लोन को मंजूरी देने से पहले बैंक और एनबीएफसी(NBFC) बहुत से पहलुओं पर ध्यान देते हैं. अब लोन लेने वाला का आवेदन अप्रूव होगा या नहीं इसकी कुछ आम वजहों में से एक है फिक्स्ड ऑब्लिगेशन टू इनकम रेश्यो(Fixed Obligations to Income Ratio). सीधे तौर पर कहें तो FOIR आपका आय और आपको मिलने वाले लोन का अनुपात दिखाता है. ये आपकी असल डिस्पोजेबल आय और रीपेयमेंट की क्षमता की बात करता है. इसमें हर महीने आपके क्रेडिट रीपेयमेंट्स शामिल हैं, जिसमें सभी सिक्योर और अनसिक्योर लोन, क्रेडिट कार्ड ड्यूज, और हाल ही में दी गई कोई लोन एप्लीकेशन के साथ-साथ आपके घर के किराए जैसे दूसरे जरूरी खर्च शामिल हैं.
”पैसाबाजार डॉट कॉम(Paisabazaar.com) के सीनियर डायरेक्टर गौरव अग्रवाल ने कहा, “एफओआईआर(FOIR) शब्द आपके महीने के खर्च या जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली आपकी मासिक आय के प्रपोर्शन को दिखाता है. लेंडर इस अनुपात को लोन लेने वाले की ईएमआई चुकाने की क्षमता को मापने के लिए करते हैं. अगर किसी का एफओआईआर(FOIR) कम है तो उसकी डिफॉल्टर बनने की संभावना कम मानी जाएगी. इसलिए,लेंडर कम एफओआईआर वाले आवेदकों को कर्ज देना पसंद करते हैं.
कई लेंडर आवेदक की चुकाने की क्षमता को समझने के लिए EMI/NMI (Net Monthly Income) or EMI/GMI (Gross Monthly Income) रेश्यो का इस्तेमाल करते हैं, इन अनुपातों को 50-60% के स्तर के अंदर ही प्राथमिकता दी जाती है.
बैंकबाजार डॉट कॉम(BankBazaar.com) के सीईओ आदिल शेट्टी ने कहा, “कायदे से देखा जाए तो एफओआईआर आपकी आय की एक निश्चित सीमा को पार नहीं करना चाहिए. आमतौर पर, यह 50% है लेकिन आय और दूसरी चीजों के आधार पर ये अलग हो सकता है. अगर आपका एफओआईआर इस सीमा से ऊपर चला जाता है, तो लेंडर आपके लोन को अप्रूव नहीं करेंगे”.
FOIR = कुल मासिक कर्ज / मासिक वेतन x 100 (Total monthly debt/monthly salary x 100)
मान लें, अगर आपका वेतन 20,000 रुपये है और आप 8,000 रुपये की ईएमआई के साथ 1 लाख रुपये के कर्ज का आवेदन करते हैं, तो FOIR/debt टू income ratio 8,000/20,000 x 100 = 40% होगा.
एफओआईआर, ईएमआई/एनएमआई या ईएमआई/जीएमआई(FOIR, EMI/NMI or EMI/GMI ) अनुपात की गणना करते समय लेंडर नए लोन की ईएमआई ऑब्लिगेशन पर विचार करते हैं. इसलिए, अग्रवाल सुझाव देते हैं, “50-60% से ज्यादा अंक वालों को कुछ मौजूदा लोन का प्रीपेयमेंट या फोरक्लोज करके इसे कम करने की कोशिश करनी चाहिए. ऐसे लोन लेने वाले ज्यादा डाउन पेमेंट या मार्जिन कॉन्ट्रीब्यूशन कर सकते हैं या इन अनुपातों को 50-60% के अंदर लाने के लिए नए लोन के लिए लंबे टेन्योर का विकल्प चुन सकते हैं.
अब क्योंकि FOIR ये आंकलन करने के लिए है कि संभावित लोन एप्लीकेशन को मंजूरी दी जाए या नहीं, कम FOIR का मतलब ये होगा कि आवेदक के महीने के खर्च या जिम्मेदारियां उनकी आय से काफी कम हैं. ये लोन लेने वाले की लोन चुकाने की क्षमता को दिखाता है.
शेट्टी कहते हैं, “लोन की रकम बढ़ाने के दो तरीके हैं. आप अपने कमाने वाले पति/पत्नी/माता-पिता को को-एप्लीकेंट के तौर पर अपने साथ जोड़कर अपनी लोन एलिजीबिलिटी बढ़ा सकते हैं. इसका मतलब है कि लोन लेने वाले की कुल आय बढ़ जाती है, और लोन मिलने की संभावना भी. दूसरा विकल्प लंबे टेन्योर का विकल्प चुनना है. यानि 12 प्रतिशत पर 4 लाख के कार लोन पर बनने वाली इएमआई जो कि 42000 होगी वो 25 साल के टेन्योर में घटकर 30,500 रुपये रह जाएगी”.
क्रेडिट यूटिलाइजेशन रेश्यो (CUR) आपके द्वारा खर्च की जाने वाली कुल क्रेडिट कार्ड सीमा के अनुपात को दिखाता है. अग्रवाल के मुताबिक, “लेंडर आमतौर पर 30% के अंदर CUR वाले लोगों को आर्थिक रूप से अनुशासित मानते हैं. इस निर्धारित सीमा को पार करने वालों को आमतौर पर लेंडर द्वारा सही नजर से नहीं देखा जाता और इसलिए, क्रेडिट ब्यूरो भी इस 30% स्तर से ज्यादा के क्रेडिट स्कोर को कम कर देते हैं”. एक कम क्रेडिट स्कोर, लोन और क्रेडिट कार्ड मिलने की संभावना पर बुरा असर डालेगा.