लोन के जरिए लोग अपनी विभिन्न आर्थिक देनदारियों को पूरा कर पाते हैं. मकान, कार जैसी जरूरतों को पूरा करने के लिए अक्सर हमें लोन लेना पड़ जाता है. जब कोई बैंक आपको लोन देता है तो वह सबसे पहले लोन चुकाने की आपकी क्षमता पर नजर डालता है. बैंक, ऐसा इसलिए करते हैं कि उनका ग्राहक भविष्य में नियमित रूप से मासिक किस्त चुकाता रहे. ग्राहक के लोन चुकाने की क्षमता के आकलन के लिए बैंक FOIR का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, बहुत कम ऐसे ग्राहक होते हैं, जिन्हें अपर्याप्त FOIR होने के कारण, लोन देने से मना किया जाता हो.
फिक्स्ड ऑब्लिगेशन, कर्ज की वह मात्रा होती है, जो किसी व्यक्ति के ऊपर निश्चित अवधि तक बनी होती है. FOIR तय करते वक्त आवेदक की मासिक देनदारियों पर ध्यान दिया जाता है. इन देनदारियों में आपकी मासिक किस्त, क्रेडिट कार्ड बकाया वगैरह शामिल हो सकते हैं. इसके बाद, बैंक आपकी मासिक आमदनी को देखते हैं. बैंकों की उम्मीद होती है कि आपकी कुल मासिक देनदारियां, आपकी मासिक आय के आधे से कम ही हो.
हालांकि, बैंक इसमें कुछ हद तक लचीलापन भी दिखा सकते हैं. जैसे यदि किसी मासिक आमदनी 1 लाख रुपये है तो उसके लिए FOIR का अलग मापदंड हो सकता है और किसी की मासिक आय 20 हजार रुपये है तो उसके लिए FOIR का मापदंड अलग हो सकता है.
यह समझना बहुत जरूरी है कि आपका FOIR, लोन के आपके आवेदन पर बहुत असर डाल सकता है. यदि यह बैंक की उम्मीद के मुताबिक नहीं है तो आपका आवेदन खारिज भी हो सकता है. कम FOIR का मतलब व्यक्ति की कम देनदारियों से होता है, इससे लोन चुकाने की उसकी क्षमता में इजाफा होता है.