क्या ज्यादा महंगाई से ज्यादा आय हो सकती है?

कॉर्पोरेट रेवेन्यू ग्रोथ नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ के साथ जुड़ी हुई है, इसलिए, महंगाई के साथ इसका एक मजबूत संबंध है.

Global inflation nearing peak, expected to reach pre-pandemic levels next year: IMF

IMF ने कहा कि मुद्रास्फीति में तेजी, विशेष रूप से उभरते बाजारों में अक्सर शार्प एक्सचेंज रेट डेप्रिसिएशन से जुड़ी होती है.

IMF ने कहा कि मुद्रास्फीति में तेजी, विशेष रूप से उभरते बाजारों में अक्सर शार्प एक्सचेंज रेट डेप्रिसिएशन से जुड़ी होती है.

आय के अच्छे होने के लिए महंगाई (Inflation) का सही जोन में होना जरूरी है, हालांकि इस जोन का अनुमान लगाना मुश्किल है. बढ़ती महंगाई चिंता का विषय है क्योंकि कीमतों में वृद्धि का सीधा असर आम आदमी की जेब पर पड़ेगा. बढ़ती महंगाई का असर घरेलू खर्चों पर पड़ेगा जिसके चलते लोगों को अपने खर्चों को सीमित करने के लिए  मजबूर होना पड़ेगा, पैसे की लागत में वृद्धि होगी जिससे मांग में कमी आएगी और इकोनॉमी धीमी हो जाएगी. हालांकि, कई मार्केट एक्सपर्ट का कहना है कि बढ़ती महंगाई से कॉर्पोरेट भारत की आय बढ़ सकती है. क्योंकि कॉर्पोरेट रेवेन्यू ग्रोथ नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ के साथ जुड़ी हुई है, इसलिए, महंगाई के साथ इसका एक मजबूत संबंध है.

महंगाई और कमाई

रिधम देसाई ने शीला राठी और मॉर्गन स्टेनली के नयन पारेख के साथ सह-लेखित एक रिपोर्ट में लिखा है- यदि महंगाई बहुत अधिक या बहुत कम है, तो यह असंख्य मैक्रो प्रभावों के माध्यम से इनकम को नुकसान पहुंचा सकती है. इनकम के अच्छे होने के लिए महंगाई का सही जोन में होना जरूरी है, हालांकि इस जोन का अनुमान लगाना मुश्किल है. “अगर महंगाई बहुत अधिक हो जाती है  तो पैसे की लागत बढ़ जाती है और अंततः इन्वेस्टमेंट साइकिल को खत्म कर देती है. महंगाई में इस तरह की वृद्धि मैक्रो-स्टेबिलिटी रिस्क भी बढ़ा सकती है या ट्रेड की शर्तों को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे विदेश में संस्थाओं को प्रॉफिट में कमी का सामना कर पड़ सकता है, जो निवेश के माहौल को और खराब कर सकता है”

वास्तव में, यदि महंगाई बहुत कम है, तो नॉमिनल जीडीपी की ग्रोथ गिरती है, जिससे रेवेन्यू प्रोस्पेक्ट प्रभावित होता है और फायदा होता है. रिपोर्ट में कहा गया है “भारत में, वर्तमान में पॉलिसी मेकर्स को लगता है कि 4% का एक हेडलाइन CPI, रिस्क और आउटपुट को बैलेंस करता है. हालांकि, फेक्ट यह है कि भारत ने पिछले पांच वर्षों में कभी-कभी इस टारगेट को हिट किया है और इनकम जनरेट नहीं की है”

पूर्वानुमान आय

देसाई ने आगे कहा कि शेयर की कीमतें आमतौर पर कमाई के पूर्वानुमान से एक कदम आगे होती हैं. “इस तरह, वो कमाई का नेतृत्व करते हैं और वास्तव में हमें बताते हैं कि कमाई में वृद्धि कहां जा रही है.” उन्होंने एक रिपोर्ट में कहा- एक पोर्टफोलियो का एक्सेस परफॉर्मेंस मार्केट की राय से असहमति रखने में सक्षम होता है, आमतौर पर, मार्केट सही या बुद्धिमान होता है और इसे बीट करना मुश्किल होता है”

रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे कई मौके आते हैं जब मार्केट गलत साबित हो जाता है, जैसा कि 2008 के पीक पर हुआ था, जब ओवर कॉन्फिडेंस हो गया था, या मार्च 2020 में गिरावट के समय जब अनिश्चित डिस्टोर्टिड कीमतों और वैल्यूएशन ने मैक्सिमम रिटर्न जनरेट किए थे.

मॉर्गन स्टेनली के स्वामित्व वाले लीडिंग अर्निंग इंडिकेटर संकेत करते है कि बीएसई सेंसेक्स के लिए आय वृद्धि 95% प्रॉफिटेबिलिटी की संभावना के साथ +36% और -15% के बीच कहीं भी हो सकती है. 51% की दो सीमाओं के बीच का ये अंतर इतिहास में सबसे बड़ा है. यह दो चीजों को रेखांकित करता है – एक मौजूदा माहौल में अधिक अनिश्चितता है दूसरा हम एक नए प्रॉफिट साइकिल की शुरुआत में हो सकते हैं.

Published - July 22, 2021, 08:13 IST