Loan Default: लोन डिफॉल्ट हो गया है तो भी बैंक नहीं कर सकता ये काम, जान लें अपने अधिकार

Loan Default: आपकी सैलरी नहीं मिली या बिजनेस में दिक्कत हो गई है और इसी वजह से आप लोन नहीं चुका पा रहे, तो आप पर एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती है.

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Loan Default: जब व्‍यक्ति अपने लोन की EMI नहीं चुका पाता और डिफॉल्ट कर जाता है, तो ऐसा नहीं है कि लोन देने वाली कंपनी या बैंक आपको परेशान करने लगे.

याद रखें कि लेनदार कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट करता है, तो भी वह एसेट पर सभी अधिकार नहीं खो देता है. उसे मानवीय व्यवहार पाने का पूरा हक है. आइए जानते हैं कि ऐसे हालात में बैंक कौन से ऐसे काम हैं, जो नहीं कर पाएगा.

जोर जबरदस्‍ती करने का अधिकार नहीं

कर्जदाता अपना लोन वसूलने के लिए रिकवरी एजेंटों की सेवाएं ले सकते हैं, लेकिन ये अपनी हद पार नहीं कर सकते हैं. इस तरह के थर्ड पार्टी एजेंट ग्राहक से मिल सकते हैं.

मगर, उन्हें ग्राहकों को धमकाने या जोर जबरदस्‍ती करने का अधिकार नहीं है. वे ग्राहक के घर सुबह 7 से शाम 7 बजे के बीच जा सकते हैं.

बैंक एफआईआर नहीं कर सकता

लोन डिफोल्ट होना एक सिविल मामला है, कोई आपराधिक केस नहीं है, लेकिन अगर केस के तथ्य बता रहे हैं कि आपने कोई फ्रॉड पेपर्स बनाकर लोन लिया है, तब बैंक एफआईआर कर सकता है. या फ‍िर आप एक विलफुल डिफॉल्टर हों.

यानी आप जानबूझ कर बैंक को पैसे नहीं देना चाहते हैं, तो भी फ्रॉड की मंशा हो सकती है. ऐसी परिस्थितियों मे एफआइआर दर्ज हो सकती है.

लेकिन आप एक जेनुइन कस्टमर हैं, आपकी सैलरी नहीं मिली है या बिजनेस में दिक्कत हो गई है और इसी वजह से आप लोन नहीं चुका पा रहे, तो आप पर एफआईआर दर्ज नहीं हो सकती है.

नोटिस देना जरूरी

लेनदार के खाते को तब नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) में डाला जाता है जब 90 दिनों तक वह बैंक को किस्त का भुगतान नहीं करता है. इस तरह के मामले में कर्ज देने वाले को डिफॉल्टर को 60 दिन का नोटिस जारी करना पड़ता है.

अगर नोटिस पीरियड में बॉरोअर भुगतान नहीं कर पाता है तो बैंक एसेट की बिक्री के लिए आगे बढ़ सकते हैं. हालांकि, एसेट की बिक्री के लिए बैंक को 30 दिन और का पब्लिक नोटिस जारी करना पड़ता है.

एसेट का सही दाम पाने का हक

एसेट की बिक्री से पहले बैंक/वित्तीय संस्थान को एसेट का उचित मूल्य बताते हुए नोटिस जारी करना पड़ता है. इसमें रिजर्व प्राइस, तारीख और नीलामी के समय का भी जिक्र करने की जरूरत होती है.

लोन की वसूली के बाद बची अतिरिक्त रकम को पाने का लेनदार को हक है. बैंक को इसे लौटाना पड़ेगा.

तीन साल बाद केस नहीं बनता

अगर लोन चुकाने की ड्यू डेट निकल चुकी है और तीन साल का समय बीत चुका है, तो लिमिटेशन एक्ट 1963 के तहत बैंक सिविल कोर्ट में आपके खिलाफ कोई भी रिकवरी का केस फाइल नहीं कर सकता, लेकिन बैंक का पैसे लेने का अधिकार खत्म नहीं होता.

Published - June 24, 2021, 02:46 IST