कोरोना महामारी की घातक दूसरी लहर में भारत के गांवों में भी संक्रमण की संख्या बढ़ गई थी. इससे अनुमान लगाया जा रहा था कि रूरल डिमांड प्रभावित होगी. लेकिन 9 इकोनॉमिक इंडिकेटरों से पता चलता है कि रूरल डिमांड (rural demand) पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के एनालाइज किए गए डेटा से पता चलता है कि जब कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी, तो जून क्वार्टर में ग्रामीण खपत (Rural Consumption) में नरमी आई थी, लेकिन महामारी से पहले के लेवल की तुलना में ये फिर भी मजबूत थी.
इन इंडिकेटरों के मुताबिक, रूरल कंजम्पशन एक साल पहले जून क्वार्टर की तुलना में 6.6% बढ़ा है. पिछले साल इसी अवधि में 16.4% की ग्रोथ देखी गई थी. इसकी तुलना महामारी से पहले के सात वित्तीय वर्षों की जून तिमाहियों में 3.7% की एवरेज ग्रोथ के साथ की गई. एनालिसिस के लिए इस्तेमाल किए गए इंडिकेटर रियल एग्रीकल्चरल वेज, रियल नॉन-एग्रीकल्चरल वेज, फार्मर टर्म्स ऑफ ट्रेड, एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट्स, फर्टिलाइजर सेल्स, एग्रीकल्चर क्रेडिट, इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) फूड प्रोडक्ट्स, रिजर्वॉयर लेवल और रूरल फिस्कल स्पेंडिंग है.
FY21 तक वार्षिक आधार पर ग्रामीण खपत का अनुमान लगाने के लिए इस्तेमाल किए गए 13 इंडिकेटरों का एक साधारण औसत दिखाता है कि सदी के शुरुआती पांच वर्षों में ग्रोथ कमजोर थी. साल-दर-साल का इसका औसत 3.1% था. जबकि अगले दस वर्षों में 9.9% के औसत से ग्रोथ देखी गई. वहीं FY15-17 में एवरेज ग्रोथ की बात करें तो यह कमजोर होकर 2.2% पर आ गई थी. हालांकि FY18-20 के बीच इसमें रिकवरी देखने को मिली और यह 4.9% के एवरेज पर पहुंच गई.
FY21 में जब महामारी की शुरुआत थी तो रूरल कंजम्पशन ग्रोथ 2% तक धीमी हो गई. मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के एनालिस्ट निखिल गुप्ता और यास्वी अग्रवाल ने कहा, ‘इसके धीमे होने की वजह रेलवे पैसेंजर ट्रैफिक में भारी कमी, आईआईपी-फूड प्रोडक्ट्स में गिरावट, टू-व्हीलर सेल्स में लगातार दूसरी बार कॉन्ट्रेक्शन, एग्रीकल्चर सेक्टर से कम ग्रॉस वैल्यू का जुड़ना और कमजोर फर्टिलाइजर सेल्स थी.
हालांकि रूरल कंजम्पशन तमाम तरह की दिक्कतों के बावजूद लगातार बढ़ रहा है. कोविड के ब्लो के अलावा नेचुरल फैक्टर जैसे दक्षिण-पश्चिम मानसून की प्रगति और खरीफ की बुवाई पिछले साल की तुलना में कमजोर हैं. सरकार के रूरल स्पेंडिंग में भी वित्त वर्ष की पहली तिमाही में गिरावट आई है. एनालिस्टों ने कहा, ‘कमजोर सरकारी सहायता और खराब नेचुरल फैक्टर ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है.’ उन्होंने ये भी कहा कि ‘भले ही दूसरी लहर थम गई है, लेकिन संभावित तीसरी लहर का डर एक बार फिर आर्थिक विकास को पटरी से उतार सकता है.’