ड्रग कंट्रोलर ने जायडस कैडिला (Zydus Cadila) की बनाई दवा विराफिन (Virafin) को कोरोना मरीजों के लिए इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दे दी है. मरीजों के इलाज के लिए ये इंजेक्शन जल्द ही आपके नजदीकी केमिस्ट की दुकान पर भी मिलेगा. मनी9 से एक्सक्लूसिव चर्चा में जायडस कैडिला के मैनेजिंग डायरेक्टर शरविल पटेल ने कहा है, “विराफिन एक एंटीवायरल दवा है जो कोरोना को शरीर से खत्म करने में मदद करती है.”
उन्होंने कहा कि ये अभी सिर्फ उन्हीं मरीजों के देनी चाहिए जिनमें कोविड-19 संक्रमण अभी मध्यम स्तर पर है ना कि उनके लिए जिनका इलाज बाद की स्टेज पर है.
विराफिन (Virafin) और रेमडेसिविर दोनें ही एंटी वायरल दवाएं हैं और दोनों कोरोना के वायरस के खिलाफ काम करते हैं. विराफिन के इस्तेमाल को रेमडेसिविर के साथ और उसके खिलाफ के असर को भी देखा गया है और दोनों स्थितियों में ये नतीजे उत्साहजनक रहा है.
दोनों के बीच बड़ा फर्क एक ये है कि रेमडेसिविर के जैसे विराफिन को सिर्फ अस्पतालों में ही लगाने की जरूरत नहीं है. इसे घर पर ठीक हो रहे मरीजों को भी दिया जा सकता है.
पटेल ने कहा है कि कंपनी अभी तक अंतिम कीमत पर फैसला नहीं ले पाई है लेकिन इसकी कीमत रेमडेसिविर (Remdesivir) पर होने वाले कुल खर्च से कम हो सकता है.
इसका मतलब ये है कि कोरोना मरीज के लिए विराफिन (Virafin) की एक डोज की कीमत रेमडेसिविर की 6 डोज की कीमत से कम रह सकती है.
उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य है कि कुल इलाज का खर्च ज्यादातर मरीज वहन कर सके. हम इसे रेमडेसिविर से बेहतर कीमत पर मुहैया कराने में सफल हो सकते हैं.
पटेल का कहना है कि अभी विराफिन केंद्र या राज्यों की खरीद या वितरण का हिस्सा नहीं है. साथ ही क्योंकि इसे क्लिनिक सेटिंग के बाहर भी दिया जा सकता है, इसलिए ये दवा लोकल केमिस्ट के पास भी उपलब्ध होगी. हालांकि शुरुआती दौर में कंपनी इसे पहले अस्पतालों में मुहैया कराएगी औक बाद में ओवर-द-काउंटर.
जायडस ने अप्रैल में ही विराफिन (Zydus Virafin) का उत्पादन शुरू कर दिया था, मंजूरी की उम्मीद में ये कदम उठाया गया था. कंपनी को उम्मीद है कि वे मई तक 50 हजार डोज तैयाक कर लेंगे जिससे 50 हजार मरीजों का इलाज हो सकता है. वहीं जून अंत तक या जुलाई की शुरुआत तक क्षमता विस्तारसे प्रति महीने 10 लाख डोज डिलिवर किए जा सकेंगे.
उन्होंने कहा कि कंपनी पूरा उत्पादन खुद कर रही है. फिलहाल मैन्युफैक्चरिंग के लिए करार नहीं कर सकते क्योंकि ये बायोलॉजिकल दवा है ना कि केमिकल दवा. हालांकि टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के जरिए इसे आउटसोर्स किया जा सकता है क्योंकि डिमांड बढ़ी हुई है. ऐसा करने पर उत्पादन क्षमता 50 लाख डोज प्रति माह हो सकती है. हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि फिलहाल दुनिया में इतने उत्पादकन हीं जो इस तरह की दवा बनाने में सक्षम हों.
पिछले 3 से 4 महीनों से दवा का क्लिनिकल ट्रायल जारी था. दूसरे और तीसरे चरण को एक साथ करते हुए देश के 20 सेंटर में 280 वयस्कों पर इसका ट्रायल किया गया.
पटेल ने कहा है कि तीसरे चरण का डाटा WHO की मापदंडों पर दो तरह के सुधार दिखाता है – पहला ये कि 7 दिन के अंदर 91.15 फीसदी मरीजों का RT-PCR टेस्ट निगेटिव आया तो वहीं ऐसे मरीजों की संख्या भी कम हुई जिन्हें अलग से ऑक्सीजन की जरूरत हो.
जायडस कैडिला अमेरिका में इस दवा के क्लिनिकल ट्रायल के लिए अमेरिकी दवा रेगुलेटर (US FDA) से बातचीत कर रहे हैं. पटेल ने कहा, “अभी इसपर चर्चा जारी है लेकिन हमने अभी ट्रायल शुरू नहीं किए हैं.” उन्होंने कहा कि फिलहाल ये दवा सिर्फ वयस्कों के लिए है लेकिन संभावना है कि इसे बच्चों के लिए भी डेवलप किया जाए. लेकिन अभी वो योजना नहीं है. ये अभी काफी शुरुआती दौर है.
(रजत शुभ्र मजुमदार के इनपुट के साथ)