कर्ज पर कर्ज लिए जा रहे हैं? देखिए, कहीं डेट ट्रैप में न फंस जाएं

Debt Trap: डिजिटल ट्रांजैक्शन बढ़ने के साथ कर्ज लेना बेहद आसान हो गया है. हालांकि, कर्ज लादते जाना खुद के लिए ही मुसीबत बढ़ाना है

work from home promotes merit based hiring over location preference in corporate india

बड़ी कंपनियां अक्सर बड़े शहरों में होने के कारण रिक्रूटमेंट इन्हीं शहरों तक सीमित रह जाता है. यहां के कैंडिडेट्स को इसका लाभ मिलता है

बड़ी कंपनियां अक्सर बड़े शहरों में होने के कारण रिक्रूटमेंट इन्हीं शहरों तक सीमित रह जाता है. यहां के कैंडिडेट्स को इसका लाभ मिलता है

हमारे समाज में बदलाव हो रहे हैं, इसकी सबसे अधिक झलक वित्तीय मोर्चों पर मिलती है. भारतीय आमतौर पर कर्ज लेने से बचते हैं. बच्चों को बुजुर्ग हमेशा सलाह देते हैं कि जब कोई भी रास्ता न बचे, तभी कर्ज लेना चाहिए. करीब दो दशक पहले तक बड़े-बूढ़े, सलाहकार, सभी पर्सनल लोन के खिलाफ थे.

क्रेडिट कार्ड की तुलना में, पहले डेबिट कार्ड अधिक सर्कुलेट होते थे. मगर अब ये सब बदल रहा है. बीते साल में की गई एक स्टडी में पाया गया है कि क्रेडिट को लेकर लोगों का नजरिया बदला है. छोटे कर्ज लेना और क्रेडिट पाने में आसानी होना प्राथमिकताएं बन गई हैं.

सप्लाई के मोर्चे पर गैर-संस्थागत कर्जदाताओं और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का दबदबा बढ़ा है. सबसे अधिक किसी चीज का ट्रेंड बढ़ा है, तो वह है पर्सनल लोन लेने का. यह देश में क्रेडिट का सबसे महंगा रूप है. वित्त वर्ष 2017 से वित्त वर्ष 2021 के बीच एक लाख रुपये से कम के लोन में तिगुना बढ़त हुई है.

मार्च 2019 से मार्च 2020 के बीच छोटे पर्सनल लोन 26,700 करोड़ रुपये से बढ़कर 39,700 करोड़ रुपये पहुंच गए. 25 साल से कम उम्र वालों की बदौलत शॉर्ट टर्म पर्सनल लोन की संख्या इस दौरान 3.8 गुना और वैल्यू के लिहाज से 2.3 गुना बढ़ी है.

यह स्पष्ट है कि जैसे-जैसे कंज्यूमर कल्चर बढ़ेगा, क्रेडिट की इसमें भूमिका बढ़ती जाएगी. हम अक्सर हर चीज में अमेरिका की नकल करते हैं. वहां बहुत ज्यादा कर्ज लिए जाते हैं. शायद इसी दिशा में बढ़ते हुए हम भी कर्जों से दबी जनता वाले देश बन जाएं.

अगर कर्ज बढ़ाते जाने का ट्रेंड ऐसे ही फैलता रहा, तो प्राइवेट कंजम्पशन का स्तर बढ़ेगा. साथ ही डोमेस्टिक सेविंग्स रेट पर भी असर पड़ेगा, जिसके जरिए इंफ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट जैसे जरूरी कामों के लिए लॉन्ग-टर्म फंड मिलता है.

इंडिविजुअल के नजरिए से देखें तो कर्ज लेने में कोई बुराई नहीं है. जल्दी से मिल जाने वाले सस्ते कर्ज अर्थव्यवस्था को दुरुस्त रखते हैं. मगर उपभोक्ताओं को ध्यान रखना होगा कि डेट और डेट ट्रैप के बीच का फासला बेहद कम होता है.

अपनी ओर से सही फैसले लेने की जरूरत है. डिजिटल ट्रांजैक्शन बढ़ने के साथ कर्ज लेना बेहद आसान हो गया है. हालांकि, कर्ज लादते जाना खुद के लिए ही मुसीबत बढ़ाना है. कर्ज के प्रति भारतीयों के पुराने नजरिये में दम है. डेट से बिना डरे उसका इस्तेमाल करने के लिए खुद पर नियंत्रण रखना बेहद जरूरी है.

Published - September 2, 2021, 06:22 IST