भारत दुनिया के उन मार्केट्स में है जहां पर डिजिटल पेमेंट्स में जबरदस्त ग्रोथ देखी गई है. फरवरी में रिजर्व बैंक (RBI) ने न्यू अंब्रेला एंटिटीज (NUE) के लिए आवेदन मंगाए हैं. आरबीआई देश में रिटेल पेमेंट सिस्टम को और मजबूत बनाने के लिए NUE लाइसेंस देना चाहता है. इसके लिए आरबीआई ने कुछ शर्तें तय की हैं. आरबीआई के आवेदन मांगे जाने के बाद से कई कंपनियों ने इसके लिए आवेदन भी कर दिया है. इसके अलावा, आरबीआई NPCI के समानांतर एक नेटवर्क खड़ा करना चाहता है. NUE के लाइसेंस के लिए आवेदन करने की आखिरी तारीख 31 मार्च तय की गई है. NUE आने से ग्राहकों के सामने कई विकल्प मौजूद होंगे. साथ ही मार्केट पर NPCI का एकछत्र राज नहीं रहेगा. दूसरी तरफ, जिन इलाकों में अभी पेमेंट्स की सर्विसेज नहीं हैं वहां पर भी जल्द ही ये सर्विसेज मुहैया होने का रास्ता खुल जाएगा.
आरबीआई ने अपने ड्राफ्ट सर्कुलर में कहा है, “इस तरह की इकाई एक कंपनी होगी जोकि कंपनीज एक्ट, 2013 के तहत रजिस्टर्ड होगी.” आरबीआई इन NUE को पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम्स, 2007 के सेक्शन 4 के तहत अधिकार देगा.
शेयरहोल्डिंग क्राइटेरिया
NUE लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाले प्रमोटर/प्रमोटर समूह के लिए योग्य इकाइयों पर मालिकाना हक भारतीय नागरिकों का होना चाहिए. साथ ही इनके पास पेमेंट सिस्टम ऑपरेटर (PSO)/पेमेंट सर्विस प्रोवाइडर (PSP)/टेक्नोलॉजी सर्विस प्रोवाइडर (TSP) के तौर पर 3 साल का अनुभव होना चाहिए. किसी भी इकाई जिसके पास अंब्रेला इकाई के पेड-अप कैपिटल की 25 फीसदी से ज्यादा होल्डिंग होगी उसे प्रमोटर के तौर पर माना जाएगा.
NUE की पूंजी अनिवार्यता
आरबीआई ने इन NUE के लिए न्यूनतम 500 करोड़ रुपये की पेडअप कैपिटल की अनिवार्यता तय की है. आरबीआई ने कहा है कि कोई भी सिंगल प्रमोटर/प्रमोटर समूह इस NUE में 40 फीसदी से ज्यादा निवेश नहीं रख सकता है.
इसके अलावा आरबीआई ने यह भी कहा है कि NUE के लिए आवेदन करते वक्त प्रमोटरों को पेडअप कैपिटल का 10 फीसदी यानी 50 करोड़ रुपये पहले ही तय करना होगा. बाकी की रकम कामकाज की शुरुआत करते वक्त सुरक्षित की जाएगी.
आरबीआई ने NUE में हिस्सेदारी बेचने के लिए भी शर्तें तय की हैं. आरबीआई ने कहा है कि प्रमोटर कारोबार शुरू करने के 5 साल बाद अपनी न्यूनतम 25 फीसदी हिस्सेदारी बेच सकते हैं. इसमें कहा गया है कि हर हालत में NUE में 300 करोड़ रुपये की न्यूनतम नेटवर्थ कायम रखी जाएगी.
क्यों लगी है कंपनियों की कतार
पेमेंट सिस्टम्स के लिए NUE खड़ी करने के लिए कंपनी की लंबी कतार लग गई है. इसमें रिलायंस से लेकर टाटा, एमेजॉन और पेटीएम जैसी कंपनियां शामिल हैं. पेमेंट्स के कामकाज में मौजूद ज्यादातर कंपनियां इसके लिए आवेदन कर रही हैं. आरबीआई ने NUE के लिए आवेेदन करने की आखिरी तारीख 31 मार्च तय की है.
मौजूदा वक्त में रिटेल पेमेंट्स सिस्टम मुहैया कराने वाली अंब्रेला इकाई NPCI है. यह एक नॉन-प्रॉफिट कंपनी है और इस पर बैंकों का मालिकाना हक है. NPCI UPI, AEPS, RuPay और फास्टैग जैसे सेटलमेंट सिस्टम्स को ऑपरेट करती है.
पेमेंट्स सेगमेंट में काम करने वाली कंपनियों का कहना है कि भारत में इकलौती रिटेल पेमेंट्स सिस्टम्स की अंब्रेला इकाई होने के चलते NPCI में कई दिक्कतें भी आती हैं.
अब RBI चाहता है कि दूसरे संस्थानों को भी अंब्रेला इकाइयां खोलने की इजाजत दी जाए ताकि इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया जा सके.
इस सेक्टर में दूसरी कंपनियों के आने से कई फायदे होंगे. एक तो NPCI अकेली अंब्रेला इकाई नहीं रह जाएगी और दूसरी कंपनियां भी मार्केट में आ जाएंगी. इससे प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और साथ ही मार्केट का भी विस्तार होगा. रिटेलरों के पास भी और विकल्प होंगे.
NPCI के आंकड़ों से ये बात समझी जा सकती है कि कंपनियां इस क्षेत्र पर क्यों बड़ा दांव लगाना चाहती हैं. SBI, HDFC, ICICI, कोटक महिंद्रा समेत सभी बड़े बैंक और दूसरी कंपनियां इस सेक्टर में कूदने के लिए तैयार हैं.
NPCI के अकेले UPI के जरिए प्रोसेस किए गए ट्रांजैक्शंस 2019-20 में वॉल्यूम टर्म में 1,251.8 करोड़ रहे. वैल्यू आधार पर देखें तो इस दौरान इनकी वैल्यू 21,317.3 अरब रुपये थी. मौजूदा फिस्कल यानी 2020-21 के फरवरी तक ही ये ट्रांजैक्शंस बढ़कर 1,958.9 करोड़ पर पहुंच गए. इस दौरान इनकी वैल्यू 35,987.67 अरब रुपये रही.
इन ट्रांजैक्शंस में लगातार हो रही बढ़ोतरी के चलते कंपनियां इस सेगमेंट पर दांव लगाना चाहती हैं. खासतौर पर NUE के लिए छोटे शहरों और कस्बों में बड़ा मौका बन रहा है.