ऐसे समय में जब देश में बड़ी तादात में नए निवेशक इक्विटी में निवेश कर रहे हैं, केंद्रीय वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने कहा है कि अकेले इक्विटी विकास को बनाए नहीं रख सकती है और मजबूत ऋण बाजारों की जरूरत है. हमने देखा है कि ऋण ने ग्रोथ को उस समय आगे बढ़ाया है, जब इस देश में इक्विटी का चलन लगभग अनुपस्थित था. चीन में भी ग्रोथ में आई तेजी बैंक ऋण के विस्तार से ही प्रेरित थी. ऋण उस नानी की तरह है, जिसने कई अर्थव्यवस्थाओं को अपने पैरों पर खड़ा होना और चलना सिखाया है.
मॉर्गन स्टेनली के अनुमान के अनुसार अगर भारत अगले साल विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त बॉन्ड इंडेक्स में जगह पाता है, तो यह देश में डेट मार्केट के लिए एक वैक्सीन की तरह काम कर सकता है. ऐतिहासिक रूप से, भारत में ऋण पूंजी के साथ निजी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा बनाया गया है. भारत में आर्थिक विकास का लगभग पूरा इतिहास कर्ज से मिली मदद से भरा हुआ है. विशेष रूप से बैंकों और राज्य द्वारा संचालित विकास वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रदान किये गए ऋण से.
ज्यादातर कंपनियां अपनी विस्तार योजनाओं के लिए संस्थानों से जुटाए गए कर्ज का इस्तेमाल करती हैं. ऋण के पक्ष में झुका हुआ डेट-इक्विटी रेश्यो भारतीय निजी क्षेत्र की एक लंबे समय से चली आ रही विशेषता रही है. जबकि बैंकों ने बहुत अधिक विकास को बढ़ावा दिया है, उन्हें विकास की गति को बढ़ाने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है. महामारी के बाद इसकी आवश्यकता बढ़ गई है.
एक विकसित ऋण बाजार सरकार, कंपनियों और व्यक्तियों को धन जुटाने की सुविधा प्रदान करता है. ये फंड देश को सड़कों, बंदरगाहों, पुलों, बिजली संयंत्रों जैसे आर्थिक बुनियादी ढांचे के निर्माण में मदद करते हैं. अधिक जोखिम से बचने वाले नागरिकों के लिए ऋण बाजार उनकी मेहनत की कमाई को जमा करने के लिए साधन प्रदान करता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से बुनियादी ढांचे के लिए दीर्घकालिक निधि के रूप में काम आता है.
कम अस्थिरता और गारंटीड रिटर्न के साथ डेट मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स का गिरती ब्याज दरों के दौरान भी बहुत महत्व है. यह अकारण ही नहीं कि सरकार G-Sec market में खुदरा भागीदारी को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही है. एक और बाजार जिसे देश में विकसित करने की जरूरत है, वह है कॉरपोरेट बॉन्ड मार्केट. ये दोनों सेक्टर जितनी जल्दी विकसित हों, अर्थव्यवस्था के लिए उतना ही अच्छा है.