचनात्मक उपायों की जरूरत है.
इससे पहले की एक रिपोर्ट के अनुसार, नए सर्वे से पता चलता है कि ग्रामीण भारत में एग्रीगेट लेवल पर खेती बैकसीट पर आ गई.
जबकि छह वर्षों में खेती करने वाले परिवारों की संख्या 90 मिलियन से बढ़कर 93 मिलियन हो गई. इसी अवधि (2013-19) में ऐसे परिवार जो खेती में संलग्न नहीं है उनकी संख्या 66 मिलियन से बढ़कर लगभग 80 मिलियन हो गई.
रिपोर्ट से ये भी पता चलता है कि भारत में एक औसत किसान परिवार पर 2012-13 में 47,000 रुपए की तुलना में 2018-19 में 74,121 रुपए का कर्ज था.
रिपोर्ट में कहा गया था, छह साल में आय में 60 फीसदी की बढ़ोतरी हुई, औसत कर्ज भी इसी तरह की डिग्री के साथ 57 फीसदी बढ़ा. रिपोर्ट में कहा गया कि वास्तविक रूप से, 2012-13 और 2018-19 (छह साल) के बीच आय वृद्धि 21 प्रतिशत से भी कम थी.
इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च (आईजीआईडीआर) के डायरेक्टर महेंद्र देव ने कहा, ‘एक ग्रामीण परिवार के लिए कर्ज बढ़ रहा है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च बढ़ रहा है.
इसी तरह कृषि पर भी खर्च बढ़ा है, जबकि आय पर्याप्त नहीं है.’ उन्होंने कहा, ‘1960 के दशक की मानसिकता को बदलते हुए हाई इनकम के लिए हाई-वैल्यू प्रोडक्ट को प्रमोट कर क्रॉप सेक्टर को डायवर्सिफाई करने की आवश्यकता है.’
देव ने कहा, सर्वे से पता चलता है कि मजदूरी एक ग्रामीण परिवार के लिए कमाई का प्रमुख स्रोत बन गई है. आने वाले वर्षों में भी मजदूरी एक औसत ग्रामीण परिवार की आय का एक बड़ा हिस्सा बनी रहेगी क्योंकि जोत का आकार और सिकुड़ रहा है.
इसलिए ग्रामीण इलाकों में गैर-कृषि क्षेत्र के बढ़ने की जरूरत है. देव ने ये भी कहा कि हम सभी जानते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी का रेट नहीं बढ़ रहा है क्योंकि खेतों के बाहर आर्थिक गतिविधियां सीमित हो गई है.
सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (सीएसए) के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर जीवी रामंजनेयुलु ने कहा, ‘पिछले दो-तीन वर्षों में फसल की खेती के अलावा अन्य स्रोतों से होने वाली आय में तेजी से गिरावट आई है, जबकि फसल क्षेत्र में मोनो-क्रॉपिंग (एक ही फसल को एक ही जमीन पर साल-दर-साल उगाना) ने बड़े पैमाने पर कब्जा कर लिया है.
इसलिए इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम को रास्ता देना होगा. इंटीग्रेटेड फार्मिंग को मिश्रित खेती के रूप में भी जाना जाता है. यह एक ऐसी कृषि प्रणाली है जिसमें अलग-अलग फसल और पशु शामिल होते हैं.
जीवी रामंजनेयुलु ने कहा, ‘पंजाब में 30 एकड़ वाले किसान को और आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में तीन एकड़ के मालिक को समान संस्थागत समर्थन मिलता है. इसको खत्म करना होगा.
बड़ी डेयरियां छोटे को खा रही हैं. इससे ग्रामीण परिवारों के आय के अतिरिक्त स्रोत सीमित हो रहे हैं.’ उन्होंने कहा: ‘हमने पलायन बढ़ाया है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में आय पैदा करने के अवसर कम हो रहे हैं.
हमें खेती के बाहर ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के अवसरों के बारे में सोचने की जरूरत है. हमें मनरेगा जैसी योजनाओं की नहीं बल्कि छोटे स्वयं सहायता समूहों और छोटे सिंचाई परियोजना समूहों के बारे में सोचने की जरूरत है.’
इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IFPRI) के साउथ एशिया के पूर्व निदेशक और तीन कृषि अधिनियमों पर सुप्रीम कोर्ट पैनल के सदस्य पी के जोशी ने कहा कि कृषि से रिटर्न ग्रामीण आय के अनुरूप नहीं है क्योंकि खेत का आकार छोटा हो रहा है.
गैर-कृषि क्षेत्र में आय के अवसर सीमित या नीचे जा रहे हैं. जोशी ने कहा, आजीविका के लिए भूमि पर निर्भरता को बदलने की जरूरत है. हमें अधिक लोगों को खेती से गैर-कृषि क्षेत्र में शिफ्ट करने की आवश्यकता है.