आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया… मतलब जितनी कमाई उससे ज्यादा खर्चा. ये हाल आपका या हमारा नहीं. बल्कि सरकार का भी रहता है. ऐसा हम नहीं सरकार खुद बताती है. बजट की शुरुआत ही कुछ इस तरह होती है. वित्त मंत्री के भाषण के साथ ही सबसे पहला आंकड़ा जो पेश किया जाता है वह होता है वित्तीय घाटा (Fiscal Deficit). मतलब फिस्कल डेफिसिट. सबसे महत्वपूर्ण आंकड़ा यही होता है. ध्यान नहीं दिया हो तो इस बार दीजिएगा ये टर्म आपको बजट भाषण में सुनाई देगी.
सरकार जितनी कमाई करती है, जितना टैक्स वसूलती है. उससे ज्यादा तो खर्च कर देती है. कमाई और खर्च के बीच का जो अंतर आता है उसे ही वित्तीय घाटा यानि फिक्सल डेफिसिट कहते हैं. सरकार बताती है कि उसका खर्च कहां और कितना हो रहा है. इस वित्तीय घाटे को काबू में रखना भी बहुत जरूरी होता है. इसलिए सरकार घाटे की भरपाई के लिए कहीं से उधार लेती है. बॉन्ड और सिक्योरिटीज जारी करके वित्तीय घाटे की भरपाई करने की कोशिश होती है. अगर वित्तीय घाटा बढ़ता है तो सीधे तौर पर समझ लीजिए कि सरकार की उधारी बढ़ रही है. उधार बढ़ रहा है तो जाहिर है ब्याज भी बढ़ेगा. बडे़-बड़े अर्थशास्त्री भी मानते हैं कि घाटा बढ़ना अच्छा नहीं होता. घाटा अगर काबू में रहे तभी सरकार ग्रोथ के पहिए तो दौड़ाने में कामयाब हो सकती है.
आमतौर पर कहा जाता है कि घाटा एक तय सीमा में हो तो सही होता है. अगर घाटा इसके आसपास रहता है तो ठीक है, लेकिन जरूरत से ज्यादा वित्तीय घाटा (Fiscal Deficit) होना बाजार को पसंद नहीं आता है.
वित्तीय घाटे की भरपाई
कहीं से उधार लेकर, विदेशी निवेशकों से, बॉण्ड या सिक्योरिटीज जारी करके सरकार इस वित्तीय घाटे की भरपाई कर लेती है. वित्तीय घाटे (fiscal deficit) के बढ़ने का मतलब है कि सरकार की उधारी बढ़ेगी. और अगर उधारी बढ़ेगी तो सरकार को ब्याज भी ज्यादा अदा करना होगा. अर्थव्यवस्था में तेजी के लिए वित्तीय घाटे को काबू में रखना बेहद जरूरी है.
सभी को पता है कि सरकार घाटे वाला बजट बनाती है. लेकिन ये घाटा कितना होना चाहिए, महत्वपूर्ण बिंदू ये है. आमतौर पर कहा जाता है कि घाटा एक तय सीमा में हो तो सही होता है. अगर घाटा इसके आसपास रहता है तो ठीक है, लेकिन जरूरत से ज्यादा वित्तीय घाटा होना बाजार को पसंद नहीं आता है.