देश के आर्थिक इतिहास में 8 नवंबर, 2016 एक महत्वपूर्ण तारीख है. इसी तारीख को रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये की नोटों को रद्द कर दिया था. देश का करीब 86 प्रतिशत कैश रातोंरात अवैध हो गया था.
नोटबंदी हुए पांच साल बीत चुके हैं. उससे मिली सीख मिलीजुली है. रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक, देश में कैश का इस्तेमाल घटा नहीं है. बल्कि इसमें बढ़ोतरी हुई है. GDP में इसकी हिस्सेदारी भी बढ़ी है. जनवरी 2016 में कैश सर्कुलेशन 15.1 लाख करोड़ रुपये था. अक्टूबर 2021 में यह 1.9 गुना बढ़कर 28.3 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया. इस दौरान GDP में कैश की हिस्सेदारी 12.5 प्रतिशत पहुंच गई.
इससे साबित होता है कि देश में कैश का इस्तेमाल खत्म नहीं होने वाला. लेकिन क्या यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी का असल में बिल्कुल भी कोई फायदा हुआ ही नहीं? शायद नहीं.
कैश का इस्तेमाल घटाने का प्रयास इस तरह सबसे फायदेमंद साबित होता है कि इससे फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन का एक बेहतर सिस्टम बनता है. नोटबंदी ने कई लोगों को ट्रांजैक्शन के ऑफिशियल तरीके अपनाने पर मजबूर किया, जिसका सीधा फायदा सरकारी राजस्व हो हुआ.
UPI और बैंकों के ऐप से होने वाले पेमेंट पिछले कुछ वर्षों में खूब प्रचलित हो गए हैं. डिजिटल ट्रांजैक्शन को मिले बढ़ावे ने कैश से दूरी बढ़ाई है. खासतौर पर ऐसे कि ये ट्रांजैक्शन सुविधाजनक होते हैं. डेबिट और क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल में बढ़ोतरी से भी लोगों में कम से कम कैश साथ लेकर चलने की आदत बनने लगी है. फॉर्मल ट्रांजैक्शन बढ़ने के फायदों को नकारा नहीं जा सकता. सरकारी राजस्व बढ़ने से आम आदमी को सबसे अधिक फायदा होता है.