क्या सूचना के अधिकार (RTI) के तहत टाटा, बिड़ला, अंबानी जैसे धनकुबेरों के बैंक खातों में जमा रकम और उनके कर्ज के बारे में जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए? देश के प्रमुख बैंकों ने एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में बहस करते यह सवाल उठाया है. बैंकों का मानना है कि RTI के माध्यम से गोपनीय बैंकिंग जानकारी उजागर किए जाने से औद्योगिक घरानों की भावी कारोबारी योजनाओं की गोपनीयता भी खत्म हो सकती है, जिसके लिए वे बैंक से कर्ज लेते हैं.
SBI और HDFC बैंक की दलील
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) और HDFC बैंक की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने जस्टिस एस अब्दुल नजीर और कृष्ण मुरारी की पीठ को बताया कि बैंकिंग कामकाज और व्यक्तिगत खातों के ब्योरे सहित वित्तीय लेनदेन, बैंकों द्वारा गोपनीय रखा जाता है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय गोपनीयता की इन शर्तों को खतरे में डाल देगा.
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी अपील
29 अप्रैल को न्यायमूर्ति एलएन राव की अध्यक्षता वाली पीठ ने SBI और HDFC सहित प्रमुख बैंकों के आवेदनों को खारिज कर दिया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के 6 साल पुराने फैसले को वापस लेने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को RTI अधिनियम के तहत बैंकों के कामकाज के बारे में जानकारी प्रदान करने का निर्देश दिया गया था.
खाताधारकों के भरोसे का तर्क
मेहता ने कहा, “बैंक अपने खाताधारकों के विश्वास और भरोसे को भला कैसे तोड़ सकते हैं? वह भी महज इसलिए कि कोई RTI कार्यकर्ता यह जानना चाहता है कि किसी व्यक्ति का बैंक बैलेंस क्या है, या उसने भविष्य की गोपनीय योजनाओं के लिए या अपने व्यापारिक कामकाज के लिए बैंक से कितना कर्ज लिया है? बैंकिंग में पारदर्शिता के खिलाफ कोई नहीं है, लेकिन गोपनीयता बनाए रखने के कानून से बंधे बैंकों को अपने खाताधारकों का भरोसा तोड़ कर इस प्रकार की जानकारी क्यों प्रकट करनी चाहिए, जिससे कि प्रतिद्वंद्वियों के समक्ष भविष्य की व्यावसायिक योजनाओं का खुलासा हो जाए, जो एक RTI कार्यकर्ता की सेवाएं लेकर ये जानकारियां हासिल कर सकते हैं?”
रोहतगी ने कहा कि “हम जानते हैं कि कौन किस तरीके से व्यापारिक प्रतिद्वंद्वियों के बारे में जानकारी लेने के लिए RTI का उपयोग कर सकता है. यदि बैंक यह खुलासा कर देते हैं कि किस क्षेत्र के ऋण दिए जा रहे हैं तो किसी भी औद्योगिक घराने की भविष्य की योजनाओं को लेकर कोई भी कारोबारी गोपनीयता नहीं रह जाएगी. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की 9 न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला सुनाया है कि व्यक्तिगत गोपनीयता जीवन के अधिकार का हिस्सा है तो क्या बैंकों में खाताधारकों को अपने बैंक खातों के बारे में गोपनीयता का अधिकार नहीं रहना चाहिए?”
प्रशांत भूषण की दलील
दूसरी ओर, अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने RBI के माध्यम से RTI के तहत मांगी गई जानकारी प्रदान करने के लिए अपने दायित्वों से बाहर निकलने के लिए बैंकों की इन दलीलों का कड़ा विरोध किया.
उन्होंने कहा कि “सुप्रीम कोर्ट ने RBI को बैंकिंग गतिविधियों के बारे में जानकारी प्रदान करने का निर्देश देने वाले 6 साल पुराने फैसले को वापस लेने की मांग करने वाले आवेदनों को खारिज कर दिया है. भारतीय बैंकिंग संघ के माध्यम से सभी बैंक मामले के पक्ष थे. यह मामला काफी चर्चा में रहा था और फिर भी इनमें से ICICI को छोड़कर बैंकों ने सुनवाई में पक्षकार बनना चुना. अब वे यह तर्क नहीं दे सकते कि उनकी बात नहीं सुनी गई.”
गुरुवार को होगी सुनवाई
इस पर पीठ ने कहा कि पहली नजर में भूषण की बात सही लगती है और मामलों को न्यायमूर्ति एल एन राव की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाना चाहिए, जिसने फैसले को वापस लेने की मांग वाली बैंकों की याचिका को खारिज किया था. पीठ इस मामले में अगली सुनवाई गुरुवार को करेगी, क्योंकि मेहता और रोहतगी ने तर्क दिया कि मूल निर्णय तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला की अध्यक्षता वाली पीठ ने पारित किया था.