ई-कॉमर्स दिग्‍गजों को सता रहा नए नियमों से कीमतें बढ़ने और कारोबार प्रभावित होने का डर

सरकार के मुताबिक प्रस्तावित नए नियम ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर "फर्जी फ्लैश सेल" और सेवाओं की गलत बिक्री पर रोक लगाने के लिए लाए जा रहे हैं.

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PC: Pixabay, BNPL की ब्याज दर 24% और क्रेडिट कार्ड की ब्याज दर 48% तक जा सकती है.

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ई-कॉमर्स कंपनियां और औद्योगिक संगठन सरकार द्वारा प्रस्तावित नए नियमों को लेकर आशंकित हैं. उन्हें चिंता सता रही है कि किराना स्टोर और छोटे विक्रेताओं को ई-कॉमर्स की परिभाषा के तहत लाने से उनकी लागत बढ़ जाएगी, क्‍योंकि वे मुख्‍यत: उन्हीं से उत्‍पादों को अपने प्‍लेटफार्म पर बेचते हैं. इससे अंततः कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है, जो उनके कारोबार को प्रभावित करेगी. इस आशंका को देखते हुए उन्होंने पीएमओ और सरकार को प्रस्‍तावित ई-कॉमर्स नियमों (उपभोक्ता संरक्षण नियम, 2020) के मसौदे में कई बदलावों का भी सुझाव दिया है. हालांकि सरकार के मुताबिक प्रस्तावित नए नियम ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर “फर्जी फ्लैश सेल” और सेवाओं की गलत तरीके से बिक्री पर रोक लगाने के लिए लाए जा रहे हैं.

संगठनों ने सरकार को सुझाए हैं कई बदलाव

इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया ( IAMAI), भारतीय उद्योग परिसंघ (CII), यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम (US-India Strategic Partnership Forum) और यूएस-इंडिया बिजनेस काउंसिल ने एक सुर में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि नए नियम ई-कॉमर्स व्यवसाय में एक बड़ा अवरोध खड़ा कर सकते हैं. इस समय भारत में ई-कॉमर्स क्षेत्र के दो सबसे बड़े खिलाड़ियों अमेजन और फ्लिपकार्ट का मानना है कि प्रस्तावित नियमों से उनके प्‍लेटफार्म के जरिये ऑनलाइन बिक्री करने वाले छोटे और मध्यम उद्यमों (SME) के लिए कई तरह की बाधाएं पैदा होंगी. ऐसे मुश्किल दौर में जब, देश कोविड -19 की दूसरी लहर के कारण हुए नुकसान से उबरने की कोशिश कर रहा है, इस तरह के नए नियमों से छोटे-मझोले उद्यमों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

ई-कॉमर्स की परिभाषा

औद्योगिक संगठनों के अनुसार नए नियमों में e-commerce की परिभाषा काफी व्यापक है और इसमें किराना (एक परिवार के स्वामित्व वाली परचून की दुकान) जैसी छोटे ऑफ़लाइन कारोबारियों को भी शामिल कर लिया गया है, जिनकी ऑनलाइन ऑर्डर के मामले में बहुत सीमित भूमिका है. उन्हें लगता है कि परिभाषा को व्यापक बनाने से, छोटे विक्रेताओं को नए प्रस्तावित नियमों का पालन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा. इसके कारण ई-कॉमर्स कंपनियों की लागत में भी वृद्धि होगी. इसके अलावा इससे उनकी कारोबारी सहूलियतों पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा.

उपभोक्ताओं पर असर

उन्होंने कहा कि इससे उद्यमों और ई-कॉमर्स कंपनियों दोनों के लिए अनिश्चितता की स्थिति पैदा होगी. कीमतों में बढ़ोतरी भी हो सकती है, जिसका असर आखिरकार ग्राहकों पर ही पड़ने वाला है. ऐसे समय में जब देश पहले से ही महंगाई और ईंधन की आसमान छूती कीमतों के दबाव में है, कीमतों में बढ़ोतरी से एक से अधिक संकट पैदा होगा.

एफडीआई का उल्लंघन

मामले से जुड़े हितधारकों का कहना है कि ई-कॉमर्स विक्रेताओं पर फॉल-बैक लायबिलिटी 2018 के प्रेस नोट 2 के तहत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीति के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है, जिसने ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर अपने विक्रेताओं को नियंत्रित करने से पहले ही रोक रखा है.

Published - July 22, 2021, 06:11 IST