अगर आप नौकरीपेशा हैं, तो यह खबर आपके लिए काम की साबित हो सकती है. लगातार तीन माह तक वेतन नहीं आने पर आपका सैलरी खाते (Salary Account) को बैंक बचत खाते (Saving Account) में कन्वर्ट कर सकता है. ऐसा होने से आपको न्यूनतम बैलेंस (Minimum Balance) को मैंटेन करना पड़ेगा. अगर ऐसा नहीं किया तो जुर्माना लग सकता है. इसलिए कंपनी छोड़ने के बाद अपने पुराने सैलरी अकाउंट (Salary Account) को या तो बंद करा दें या फिर उसमें न्यूनतम बैलेंस मैंटेन करते रहें.
सैलरी और बचत खाते का अंतर यहां समझना जरूरी है. सैलरी अकाउंट यानि वह खाता जिसमें आपकी सैलरी आती है. आमतौर पर बैंक ये खाते कंपनियों के कहने पर खोलते हैं. कंपनी के हर कर्मचारी का अपना सैलरी अकाउंट होता है. जिसका संचालन उसे खुद करना होता है. वेतन के समय पर बैंक कंपनी से पैसे लेकर कर्मचारियों के बैंक खाते में पैसे डाल देता है. सैलरी अकाउंट के नियम सेविंग्स अकाउंट के मुकाबले अलग हैं. जबकि, सेविंग्स अकाउंट को पैसे की बचत करने और बैंक में रखने के लिए खोला जाता है. सैलरी अकाउंट में कोई न्यूनतम बैलेंस की जरूरत नहीं होती, जबकि बैंक के सेविंग्स अकाउंट में आपको न्यूनतम बैलेंस बनाए रखना जरूरी होता है.
कैनरा बैंक दिल्ली स्थित पूसा के ब्रांच हेड अभिनीत कुमार के मुताबिक, हालांकि यह अलग अलग बैंकों पर निर्भर करता है, लेकिन आमतौर पर तीन माह तक सैलरी अकाउंट में सैलरी न आने पर बैंक उस खाते को सामान्य बचत खाते में कन्वर्ट कर देते हैं. ऐसे में न्यूनतम बैलेंस मैंटेन करना पड़ेगा. जबकि सैलरी अकाउंट में ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं होती है. वहीं, सैलरी और सेविंग्स अकाउंट पर मिलने वाली ब्याज दर समान रहती है. आपके सैलरी अकाउंट में बैंक लगभग 4 फीसदी की दर से ब्याज देता है. कॉरपोरेट सैलरी अकाउंट वह कोई व्यक्ति खोल सकता है जो कंपनी से सैलरी लेता है. सैलरी अकाउंट आपका एम्प्लॉयर खोलता है. जबकि सेविंग्स अकाउंट कोई भी व्यक्ति खोल सकता है.
अगर बैंक ने आपका सैलरी अकाउंट बचत खाते में बदल दिया है, तो इसे आप दोबारा सेविंग अकाउंट में बदलवा सकते हैं. लेकिन इसके लिए नया एम्प्लॉयर उसी बैंक के साथ आपका सैलरी अकाउंट खोलना चाहता है तो ऐसा हो सकता है. इसके लिए आपको बैंक से मंजूरी लेनी होगी.