बॉन्ड यील्ड के बारे में जानने से पहले ये जानना जरूरी हो जाता है की बॉन्ड क्या है. आसान शब्दों में कहें तो बॉन्ड पैसा जुटाने का एक जरिया है. सरकार अपने आय और खर्च के अंतर को पूरा करने के लिए बॉन्ड के जरिए पैसा उधार लेती है. यानी कर्ज लेती है.
इस कर्ज को उसे तय समय के बाद लौटाना पड़ता है. इसके लिए जो बॉन्ड जारी किया जाता है उसे सरकारी बॉन्ड कहते हैं. कंपनी भी अपने कारोबार के विस्तार के लिए बॉन्ड इश्यू करती है जिसे कॉरपोरेट बॉन्ड कहा जाता है. सरकारी बॉन्ड को काफी सुरक्षित माना जाता है क्योंकि इसमें सरकार की गारंटी होती है.
बॉन्ड यील्ड क्या है?
बॉन्ड से मिलने वाले ब्याज को बॉन्ड यील्ड कहा जाता है. बॉन्ड पर पहले से तय दर पर ब्याज मिलता है. इसमें बदलाव नहीं होता है. तय आमदनी देने की वजह से बॉन्ड को Fixed इनकम सिक्योरिटीज भी कहते हैं. बॉन्ड की मैच्योरिटी अवधि 1 से 30 साल तक हो सकती है. बॉन्ड का मूल्य घटने से उसकी यील्ड बढ़ जाती है. जबकी बॉन्ड की कीमत बढ़ने से यील्ड घट जाती है.
कूपन बॉन्ड्स यानी सालाना ब्याज वाले बॉन्ड के अलावा कुछ बॉन्ड फेस वैल्यू की तुलना में डिस्काउंट यानी छूट पर भी जारी किए जाते हैं. उदाहरण के लिए, अगर आपने किसी बॉन्ड में 1 लाख रुपये का निवेश किया है और उसका कूपन 8 फीसदी है तो बॉन्ड के परिपक्व होने तक हर साल आपको 8,000 रुपये मिलेंगे.
परिपक्वता की अवधि समाप्त होने पर आपको आपके 1 लाख रुपये वापस मिल जाएंगे. अब मान लीजिए बाजार में बॉन्ड का मूल्य घटकर 90,000 हो जाता है तो भी आपको 8,000 रुपये ही ब्याज मिलेगा क्योंकि कूपन रेट नहीं बदलता है.
इसका मतलब ये है कि अब 90,000 पर 8,000 रुपये ब्याज मिलेगा. यही बॉन्ड यील्ड है. इसी तरह अगर बॉन्ड का बिक्री मूल्य 1 लाख से बढ़कर 1.10 लाख हो जाता है फिर भी कूपन पेमेंट 8000 रुपये ही रहेगा.
बॉन्ड की खुले बाजार में भी ट्रेडिंग की जाती है. बॉन्ड्स की रेटिंग उसमें निवेश का आधार प्रदान करती है. ब्याज दरों का बॉन्ड बाजार पर खासा असर पड़ता है. ब्याज दरें बढ़ने से बॉन्ड पर रिटर्न कम हो जाता है, जबकि घटने से इसे फायदा होता है.
बॉन्ड में निवेश करने के लिए डीमैट खुलवाना जरूरी है. म्यूचुअल फंड्स के जरिए भी आप इसमें निवेश कर सकते हैं. परिपक्वता के वक्त मिलने वाली अंतिम राशि को यील्ड-टू-मैच्योरिटी कहा जाता है.
बॉन्ड यील्ड का इकनॉमी पर असर
बॉन्ड यील्ड बढ़ने से अर्थव्यवस्था में ब्याज दर बढ़ने का खतरा रहता है. जिससे कर्ज मंहगा हो जाता है. होम लोन, पर्सनल लोन मंहगे हो जाते हैं. मांग घटती है और निवेश पर असर पड़ता है.